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Showing posts with the label शाहरुख़ खान

जुड़े गांठ पड़ जाए

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-अजय ब्रह्मात्‍मज अभी पिछले दिनों शिरीष कुंदर ने ट्विट किया है कि झगड़े के बाद हुई सुलह से कुछ रिश्ते ज्यादा मजबूत हो जाते हैं, लेकिन मानव स्वभाव शब्दों के संविधान से निर्देशित नहीं होता। रहीम ने सदियों पहले कहा है, रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाये, टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ पड़ जाये..। यह गांठ और खलिस शिरीष कुदर, फराह खान और मुमकिन है कि शाहरुख खान के मन में भी बनी रहे। शाहरुख और फराह की दोस्ती बहुत पुरानी है। दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे के सेट पर सरोज खान से अनबन होने पर शाहरुख ने फराह को अपने गाने की कोरियोग्राफी के लिए बुलाया था। दिन पलटे। फराह सफल कोरियोग्राफर हो गईं। फिर शाहरुख ने ही उनकी बढ़ती ख्वाहिशों को पर दिए और मैं हूं ना डायरेक्ट करने का मौका दिया। शाहरुख के प्रोडक्शन को पहली बार फायदा हुआ, लेकिन उससे बड़ा फायदा फराह का हुआ। सफल निर्देशक के तौर पर उन्होंने दस्तक दी और शाहरुख के प्रोडक्शन की अगली फिल्म ओम शांति ओम से उनकी योग्यता मुहर लग गई। इसी बीच शिरीष का फराह के जीवन में प्रवेश हुआ। दोनों का विवाह हुआ और इसके गवाह रहे साजिद खान, साजिद नाडियाडवाला और शाहरुख। शा

पापुलैरिटी को एंजाय करते हैं शाहरुख

-अजय ब्रह्मात्मज शाहरुख खान से मिलना किसी लाइव वायर को छू देने की तरह है। उनकी मौजूदगी से ऊर्जा का संचार होता है और अगर वे बातें कर रहे हों तो हर मामले को रोशन कर देते हैं। कई बार उनका बोलना ज्यादा और बड़बोलापन लगता है, लेकिन यही शाहरुख की पहचान है। वे अपने स्टारडम और पापुलैरिटी को एंजाय करते हैं। वे इसे अपनी मेहनत और दर्शकों के प्यार का नतीजा मानते हैं। उन्होंने इस बातचीत के दरम्यान एक प्रसंग में कहा कि हम पढ़े-लिखे नहीं होते तो इसे लक कहते ़ ़ ़ शाहरुख अपनी उपलिब्धयों को भाग्य से नहीं जोड़ते। बांद्रा के बैंडस्टैंड पर स्थित उनके आलीशान बंगले मन्नत के पीछे आधुनिक सुविधाओं और साज-सज्जा से युक्त है उनका दफ्तर। पूरी चौकसी है। फिल्मी भाषा में कहें तो परिंदा भी पर नहीं मार सकता, लेकिन फिल्म रिलीज पर हो तो पत्रकारों को आने-जाने की परमिशन मिल जाती है। उफ्फ! ये ट्रैफिक जाम मुंबई में कहीं भी निकलना और आना-जाना मुश्किल हो गया है। मन्नत से यशराज स्टूडियो (12-15 किमी) जाने में डेढ़ घंटे लग जाते हैं। मैं तो जाने से कतराता हूं। मेरा नया आफिस खार में बन रहा है। लगता है कि यहीं है, लेकिन

दो तस्वीरें:माई नेम इज खान में काजोल और शाहरुख़

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यह फ़िल्म अभी बन रही है.करण जौहर अपने कलाकारों के साथ अमेरिका में इस फ़िल्म की शूटिंग कर रहे हैं.मन जा रहा है की करण पहली बार अपनी ज़मीन से अलग जाकर कुछ कर रहे हैं.हमें उम्मीद है कि काजोल और शाहरुख़ के साथ वे कुछ नया करेंगे...

दरअसल:दक्षिण अफ्रीका और मिस बॉलीवुड

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-अजय ब्रह्मात्मज यह आईपीएल के संयोजक और द्रष्टा ललित मोदी के दिमाग की उपज हो सकती है। साउथ अफ्रीका में चल रहे आईपीएल-2 के लीग मैचों में स्टेडियम के अंदर दर्शकों को बुलाने और बिठाने की उन्होंने आकर्षक तरकीब सोची। उन्होंने विभिन्न टीमों के मालिकों के साथ मिल कर मिस बॉलीवुड के चुनाव की घोषणा कर दी। ऐसा माना जा रहा है कि मिस बॉलीवुड चुने जाने की आकांक्षा से कई लड़कियां मैच देखने आ रही हैं और वे अपने साथ मित्र और परिजनों को भी 20-20 का रोमांचक क्रिकेट मैच देखने के लिए बाध्य कर रही हैं। आंकड़ों और आमदनी के ब्यौरों में 5 से 10 प्रतिशत के फर्क से संख्या और राशि बढ़ जाती है। चूंकि आईपीएल में शाहरुख खान, प्रीति जिंटा और शिल्पा शेट्टी की भागीदारी है, इसलिए उनकी मौजूदगी से मिस बॉलीवुड के प्रति विश्वसनीयता बढ़ जाती है। मित्र और परिजनों के साथ आईपीएल देखने आ रहीं लड़कियां उम्मीद कर सकती हैं कि अगर वे कैमरे की गिरफ्त में आ गई, तो मिस बॉलीवुड बन सकती हैं। मिस बॉलीवुड की विजेता को मिलने वाली राशि से अधिक महत्वपूर्ण फिल्म में काम मिलना है। हिंदी फिल्मों में काम पाने के लिए आतुर लड़कियों को आईपीएल-2 ने ए

बाजपेयी और सोनिया जी प्रिय हैं:शाहरुख़ खान

बाजपेयी जी बाजपेयी जी से मेरे पुराने संबंध हैं। उनकी बेटी नमिता से पुराना परिचय है। पहले हम दिल्ली लाकर फिल्में दिखाते थे तो उनके लिए विशेष शो रखते थे। उन्हें फिल्मों का बहुत शौक है। कई बार पता चल जाता था कि उन्हें फिल्म अच्छी नहीं लगी। फिर भी वे कहते थे बेटा, बहुत अच्छा है। एक बार मिले तो बोले कि बहुत दिनों से तुम्हारी कोई फिल्म नहीं देखी। पिछले दिनों उनकी तबियत खराब हुई थी तो मैं चिंतित था। मैंने नमिता से पूछा कि बाप जी कैसे हैं। हम उन्हें बाप जी कहते हैं। मेरी तबियत खुद खराब थी, इसलिए मिलने नहीं जा सका। फिर भी मैं नमिता से हालचाल लेता रहा। वे बहुत स्वीट व्यक्ति हैं। मैं छोटा था तो मेरे पिताजी मुझे आईएनए मार्केट ले जाते थे कि अटल बिहारी बाजपेयी जी की स्पीच सुनो। बहुत खूबसूरत बोलते हैं वे। उनका हिंदी पर अधिकार है। मैं उनको और इंदिरा जी को सुन कर बड़ा हुआ हूं। मेरे पिता जी कांग्रेस में थे। मेरी मां कांग्रेस में थीं। गांधी परिवार को मैं बचपन से जानता हूं। राबर्ट से भी मेरा पुराना परिचय है। हमने कभी पालिटिकल बात नहीं की। वे हमारे घर आते हैं। हम भी उनसे मिलने जाते हैं। राजनीति से रिश्ता रा

फ़िल्म समीक्षा:बिल्लू

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मार्मिक और मनोरंजक -अजय ब्रह्मात्मज शाहरुख खान की कंपनी रेड चिलीज ने प्रियदर्शन की प्रतिभा का सही उपयोग करते हुए बिल्लू के रूप में मार्मिक और मनोरंजक फिल्म पेश की है। विश्वनाथन की मूल कहानी लेकर मुश्ताक शेख और प्रियदर्शन ने पटकथा विकसित की है और मनीषा कोराडे ने चुटीले और सारगर्भित संवाद लिखे हैं। लंबे समय के बाद किसी फिल्म में ऐसे प्रासंगिक और दृश्य के अनुकूल संवाद सुनाई पड़े हैं। बिल्लू सच और सपने को मिलाती भावनात्मक कहानी है, जो एक स्तर पर दिल को छूती और आंखों को नम करती है। इस फिल्म का सच है बिल्लू, जिसे इरफान खान ने पूरे संयम से निभाया है। फिल्म का सपना साहिर खान है, जो शाहरुख खान की तरह ही अतिनाटकीय है। सच, सपना और कल्पना का घालमेल भी किया गया है। साहिर खान के रोल में शाहरुख खान को लेना और शाहरुख खान की अपनी फिल्मों को साहिर खान की फिल्मों के तौर पर दिखाना एक स्तर पर उलझन और भ्रम पैदा करता है। बिल्लू में ऐसी उलझन अन्य स्तरों पर भी होती है। फिल्म की कहानी उत्तरप्रदेश के बुदबुदा गांव में घटित होती है। उत्तर प्रदेश के गांव में नारियल के पेड़, बांध और पहाड़ एक साथ देखकर हैरानी

दरअसल:मखौल बन गए हैं अवार्ड समारोह

-अजय ब्रह्मात्मज पहली बार किसी ने सार्वजनिक मंच से अवार्ड समारोहों में चल रहे फूहड़ संचालन के खिलाफ आवाज उठाई है। आशुतोष गोवारीकर ने जोरदार तरीके से अपनी बात रखी और संजीदा फिल्मकारों के उड़ाए जा रहे मखौल का विरोध किया। साजिद खान और फराह खान को निश्चित ही इससे झटका लगा होगा। उम्मीद है कि भविष्य में उन्हें समारोहों के संचालन की जिम्मेदारी देने से पहले आयोजक सोचेंगे और जरूरी हिदायत भी देंगे। पॉपुलर अवार्ड समारोहों में मखौल और मजाक के पीछे एक छिपी साजिश चलती रही है। इस साजिश का पर्दाफाश तभी हो गया था, जब शाहरुख खान और सैफ अली खान ने सबसे पहले एक अवार्ड समारोह में अपनी बिरादरी के सदस्यों का मखौल उड़ाया था। कुछ समय पहले सैफ ने स्पष्ट कहा था कि उस समारोह की स्क्रिप्ट में शाहरुख ने अपनी तरफ से कई चीजें जोड़ी थीं। मुझे बाद में समझ में आया कि वे उस समारोह के जरिए अपना हिसाब बराबर कर रहे थे। आशुतोष गोवारीकर और साजिद खान के बीच मंच पर हुए विवाद को आम दर्शक शायद ही कभी देख पाएं, लेकिन उस शाम के बाद अवश्य ही साजिद जैसे संचालकों के खिलाफ एक माहौल बना है। गौर करें, तो साजिद और उन जैसे संचालक गंभीर और

आमिर खान या शाहरुख़ खान

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सिर्फ़ मीडिया ही नहीं,आम दर्शकों की भी रूचि होती है.हम सभी पैदाइशी होड़ में रूचि लेते हैं.बचपन में ही हमारे प्रतियोगिता हमउम्र बच्चों से करवाई जाती है.अरे,देखो तो कैसे दोड़ता है मुन्ना... यह तो राजू से आगे निकल जाएगा ... बेटा दौड़ो तो और हम तब से कभी अपनी खुशी तो कभी दूसरों के रोमांच के लिए दौड़ते रहते हैं.दुनिया की होड़ में शामिल हो जाते हैं। आदिम ज़माने में शिकार, मुर्गाबाजी ,पतंगबाजी,घुड़दौड़ ,स्वयंवर,परीक्षा,नौकरी,प्रेम, शादी, बच्चों की परवरिश हर समय और जगह एक होड़ चलती रहती है.यह इंसानी फितरत है.मनुष्य की आदिम प्रवृत्ति है.इन दिनों क्रिकेट,फुटबॉल और राजनीती तक में इस होड़ और उठापटक के दर्शन होते हैं.हमें आनंद मिलता है.हम स्फुरित होते हैं और परम आनंद की लालसा में होड़ को बढ़ावा देते हैं। आजकल हिन्दी फिल्मों के दो पॉपुलर स्टार में ऐसी ही होड़ की कल्पना की जा रही है.माना जा रहा की शाहरुख़ खान और आमिर खान के बीच आगे रहने की ज़ंग चल रही है.इस ज़ंग का अलग-अलग कोणों से चित्रण किया जाता है.बताया जाता है की इस चक्र में कौन आगे रहा और कौन पीछे सरकता नज़र आ रहा है.लोकप्रियता सूची में शीर्ष पर क

अब बतियाए होत क्या जब दर्शक हो गए लेट

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१२ दिसम्बर को 'रब ने बन दी जोड़ी' रिलीज हुई.कहा जा रहा था कि बॉक्स ऑफिस पर चल रही उदासी खुशी में बदलेगी.यशराज का बैनर,आदित्य चोपड़ा का निर्देशन और शाहरुख़ खान के होने की वजह से यह उम्मीद सही थी.लेकिन हुआ क्या? फ़िल्म ने ७० से ८०% का व्यापार किया,जो इन दिग्गजों की फ़िल्म के लिए शर्मनाक है। हालाँकि चापलूस ट्रेड विशेषज्ञ इसही बड़ा कलेक्शन बता रहे हैं। अब समझाया जा रहा है कि चूंकि फ़िल्म की लगत ज्यादा नहीं है,इसलिए यशराज की अच्छी कमाई होगी.उनके इस कयास में खास दम नहीं है.देश भर के अखबार और ब्लॉग लिखने वाले उत्साही यशराज की विज्ञप्ति को सच मान कर 'रब ने बना दी जोड़ी' को हिट बता रहे है. अभी कोई नहीं पूछ रहा है कि शाहरुख़ ब्रांड की कीमत कैसे गिर गई? दूसरी तरफ़ यशराज हमेशा कि तरह इस मुगालते में रहे कि उनकी फ़िल्म तो लोग देखने आयेंगे ही.उन्होंने फ़िल्म के प्रचार पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.शाहरुख़ खान ने चाँद अंग्रेज़ी पत्रकारों से बात की और चैनलों पर शेखी बघारते रहे.उन्होंने फ़िल्म से ज्यादा अपनी बात की.शाहरुख़ खान को मालूम नहीं है कि आजकल दर्शक उनकी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे

रब ने बना दी जोड़ी में अलग लग रहे हैं शाहरूख खान

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12 दिसंबर को रब ने बना दी जोड़ी रिलीज होगी। दरअसल, यह फिल्म शाहरुख खान से ज्यादा आदित्य चोपड़ा के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि मोहब्बतें के निर्देशन के आठ साल बाद वे रब.. लेकर आ रहे हैं। फिल्म के पोस्टर और पहले गाने को देखकर ऐसा लग रहा है कि यह फिल्म उनकी पहले की फिल्मों से अलग होगी। वैसे, यह शाहरुख के लिए इस लिहाज से भी खास हो जाती है कि ओम शांति ओम के बाद यह उनकी पहली कायदे की फिल्म होगी। शाहरुख इस बार ओम शांति ओम की तरह आक्रामक जरूर नहीं दिख रहे हैं, लेकिन इस फिल्म को दर्शकों तक ले जाने और उन्हें इस फिल्म के लिए तैयार करने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर भी है। इसी कारण उन्होंने अपने जन्मदिन के मौके पर मीडिया को मन्नत में बुलाया। कोशिश यह थी कि जन्मदिन के मौके पर रब.. की चर्चा आरंभ हो जाए। यशराज और शाहरुख इस रणनीति में सफल रहे। शाहरुख ने विस्तार से फिल्म के बारे में बताया। उन्होंने आदित्य के साथ हुई विमर्श की जानकारी भी दी। जैसे कि पहले पोस्टर में प्रौढ़ शाहरुख को पेश करना। पहले राय बनी थी कि इससे दर्शक निराश होंगे। उन्हें लगेगा कि शाहरुख बूढ़े हो गए हैं। शाहरुख की राय थी, हमें

जन्मदिन विशेष:तब शाहरुख गार्जियन बन जाते हैं

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-अब्बास टायरवाला शाहरुख खान की जिन दो फिल्मों अशोका और मैं हूं ना का लेखन मैंने किया, उन दोनों के वे स्वयं निर्माता भी थे। निर्माता होने के साथ ही उन्होंने फिल्मों में लीड भूमिकाएं भी की थीं। गौर करने वाली बात यह है कि दोनों निर्देशकों को ही उन्होंने पहला अवसर दिया था। हालांकि संतोष शिवन पहले फिल्म बना चुके थे, लेकिन हिंदी में यह उनकी पहली फिल्म थी और यह अवसर उन्हें शाहरुख ने ही दिया। वैसे, संतोष हों या फराह खान, दोनों ही उनके पुराने परिचित और करीबी हैं। संतोष से उनकी मित्रता दिल से के समय हुई थी। इसी तरह फराह उनकी फिल्मों में नृत्य-निर्देशन करती रही हैं। फराह को वे छोटी बहन की तरह मानते हैं। शाहरुख के व्यक्तित्व की यही खास बात है कि वे अपने करीबी लोगों के गार्जियन बन जाते हैं या यूं कहें कि लोग उन्हें उसी रूप में देखने लगते हैं। सच तो यह है कि वे अपने मित्र और भरोसे के व्यक्तियों के साथ काम करना पसंद करते हैं। लोग उनके निर्देशक की सूची बनाकर देख सकते हैं। बतौर ऐक्टर वे अपने निर्देशक पर पूरी तरह से निर्भर करते हैं। शायद इसी वजह से भी वे मित्र निर्देशकों की फिल्में करते हैं। अशोका की

माँ से नहीं मिले खली पहलवान

खली पहलवान भारत आए हुए हैं.आप पूछेंगे चवन्नी को पहलवानी से क्या मतलब? बिल्कुल सही है आप का चौंकना. कहाँ चवन्नी चैप और कहाँ पहलवानी? चवन्नी को कोई मतलब ही नहीं रहता.मगर खली चवन्नी की दुनिया में आ गए.यहाँ आकर वे राजपाल यादव के साथ फोटो खिंचवाते रहे और फिर रविवार को धीरे से मन्नत में जा घुसे.मन्नत ??? अरे वही शाहरुख़ खान का बंगला.बताया गया की आर्यन और सुहाना खली पहलवान के जबरदस्त प्रशंसक हैं.प्रशंसक तो आप के भी बच्चे हो सकते हैं,लेकिन खली वहाँ कैसे जा सकते हैं।बेचारे खली पहलवान के पास तो इतना समय भी नहीं है कि वे माँ के पास जा सकें.चवन्नी को पता चला है कि खली की माँ ने घर का दरवाजा ८ फीट का करवा दिया है.उसे ४ फीट चौडा भी रखा है,ताकि लंबे-चौड़े हो गए बेटे को घर में घुसने में तकलीफ न हो.वहाँ नए दरवाजे के पास बैठी माँ खली का इंतज़ार कर रही है और यहाँ खली पहलवान शाहरुख़ खान के बेटे-बेटी का मनोरंजन कर रहे हैं। ऐसा कैसे हो रहा कि ढाई साल के बाद अपने देश लौटा बेटा माँ के लिए समय नहीं निकल पा रहा है.ऐसा भी तो नहीं है कि उसके पास गाड़ी-घोडा नहीं है.उसे तो बस सोचना है और सारा इन्तेजाम हो जायेगा

शाहरुख़ की हिन्दी पर वाह कहें!!!!

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शाह शाहरुख़ खान का प्यार का नाम है.उनके करीबी उन्हें इसी नाम से पुकारते है.चवन्नी ने सोचा कि नाम लेकर ही शाहरुख़ के करीब होने का भ्रम पाल लिया जाए.मजाक एक तरफ़...इस पोस्ट में चवन्नी शाहरुख़ की हिन्दी से आपको परिचित कराएगा.चवन्नी को अच्छी तरह मालूम है कि शाहरुख़ को हिन्दी आती है.कम से कम वे हिन्दी बोल और समझ सकते हैं.आज के अभिनेता-अभिनेत्री तो हिन्दी बोलने की बात आने पर ही कसमसाने लगते हैं.शाहरुख़ को पांचवी पास इतनी हिन्दी अवश्य आती है.चवन्नी हिन्दी लिखने और पदने के सन्दर्भ में यह बात कर रहा है.चूंकि वे दिल्ली में रहे हैं और परिवार में दिल्ली की भाषा ही बोली जाती थी,इसलिए वे समझ भी सकते हैं.चवन्नी को आश्चर्य होता है कि हिन्दी के नाम पर नाक-भौं सिकोरने वाले शाह को हिन्दी लिखने की क्या जरूरत पड़ गई है.यह मनोरंजन की माया है,जहाँ राजनीति की तरह हिन्दी ही चलती है.पिछले दिनों शाहरुख़ खान ने हिन्दी में एक संदेश लिखा.बड़ा भारी जलसा था....वहाँ शाहरुख़ खान ने यह संदेश स्वयं लिखा.अब आप ऊपर की तस्वीर को ठीक से देखें.आप पायेंगे कि शाह को पढ़ते रहिये के ढ के नीचे बिंदी लगाने की जरूरत नहीं महसूस हुई.उन

शाहरुख़ खान ने पढी कविता

शाहरुख़ खान ने समर खान की फ़िल्म 'शौर्य' के लिए एक कविता पढी है.इसे जयदीप सरकार ने लिखा है। शौर्य क्या है? शौर्य क्या है? थरथराती इस धरती को रौंदती फौजियों के पलटन का शौर्य या सहमे से आसमान को चीरता हुआ बंदूकों की सलामी का शौर्य शौर्य क्या है? हरी वर्दी पर चमकते हुए चंद पीतल के सितारे या सरहद का नाम देकर अनदेखी कुछ लकीरों की नुमाईश शौर्य क्या है? दूर उड़ते खामोश परिंदे को गोलियों से भून देने का एहसास या शोलों की बरसातों से पल भर में एक शहर को श्मशान बना देने का एहसास शौर्य क्या है? बैठी हुई आस में किसी के गर्म खून सुर्ख हो जाना या अनजाने किसी जन्नत की फिराक में पल-पल का दोज़ख हो जाना बारूदों से धुन्धलाये इस आसमान में शौर्य क्या है? वादियों में गूंजते किसी गाँव के मातम में शौर्य क्या है? शौर्य क्या है? शयद एक हौसला,शयद एक हिम्मत...... मजहब के बनाये दायरे को तोड़कर किसी का हाथ थाम लेने की हिम्मत गोलियों के बेतहाशा शोर को अपनी खामोशी से चुनौती देने की हिम्मत मरती-मारती इस दुनिया में निहत्थे डटे रहने की हिम्मत शौर्य आने वाले कल की खातिर अपनी कायनात को आज बचा लेने की हिम्मत शौर्य

सिगरेट और शाहरुख़ खान

शाहरुख़ खान ने कहा कि फिल्मों में सिगरेट पीते हुए कलाकारों को दिखाना कलात्मक अधिकार में आता है और इस पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए.अगर आप गौर से उस समाचार को पढें तो पाएंगे कि एक पंक्ति के बयान से खेला गया है.फिल्म पत्रकारिता की यही सामाजिकता है। हमेशा बहस कहीं और मुड़ जाती है.सवाल फिल्मों में किरदारों के सिगरेट पीने का नहीं है.सवाल है कि आप उसे अपने प्रचार में क्यों इस्तेमाल करते हैं.क्या पोस्टर पर स्टार की सिगरेट पीती तस्वीर नहीं दी जाये तो फिल्म का प्रचार नहीं होगा ?चवन्नी ने देखा है कि एक ज़माने में पोस्टर पर पिस्तौल जरूर दिखता था.अगर फिल्म में हत्या या बलात्कार के दृश्य हैं तो उसे पोस्टर पर लाने की सस्ती मानसिकता से उबरना होगा. फिल्म के अन्दर किसी किरदार के चरित्र को उभारने के लिए अगर सिगरेट जरूरी लगता है तो जरूर दिख्यें.लेकिन वह चरित्र का हिस्सा बने,न कि प्रचार का। शाहरुख़ खान इधर थोड़े संयमित हुए हैं.पहले प्रेस से मिलते समय कैमरे के आगे वे बेशर्मों की तरह सिगरेट पीते रहते थे.इधर होश आने पर उन्होंने कैमरे के आगे सिगरेट से परहेज कर लिया है.चवन्नी को याद है एक बार किसी टॉक शो म

शाहरुख़ खान को फ़्रांस का सम्मान

शाहरुख़ खान को कल रात फ़्रांस के राजदूत जेरोम बोनाफों ने फ़्रांस के प्रतिष्ठित insignia of officer in the order of arts & letters से सम्मानित किया.उन्हें यह सम्मान इसलिए दिया गया है कि उन्होंने कला और साहित्य के क्षेत्र में प्रसिद्धि पायी है और फ़्रांस एवं शेष दुनिया में उसे प्रचारित भी किया है.यह हिन्दी फिल्मों का जलवा है.शाहरुख़ खान को इतराने का यह मौका उसी हिन्दी फिल्म ने दिया है,जिसमें बोलने और बात करने से वे कतराते हैं.उस पर चवन्नी फिर कभी विस्तार से बताएगा। कल रात मुम्बई के एक पंचसितारा होटल में यह सम्मान दिया गया.फ़्रांस के राजदूत महोदय ने आश्वस्त किया कि भविष्य में हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं की फिल्मों को ज्यादा तरजीह दी जायेगी.कोशिश रहेगी कि कान फिल्म महोत्सव में भारत की फिल्में आमंत्रित की जाएँ.राजदूत महोदय ने स्वीकार किया कि फ़्रांस अभी तक भारतीय फिल्मों को अधिक तवज्जो नहीं दे रहा था। इस अवसर पर शाहरुख़ खान ने फ्रांसीसी फिल्मों की तारीफ की और जोर देकर कहा कि हर दर्शक और फिल्मकार को फ़्रांस की फिल्में देखनी चाहिए.उन्होंने बगैर किसी शर्म के बताया कि वे दिल्ली में जवान