फ़िल्म समीक्षा:जश्न
सपनों और रिश्तों के बीच -अजय ब्रह्मात्मज भट्ट कैंप की फिल्मों का अपना एक फार्मूला है। कम बजट, अपेक्षाकृत छोटे और मझोले स्टार, इमोशनल कहानी, म्यूजिकल सपोर्ट, गीतों व संवादों में अर्थपूर्ण शब्द। इस फार्मूले में ही विशेष फिल्म्स की फिल्में कभी कमाल कर जाती हैं और कभी-कभी औसत रह जाती हैं। जश्न कमाल कर सकती है। भट्ट बंधु ने सफलता के इस फार्मूले को साध लिया है। उनकी जश्न के निर्देशक रक्षा मिस्त्री और हसनैन हैदराबादवाला हैं। जश्न सपनों और आकांक्षाओं की फिल्म है। इसे हर जवान के दिल में पल रहे नो बडी से सम बडी होने के सपने के तौर पर प्रचारित किया गया है। फिल्म का नायक आकाश वर्मा सपनों के लिए अपनों का सहारा लेता है। लेकिन असफल और अपमानित होने पर पहले टूटता, फिर जुड़ता और अंत में खड़ा होता है। सपनों और आकांक्षाओं के साथ ही यह शहरी रिश्तों की भी कहानी है। हिंदी फिल्म के पर्दे पर भाई-बहन का ऐसा रिश्ता पहली बार दिखाया गया है। बहन खुद के खर्चे और भाई के सपने के लिए एक अमीर की रखैल बन जाती है। भाई इस सच को जानता है। दोनों के बीच का अपनापा और समर्थन भाई-बहन के रिश्ते को नया आयाम देता है। सारा आज की बह