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फिल्‍म समीक्षा : संता बंता प्रायवेट लिमिटेड

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फूहड़ हास्‍य,लचर अभिनय -अजय ब्रह्मात्‍मज आकाशदीप साबिर की फिल्‍म ‘ संता बंता प्रायवेट लिमिटेड ’ हर लिहाज से एक फूहड़ और लचर फिल्‍म है। अगर कुछ देखने लायक है तो वह केवल फिजी की खूबसूरती है। यह फिल्‍म नमूना है कि कैसे बमन ईरानी,संजय मिश्रा और जॉनी लीवर जैसे अभिनेताओं का बेजा इस्‍तेमाल किया जा सकता है। ताज्‍जुब है कि इसे वॉयकॉम 18 का सहयोग भी मिला है। अगर वे किसी होनहार और संभावनाशील निर्देशक की सोच को ऐसा समर्थन दें तो फिल्‍म इंडस्‍ट्री में कुछ नई प्रतिभाएं भी आएं। बहरहाल,बमन ईरासनी और वीर दास लतीफों से मशहूर हुए संता और बंता के किरदार में हैं। कुद लतीफों को सीन में तब्‍दील कर दिया गया है। उनमें जरूर हंसी आ जाती है। ऐसी हंसी तो ह्वाट्स ऐप के लतीफे पढ़ कर भी आती है। लतीफों से आगे बढ़ कर जैसे ही फिल्‍म में ड्रामा आता है,वैसे ही निर्देशक आकाशदीप साबिर अपनी अयोग्‍यता जाहिर कर देते हैं। बमन ईरानी,संजय मिश्रा और जॉनी लीवर घिसे-पिटे लतीफों से ही हंसाने की कोशिश करते हैं। अपनी कोशिशों में वे ज्‍यादातर असफल रहते हैं,क्‍योंकि उन्‍हें कोई सपोर्ट नहीं मिलता। अव

फिल्‍म रिव्‍यू : जॉली एलएलबी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज तेजिन्दर राजपाल - फुटपाथ पर सोएंगे तो मरने का रिस्क तो है। जगदीश त्यागी उर्फ जॉली - फुटपाथ गाड़ी चलाने के लिए भी नहीं होते। सुभाष कपूर की 'जॉली एलएलबी' में ये परस्पर संवाद नहीं हैं। मतलब तालियां बटोरने के लिए की गई डॉयलॉगबाजी नहीं है। अलग-अलग दृश्यों में फिल्मों के मुख्य किरदार इन वाक्यों को बोलते हैं। इस वाक्यों में ही 'जॉली एलएलबी' का मर्म है। एक और प्रसंग है, जब थका-हारा जॉली एक पुल के नीचे पेशाब करने के लिए खड़ा होता है तो एक बुजुर्ग अपने परिवार के साथ नमूदार होते हैं। वे कहते हैं साहब थोड़ा उधर चले जाएं, यह हमारे सोने की जगह है। फिल्म की कहानी इस दृश्य से एक टर्न लेती है। यह टर्न पर्दे पर स्पष्ट दिखता है और हॉल के अंदर मौजूद दर्शकों के बीच भी कुछ हिलता है। हां, अगर आप मर्सिडीज, बीएमडब्लू या ऐसी ही किसी महंगी कार की सवारी करते हैं तो यह दृश्य बेतुका लग सकता है। वास्तव में 'जॉली एलएलबी' 'ऑनेस्ट ब्लडी इंडियन' (साले ईमानदार भारतीय) की कहानी है। अगर आप के अंदर ईमानदारी नहीं बची है तो सुभाष कपूर की 'जॉली एलएलबी'

फिल्‍म समीक्षा :शिरीन फरहाद की तो निकल पड़ी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज संजय लीला भंसाली की बड़ी बहन बेला भंसाली सहगल की पहली फिल्म है शिरीन फरहाद की तो निकल पड़ी। बेला काफी अर्से से फिल्म बनाना चाहती थी और वे पहले भी असफल कोशिशें कर चुकी हैं। एक समय अदनान सामी के साथ तो उनकी फिल्म लगभग फ्लोर पर जाने वाली थी। बहरहाल, भाई संजय लीला भंसाली ने बहन की ख्वाहिश पूरी कर दी। बेला भंसाली सहगल ने अपने भाई से बिल्कुल अलग किस्म की फिल्म निर्देशित की है। वैसे इसे संजय लीला भंसाली ने ही लिखा है। शिरीन फरहाद.. की प्रेमकहानी मशहूर शिरीं-फरहाद की प्रेमकहानी से अलग और आज के पारसी समुदाय की है। शिरीन फरहाद.. पारसी समुदाय के दो कुंवारे प्रौढ़ों की कहानी है। फरहाद की उम्र 45 की हो चुकी है। सीधे-सादे और नेक फरहाद के जीवन में अभी तक किसी लड़की का आगमन नहीं हुआ है। मां की प्रबल इच्छा है कि उसके बेटे को एक लायक बीवी मिल जाए। बार-बार संभावित बीवियों से रिजेक्ट किए जाने के कारण फरहाद अब शादी के नाम से ही बिदक जाता है। उधर शिरीन पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण शादी के बारे में सोच भी नहीं सकी है। दोनों किरदारों के घरों में कैमरे के आने के साथ हम प

फिल्‍म समीक्षा : फरारी की सवारी

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  मध्यवर्गीय मुश्किलों में भी जीत -अजय ब्रह्मात्‍मज विनोद चोपड़ा फिल्म्स स्वस्थ मनोरंजन की पहचान बन चुका है। प्रदीप सरकार और राजकुमार हिरानी के बाद इस प्रोडक्शन ने राजेश मापुसकर को अपनी फिल्म निर्देशित करने का मौका दिया है। राजेश मापुसकर ने एक सामान्य विषय पर सुंदर और मर्मस्पर्शी कहानी बुनी हैं। सपने टूटने और सपने साकार होने के बीच तीन पीढि़यों के संबंध और समझदारी की यह फिल्म पारिवारिक रिश्ते की बांडिंग को प्रभावपूर्ण तरीके से पेश करती है। राजेश मापुसकर की कल्पना को विधु विनोद चोपड़ा और राजकुमार हिरानी ने कागज पर उतारा है। बोमन ईरानी, शरमन जोशी और ऋत्विक सहारे अपने किरदारों को प्रभावशाली तरीके से निभा कर फरारी की सवारी को उल्लेखनीय फिल्म बना दिया है। फिल्म के शीर्षक फरारी की सवारी की चाहत सहयोगी किरदार की है, लेकिन इस चाहत में फिल्म के मुख्य किरदार अच्छी तरह गुंथ जाते हैं। रूसी (शरमन जोशी) अपने प्रतिभाशाली क्रिकेटर बेटे केयो (ऋत्विक सहारे) के लिए कुछ भी कर सकता है। तीन पीढि़यों के इस परिवार में कोई महिला सदस्य नहीं है। अपने बिस्तर पर बैठे मूंगफली टूंगते हुए टीवी