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पढ़े गए चवन्नी के एक लाख (१,००,०००) पृष्ठ

चवन्नी के पढ़े गए पृष्ठों की संख्या एक लाख से अधिक हो गई है.चवन्नी को नहीं मालूम कि इसका कोई महत्त्व है या नहीं? चवन्नी को यही खुशी है कि आप उसे पढ़ते हैं.ब्लागवाणी और चिट्ठाजगत के सहयोग से यह सम्भव हुआ है.आजकल कुछ पाठक सीधे आते हैं.उन्होंने सीधी राह पकड़ ली है.कल तो घोर आश्चर्य हुआ.अचानक चवन्नी ने पाया कि उसके भारतीय पाठकों की संख्या अमेरिकी पाठकों से कम हो गई.अब आप की बधाई और सुझावों का इंतज़ार है.

वेब दुनिया पर चवन्नी चैप

चवन्नी चैप, फिल्मों पर बढ़िया खेप -रवींद्र व्यास हिंदी में फिल्मों पर बेहतर साहित्य का अभाव है। यदि आप हिंदी पत्रिकाओं-अखबारों पर सरसरी निगाह ही डालेंगे तो पाएँगे कि यहाँ किसी भी फिल्म पर औसत दर्जे के चलताऊ किस्म के लेख ज्यादा मिलेंगे। इनका स्वाद भी कुछ-कुछ चटखारेदार होता है। उसमें फूहड़ किस्म की टिप्पणियाँ होती हैं और जो जानकारियाँ दी जाती हैं उनमें अधिकांश में गॉसिप होते हैं। फिल्म समीक्षाओं का लगभग टोटा है। जो समीक्षाएँ छपती हैं उनमें आधी से ज्यादा जगह कहानी घेर लेती है। बचे हिस्से में कुछ सतही पंक्तियाँ भर होती हैं जैसे- संगीत मधुर है और फोटोग्राफी सुंदर है। अभिनय ठीक-ठाक है। लेकिन इस परिदृश्य में कुछ फिल्मी पत्रकार हैं, जो फिल्मों पर औसत दर्जे से थोड़ा ऊपर उठकर कुछ बेहतर लिखने की कोशिश करते हैं। यदि फिल्मों पर आपको ठीकठाक लेख या टिप्पणियाँ पढ़ना हो तो आपके लिए अजय ब्रह्मात्मज का ब्लॉग चवन्नी चैप एक बेहतर विकल्प हो सकता है। कई लोग उनके इस ब्लॉग का नाम चवन्नी छाप लिखते हैं लेकिन इसकी पोस्ट्स पढ़कर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यह कतई चवन्नी छाप नहीं है। फिल्मों में दिलचस्पी रखने वाले प्

आमिर खान के ब्लॉग से

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कल से आगे ... मुझे लगता है कि तारे जमीं पर के बैकग्राउंड संगीत का काम ठीक चल रहा है. हमलोगों ने अ।श्चर्यजनक तरीके से तेज काम किया. और हमलोगों ने लाइव रिकार्डिंग भी की. फिल्मों में पिछले 15 सालों से ... जी हां, 15 सालों से ऐसी रिकार्डिंग नहीं की जा रही है. अ।पको बताऊं, जब हमलोग बैकग्राउंड संगीत डालते हैं तो सबसे पहले कोई दृश्य/प्रसंग लेते हैं, फिर तय करते हैं कि उस दृश्य में संगीत कहां से अ।रंभ हो और उसे कहां खत्म हो जाना चाहिए ... और क्या बीच में हम कोई बदलाव भी चाहते हैं... अ।दि..अ।दि. यह सब तय होने के बाद, और क्रिएटिव की स्पष्टता होने के बाद रिकार्डिंग अ।रंभ होती है. अ।जकल यह तकनीकी प्रक्रिया हो गयी है. सारे कीबोर्ड कंप्यूटर से जुड़े होते हैं और कंप्यूटर पर फिल्म डाल दी जाती है. उस पर अ।रंभ बिंदु लगा देते हैं, एक ग्रिड तैयार हो जाता है, संगीत की गति ग्रिड की लंबाई से तय होती है ... इसका मतलब ढेर सारा काम गणितीय ढंग का होता है. यह सब कंप्यूटर के अ।विष्कार से हुअ। है. मेरी राय में यह कार्य करने का स्वाभाविक तरीका नहीं है, लेकिन निश्चित ही नियंत्रित और व्यावहारिक तरीका है. इसे सिक्वेसिं

चवन्नी पर बोधिसत्व

चवन्नी को बोधिसत्व की यह टिपण्णी रोचक लगी.वह उसे जस का तस् यहाँ यहाँ प्रस्तुत कर खनक रहा है।आपकी टिपण्णी की प्रतीक्षा रहेगी.- चवन्नी चैप चवन्नी खतरे में है। कोई उसे चवन्नी छाप कह रहा है तो कोई चवन्नी चैप । वह दुहाई दे रहा है और कह रहा है कि मैं सिर्फ चवन्नी हूँ। बस चवन्नी। पर कोई उसकी बात पर गौर नहीं कर रहा है। और वह खुद पर खतरा आया पा कर छटपटा रहा है। यह खतरा उसने खुद मोल लिया होता तो कोई बात नहीं थी। उसे पता भी नहीं चला और वह खतरे में घिर गया। जब तक इकन्नी, दुअन्नी, एक पैसे दो पैसे , पाँच, दस और बीस पैसे उसके पीछे थे वह इतराता फिरता रहा।उसके निचले तबके के लोग गुम होते रहे, खत्म होते रहे फिर भी उसने उनकी ओर पलट कर भी नहीं देखा। वह अठन्नी से होड़ लेता रहा। वह रुपये का हिस्सेदार था एक चौथाई का हिस्सेदार। पर अचानक वह खतरे के निशान के आस-पास पाया गया। उसे बनाने वालों ने उसकी प्रजाति की पैदावार पर बिना उसे इत्तिला दिए रोक लगाने का ऐलान कर दिया तो वह एक दम बौखला गया। बोला बिना मेरे तुम्हारा काम नहीं चलेगा। पर लोग उसके गुस्से पर मस्त होते रहे। निर्माताओं की हँसी से उसको अपने भाई-बंदों के साथ

करिश्मा और करीना

करिश्मा और करीना हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के पहले मशहूर परिवार की बेटियाँ हैं.राज कपूर जब तक जीवित और सक्रिय रहे ,तब तक उनहोंने अपने परिवार की किसी बेटी को फिल्मों में नहीं आने दिया.वजह चवन्नी समझ सकता है.चवन्नी ने राज कपूर और उनकी हीरोइनों दस काफी किस्से सुन और पढ़ रखे हैं .कहा जाता है कि राज कपूर आशिक मिजाज इन्सान थे और अपनी हीरोइनों से प्रेम कर बैठते थे.राज कपूर और नर्गिस के प्रेम के बारे में सभी जानते है.दुनिया उसे दिव्य और अदभुत मानती है,लेकिन चवन्नी लगता है कि संजय दत्त की एक समस्या नर्गिस का सार्वजनिक प्रेम रहा है.संजय दत्त के जवान होने के दिनों के किस्से पढ़ लें.वे अपनी मम्मी से काफी नाराज़ थे.जब उनकी मम्मी कैंसर से मर रही थीं तो वे बाथरूम में बंद होकर नशे के कश ले रहे थे. कोई ग्रंथि तो थी,जो बाद में किसी और शक्ल में सामने आयी.चवन्नी की यही दिक्कत है,बात कहीँ से शुरू करता है और कहीँ और चला जाता है.बात तो राज कपूर ...अरे नहीं करिश्मा और करीना कि हो रही थी.माफ़ करें यहाँ बबीता का ज़िक्र आएगा.राज कपूर के बेटे रणधीर कपूर से शादी करने के बाद बबीता को लगा था कि वह पहले कि तरह फिल्मों मे

चवन्नी का किस्सा

अच्छा है अं।प पढ रहे हैं.बस यही गुजारिश है कि मेरे नाम को चवन्नी छाप उच्चारित न करें. मैं चवन्नी चैप हूं. चवन्नी छाप समूहवाचक संज्ञा है. कभी दरशकों के ख।स समूह को चवन्नी छ।प कह। ज।त। थ।.अ।ज के करण जौहर जैसे निरदेशक चवन्नी छाप को नहीं जानते. हां , विधु विनोद चोपड। ज।नते हैं,लेकिन अब वे चवन्नी छ।प दरशकों के लिए फिल्में नहीं बनाते.सिरफ विधु विनोद चोपड। ही क्यों...इन दिनों किसी भी निरदेशक को चवन्नी छ।प दरशकों की परवाह नहीं है.वैसे भी ब।ज।र में जब चवन्नी ही नहीं चलती ताे चवन्नी छ।प दरशकों की चिंता कोई क्यों करे ...मुंबई में केवल बेस्ट के बसों में चवन्नी चलती है.कंडक्टर मुंबई के बस यात्रियों को चवन्नी वापस करते हैं और बस यात्री फिर से कंडक्टर को किराए के रूप में चवन्नी थम। देते हैं. आज के हमारे परिचित पाठक चवन्नी मे बारे में ठीक से नहीं जानते.चलिए हम अपने अतीत के बारे में बता दें.चवन्नी का चलन तब ज्यादा थ।,जब रुपए में सोलह अ।ने हुअ। करते थे और चार पैसों का एक अ।न। होता थ।.तब रुपए में केवल चौंसठ पैसे ही होते थे.देश अ।ज।द हुआ तो बाजार की सुविधा और एकरूपता के लिए रुपए के सौ पैसे किए गए तो