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फिल्‍म समीक्षा : गुंडे

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दोस्ती-दुश्मनी की चटख कहानी -अजय ब्रह्मात्‍मज यशराज फिल्म्स की अली अब्बास जफर निर्देशित 'गुंडे' देखते समय आठवें दशक की फिल्मों की याद आना मुमकिन है। यह फिल्म उसी पीरियड की है। निर्देशक ने दिखाया भी है कि एक सिनेमाघर में जंजीर लगी हुई है। यह विक्रम और बाला का बचपन है। वे बडे होते हें तो 'मिस्टर इंडिया' देखते हैं। हिंदी फिल्में भले ही इतिहास के रेफरेंस से आरंभ हों और एहसास दें कि वे सिनेमा को रियल टच दे रही हैं, कुछ समय के बाद सारा सच भहरा जाता है। रह जाते हैं कुछ किरदार और उनके प्रेम, दुश्मनी, दोस्ती और बदले की कहानी। 'गुंडे' की शुरुआत शानदार होती है। बांग्लादेश के जन्म के साथ विक्रम और बाला का अवतरण होता है। श्वेत-श्याम तस्वीरों में सब कुछ रियल लगता है। फिल्म के रंगीन होने के साथ यह रियलिटी खो जाती है। फिर तो चटखदार गाढ़े रंगों में ही दृश्य और ड्रामा दिखाई पड़ते हैं। लेखक-निर्देशक अली अब्बास जफर ने बिक्रम और बाला की दोस्ती की फिल्मी कहानी गढी है। ऐसी मित्रता महज फिल्मों में ही दिखाई पड़ती है, क्योंकि जब यह प्रेम या किसी और वजह से टूटती है तो

गुंडे फिल्‍म का जिया गीत

गुंडे फिल्‍म के इस गाने में प्रियंका चोपड़ा के परिधानों के बदलते लाल,सफेद,हरे और बैंगनी रंगों का कोई खास मतलब भी है क्‍या ? क्‍या फिल्‍म में और भी रंग दिखेंगे ?