हिंदी सिनेमा की वीडियो बुक
-अजय ब्रह्मात्मज सौ साल के हुए भारतीय सिनेमा पर विभिन्न संस्थाएं कुछ न कुछ उपक्रम और आयोजन कर रही हैं। पत्र-पत्रिकाओं के पृष्ठों से लेकर सेमिनार के बहस-मुबाहिसों में हम किसी न किसी रूप में भारतीय सिनेमा की चर्चा सुन रहे हैं। हिंदी सिनेमा की उपलब्धियों को भी रेखांकित किया जा रहा है। व्यक्ति, प्रवृत्ति, विधा और अन्य श्रेणियों एवं वर्गों में बांट कर उनका अध्ययन, विश्लेषण और दस्तावेजीकरण हो रहा है। हम भारतीय दस्तावेज और रिकॉर्ड संरक्षण के मामले में बहुत पिछड़े और लापरवाह हैं। देश में एक राष्ट्रीय फिल्म संग्रहालय के अलावा कोई जगह नहीं है, जहां भारतीय सिनेमा के इतिहास से संबंधित सामग्रियां उपलब्ध हों। हर साल पुरस्कार समारोहों पर करोड़ों खर्च करने के लिए तैयार प्रकाशन समूह, टीवी चैनल, फिल्म एसोसिएशन और अन्य संस्थाएं भी इस दिशा में निष्क्रिय हैं। एक अमिताभ बच्चन अपने उद्गार से लेकर क्रिया-कलाप तक का निजी संग्रहण करते हैं। उनकी इस हरकत पर लोग हंसते हैं, लेकिन यकीन करें पचास-सौ सालों के बाद किसी अध्येता को केवल उन पर व्यवस्थित और संदर्भित सामग्रियां मिल पाएंगी। बहरहाल, मुझे हाल ही में