फिल्म समीक्षा : हवा हवाई
-अजय ब्रह्मात्मज अमोल गुप्ते में बाल सुलभ जिज्ञासा और जीत की आकांक्षा है। उनके बाल नायक किसी होड़ में शामिल नहीं होते, लेकिन अपनी जीतोड़ कोशिश से स्वयं ही सबसे आगे निकल जाते हैं। इस वजह से उनकी फिल्में नैसर्गिक लगती हैं। फिल्म निर्देशन और निर्माण किसी विचार की बेहतरीन तकनीकी प्रोसेसिंग है, जिसमें कई बार तकनीक हावी होने से कृत्रिमता आ जाती है। अमोल गुप्ते इस कृत्रिमता से अपनी फिल्मों को बचा लेते हैं। अमोल गुप्ते की 'हवा हवाई' के बाल कलाकार निश्चित ही उस परिवेश से नहीं आते हैं, जिन किरदारों को उन्होंने निभाया है। फिर भी उनकी मासूमियत और प्रतिक्रिया सहज और सरल लगती है। उनके अभिनय में कथ्य या उद्देश्य का दबाव नहीं है। एक मस्ती है। कुछ सपने सोने नहीं देते। अर्जुन हरिश्चंद्र वाघमारे उर्फ राजू का भी एक सपना है। पिता की मृत्यु के बाद वह एक चायवाले के यहां काम करता है। कुछ बच्चों को रोलरब्लेडिंग करते देख कर उसकी भी इच्छा होती है कि अगर मौका मिले तो वह भी अपने पांवों पर सरपट भाग सकता है। पहली समस्या तो यही है कि रोलरब्लेड कहां से आए? उसकी कीमत के पैसे तो हैं नहीं। र