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समाज के सड़ांध का आईना है – ugly : मृत्युंजय प्रभाकर

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-मृत्युंजय प्रभाकर ‘ ugly ’ क्या है? यह सवाल पूछने से बेहतर है कि यह पूछा जाए कि क्या ‘ ugly ’ नहीं है? जिस समाज में हम रहते हैं उस समाज में हमारे आस-पास नजर दौडाएं तो ऐसा क्या है जो अपने ‘ ugly ’ रूप में हमारे सामने नहीं है? बात चाहे मानवीय संबंधो कि हो, सामाजिक संबंधों कि या आर्थिक संबंधों की, ऐसा कुछ भी नहीं है जो अपने विभीत्स रूप को पार नहीं कर गया हो. समाज और मनुष्य को बनाने और जोड़े रखने वाले सारे तंतु बुरी तरह सड चुके हैं और यही हमारे समय और दौर कि सबसे बड़ी हकीक़त है. ‘ प्यार ’ , ‘ दोस्ती ’ , ‘ माँ ’ , ‘ बाप ’ , ‘ संतान ’ जैसे भरी-भरकम शब्द अब खोखले सिद्ध हो गए हैं. जाहिर है समाज बदल रहा है, उसके मूल्य बदल रहे हैं इसलिए शब्दों के मायने भी बदल रहे हैं. शब्द पहले जिन मूल्यों के कारण भारी रूप धरे हुए थे वे मूल्य ही जब सिकुड़ गए हों तो उन शब्दों कि क्या बिसात बची है. अनुराग कश्यप निर्देशित फिल्म ‘ ugly ’ समाज के इसी सड़ांध को अपने सबसे विकृत रूप में सामने लाने का काम करती है.              अकादमिक दुनिया से लेकर बहुत सारी विचारधारात्मक बहसों के दौरान यह बात बार-बार सुनी और

अग्‍ली के लिए लिखे गौरव सोलंकी के गीत

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अनुराग कश्‍यप की फिल्‍म अग्‍ली के गीत गौरव सोलंकी ने लिखे हैं। मेरा सामान उनके ब्‍लाग्‍ा का नाम है। उन्‍हें आप फेसबुक और ट्विटर पर भी पा सकते हैं। खुशमिजाज गौरव सोलंकी मुंबइया लिहाज से सोशल नहीं हैं,लेकिन वे देश-दुनिया की गतिविधियों से वाकिफ रहते हैं। इन दिनों वे एडवर्ल्‍ड में आंशिक रूप से सक्रिय हैं। और एक फिल्‍म स्क्रिप्‍ट भी लिख रहे हैं। प्रस्‍तुत हैं अग्‍ली के गीत... सूरज है कहां सूरज है कहाँ ,  सर में आग रे ना गिन तितलियां ,  अब चल भाग रे मेरी आँख में   लोहा है क्या मेरी रोटियों में काँच है गिन मेरी उंगलियां क्या पूरी पाँच हैं ये मेरी बंदूक देखो, ये मेरा संदूक है घास जंगल जिस्म पानी  कोयला मेरी भूख हैं   चौक मेरा गली मेरी,  नौकरी वर्दी मेरी   धूल धरती सोना रद्दी,  धूप और सर्दी मेरी   मेरी पार्किंग है,  ये मेरी सीट है तेरा माथा है ,  ये मेरी ईंट है तेरी मिट्टी से मेरी मिट्टी तक आ रही हैं जो ,  सारी रेलों से रंग से ,  तेरे रिवाज़ों से तेरी बोली से ,  तेरे मेलों से कीलें चुभती हैं चीलें दिखती हैं लकड़ियां गीली नहीं हैं तेल है, तीली यहीं है मेरा झंडा

बेचैन रहते हैं अनुराग कश्यप

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-अजय ब्रह्मात्मज     28 मई को अनुराग कश्यप की फिल्म ‘अग्ली’ फ्रांस में रिलीज हुई। फ्रांसीसी भाषा में इसे डब किया गया था। अनुराग कश्यप चाहते हैं कि ‘अग्ली’ भारत में भी रिलीज हों। उन्होंने फिल्म में धूम्रपान के दृश्यों के साथ आने वाली चेतावनी के खिलाफ जंग छेड़ रखी थी। उनका मानना है कि फिल्म देखते समय लिखे शब्दों में ऐसी चेतावनी धूम्रपान के खिलाफ सचेत करने का बचकाना प्रयास है। अपने इस तर्क के बावजूद अनुराग अपना केस हार चुके हैं। हाई कोर्ट ने उन्हें बताया है कि अभी सुप्रीम कोर्ट में इसी से संबंधित एक मामला दर्ज है, इसलिए हाई कोर्ट किसी भी फैसले पर नहीं पहुंच सकता। अनुराग मानते हैं कि फिलहाल इस मसमले में कुद नहीं किया जा सकता। उन्होंने ‘अग्ली’ की भारतीय रिलीज का फैसला अब निर्माता और निवेशकों पर छोड़ रखा है। वे कहते हैं, ‘निर्माताओं ने मेरा लंबा साथ दिया। वे मेरे साथ बने रहे, लेकिन अब उन्हें दिक्कत महसूस हो रही है। ‘अग्ली’ फ्रांस में रिलीज हो चुकी है। निर्माता जल्दी ही यहां भी रिलीज की घोषणा करेंगे।’     पिछले हफ्ते रिलीज हुई निशा पाहुजा की डाक्यूमेंट्री ‘द वल्र्ड बिफोर हर’ ने अनुराग