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Showing posts from 2020

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को

  सिनेमालोक साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को -अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों जमशेदपुर की फिल्म अध्येता और लेखिका विजय शर्मा के साथ उनकी पुस्तक ‘ऋतुपर्ण घोष पोर्ट्रेट ऑफ अ डायरेक्टर’ के संदर्भ में बात हो रही थी. उनकी यह पुस्तक नॉट नल पर उपलब्ध है. विजय शर्मा ने बांग्ला के मशहूर और चर्चित निर्देशक ऋतुपर्ण घोष के हवाले से उनकी फिल्मों का विवरण और विश्लेषण किया है. इस पुस्तक को पढ़ते हुए मैंने गौर किया कि उनके अधिकांश फिल्में किसी ने किसी साहित्यिक कृति पर आधारित हैं. उनकी ज्यादातर फिल्में बांग्ला साहित्य पर केंद्रित हैं. दो-तीन ही विदेशी भाषाओं के लेखकों की कृति पर आधारित होंगी. विजय शर्मा से ही बातचीत के दरमियान याद आया कि भारतीय और विदेशी भाषाओं की फिल्मों में साहित्यिक कृतियों पर आधारित फिल्मों की प्रबल धारा दिखती है. एक बार कन्नड़ के प्रसिद्ध निर्देशक गिरीश कसरावल्ली से बात हो रही थी. उन्होंने 25 से अधिक फिल्में साहित्य से प्रेरित होकर बनाई हैहैं. मलयालम, तमिल, तेलुगू में भी साहित्यिक कृतियों पर आधारित फ़िल्में मिल जाती हैं. सभी भाषाओं के फिल्मकारों ने अपनी संस्कृति और भाषा के

सिनेमाहौल : निर्माताओं का अतिरिक्त खर्च

  सिनेमाहौल   निर्माताओं का अतिरिक्त खर्च   - अजय ब्रह्मात्मज   धीरे-धीरे शुरुआत हो गई. फिल्में फ्लोर पर जाने लगी है. छोटे-बड़े निर्माता सरकारी निर्देश के मुताबिक मानक संचालन प्रक्रिया का पालन करते हुए सुरक्षित माहौल में फिल्मों की शूटिंग कर रहे हैं. इस प्रक्रिया   में निर्माताओं का रोजमर्रा खर्चा बढ़ गया है. फिल्मों के प्रोडक्शन का यह घोषित रिवाज है कि निर्माण का छोटा-बड़ा सभी खर्च निर्माता को ही उठाना पड़ता है. अभी निर्माता को कोविड-19 से बचाव के सारे इंतजाम करने पड़ रहे हैं. उन्हें यह भी सावधानी बरतनी पड़ रही है कि किसी भी फिल्म यूनिट में मूलभूत जरूरत से अधिक कलाकार और तकनीशियन सेट पर एक साथ मौजूद न हों. शूटिंग में एक्टिव सदस्यों को पर्याप्त सुविधा और सहयोग मिले. इससे काम की रफ़्तार थोड़ी धीमी हो गयी है. पहले आशंका थी कि लोकप्रिय फिल्म स्टार शूटिंग के लिए शायद तैयार ना हों. प्रोडक्शन यूनिट भी किसी प्रकार की जोखिम के लिए तैयार नहीं थी. भला कौन चाहेगा कि किसी भी फिल्म का चेहरा बना कलाकार बीमार और संक्रमित हो जाये. पर्दे की पीछे काम कर रहे व्यक्तियों को तो बदला जा सकता है. छोटे-मो

सिनेमालोक : 78 के हुए अमिताभ बच्चन

  सिनेमालोक 78 के हुए अमिताभ बच्चन -अजय ब्रह्मात्मज हाल ही में अमिताभ बच्चन ने सोशल मीडिया पर एक तस्वीर लगाई. वह एक खास कंपनी का मास्क लगाये बैठे हैं. उन्होंने कंपनी का नाम भी लिखा. बहुत मुमकिन है कि वह अप्रत्यक्ष इंडोर्समेंट हो, लेकिन उसके आगे की पंक्ति हम सभी के लिए प्रेरक है. उन्होंने लिखा ‘ 15 घंटे काम है करना’. अब जरा हम अपने डेली रूटीन पर गौर करें. हम-आप कितने घंटे काम करते हैं? मैं युवा दोस्तों की बातें नहीं कर रहा हूं, जो किसी मल्टीनेशनल या नेशनल कंपनी के लिए ‘वर्क फ्रॉम होम’ की वजह से 24 घंटे के मुलाजिम हो गए हैं. देश के वरिष्ठ नागरिक बमुश्किल चार-पांच घंटे काम करते हैं. हां उनका उनके दस-बारह घंटे सभी की आलोचना करने में जरूर खर्च होते हैं. अमिताभ बच्चन की सक्रियता पर नीम और मजाक चलते रहते हैं. कुछ लोग कहते हैं ‘बुड्ढा मानता ही नहीं’. अमिताभ बच्चन ने फिल्म बना कर जवाब दिया ‘बुड्ढा होगा तेरा बाप’. कुछ लोग यह भी कहते हैं कि उन्हें अपने बेटे अभिषेक बच्चन के लिए काम करना पड़ता है. अमिताभ बच्चन बगैर काम किए नहीं रह सकते. मुझे उनके ट्विटर और ब्लॉग से प्रतीत होता है कि उनके ह

सिनेमालोक : यशराज फिल्म्स के 50 साल

  सिनेमालोक यशराज फिल्म्स के 50 साल -अजय ब्रह्मात्मज अपने बड़े भाई बीआर चोपड़ा से 1970 में अलग होने के कुछ समय बाद यश चोपड़ा ने यशराज फिल्म्स की स्थापना की. 1971 में यशराज फिल्म्स अस्तित्व में आया. पिछले 50 वर्षों में यह प्रोडक्शन कंपनी विकसित होकर अभी सुगठित और व्यवस्थित स्टूडियो के रूप में कार्य कर रही है. इस दरमियान यशराज फिल्म्स ने 81 फिल्में प्रोड्यूस की हैं. इनके अलावा अनेक फिल्मों का डिस्ट्रीब्यूशन किया है. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी कार्यप्रणाली, व्यवस्था और एकाग्रता से यह प्रतिष्ठित प्रोडक्शन कंपनी गई है. यशराज फिल्म्स का मुख्य उद्देश्य मनोरंजन जगत में दर्शकों की रुचि के मुताबिक फिल्मों और अन्य रोचक सामग्रियों का निर्माण करना है. स्टूडियो के स्वरूप में आने के पहले यश चोपड़ा और आदित्य चोपड़ा ही फिल्मों का निर्देशन करते थे. अभी यशराज स्टूडियो बाहरी निर्देशकों से तीन फिल्मों का अनुबंध कर निर्माण करता है. यश चोपड़ा जालंधर में पले-बढ़े. अपने बड़े भाई बीआर चोपड़ा की तरह उनका मन पढ़ाई में नहीं लगता था. उन्होंने ऊंची शिक्षा ग्रहण नहीं की. सिर्फ 19 साल की उम्र में अपने बड़े

संगीत की अनन्य साधक लता जी

  लता मंगेशकर संगीत की अनन्य साधक लता जी -अजय ब्रह्मात्मज सृजनात्मक प्रतिभ के शुरूआती साल करियर की नींव होते हैं. किसी भी क्षेत्र के कलाकार की प्रसिद्धि और योगदान को समझने के लिए उन व्यक्तियों और प्रतिभाओं को याद रखना चाहिए,जिन्होंने आरंभिक सहारा और प्रोत्साहन दिया. आज लता मंगेशकर का जन्मदिन है. इस अवसर पर हम उनके करियर की शुरुआत पर गौर करते हैं. किसी ने सही कहा है कि हमारे पास गंगा है, ताजमहल है, कश्मीर है और हमारे पास लता मंगेशकर हैं. लता मंगेशकर की आवाज की रूहानी मौजूदगी राहत देती है. उनकी आवाज का जादू दिल-ओ-दिमाग पर असर करता है. हमें ताजादम करता है. वह स्मृति की परिचित गलियों में ले जाता है. उनकी आवाज इस संसार की अकेली यात्रा में हमसफर बन जाती है. भिगो देती है. भावनाओं से सराबोर कर देती है. उन को सुनते हुए बड़े हुए व्यक्ति पुख्ता गवाही दे सकते हैं कि कैसे निराशा और उम्मीद के पलों में लता मंगेशकर की आवाज में उन्हें चैन, करार और सुकून दिया है. उन्हें हिम्मत और रहत दी है. सितंबर 1929 को पंडित दीनानाथ मंगेशकर के परिवार में उनका जन्म हुआ. भाई बहनों में सबसे बड़ी लता मंगेशकर ने

फिल्म समीक्षा : हलाहल

  फिल्म समीक्षा हलाहल निर्देशक: रणदीप झा निर्माता : इरोस लेखक : जीशान कादरी और जिब्रान नूरानी मुख्या कलाकार : सचिन खेडेकर,बरुन सोबती स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म : इरोस अवधि : 136 मिनट प्रदर्शन तिथि : 21 सितम्बर 2020 -अजय ब्रह्मात्मज इरोस पर स्ट्रीम हो रही ‘हलाहल’ रणदीप झा की पहली फिल्म है.   रणदीप   झा ने फिल्म करियर की शुरुआत दिबाकर बनर्जी की फिल्म ‘शांघाई’ से की थी. बाद में अनुराग कश्यप की टीम में वे शामिल हुए. अनुराग के साथ वे ‘अग्ली’, ‘रमन राघव’ और ‘मुक्काबाज’ फिल्म में एसोसिएट डायरेक्टर   रहे. इस फिल्म को जीशान कादरी और जिब्रान नूरानी ने लिखा है. फिल्म शिक्षा जगत मैं व्याप्त भ्रष्टाचार को छूती है. माना जा रहा है इस फिल्म की प्रेरणा मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले से ली गई है. ‘हलाहल’ की घटनाएं और प्रसंग में व्यापम की व्यापकता तो नहीं है, लेकिन इस भ्रष्टाचार में लिप्त संस्थान,पोलिस, नेता और शहर के रसूखदार व्यक्तियों की मिलीभगत सामने आती है. यूँ लगता है देश का पूरा तंत्र भ्रष्टाचार में लिप्त है और सभी के तार एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. ‘हलाहल’ रात की नीम रोशनी में

सिनेमालोक : हिंदी में बनें प्रादेशिक फिल्में

  सिनेमालोक हिंदी में बनें प्रादेशिक फिल्में लखनऊ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बुलावे पर मुंबई से पहुंचे फिल्मकार और फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े सक्रिय सदस्यों की बैठक चल रही है. कुछ दिनों पहले योगी आदित्यनाथ ने घोषणा की है कि वे उत्तर प्रदेश के नोएडा के आसपास फिल्म सिटी का निर्माण करेंगे. मंशा यह है कि उत्तर प्रदेश फिल्मों के निर्माण केंद्र के रूप में विकसित हो. उत्तर प्रदेश की प्रतिभाओं को मुंबई या किसी और शहर में जाकर संघर्ष नहीं करना पड़े. उत्तर प्रदेश के इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए. सरकारी पहल को मुंबई स्थित उत्तर प्रदेश के कलाकार फिल्मकार और तकनीशियन समर्थन दें. वहां दूसरे प्रदेशों की प्रतिभाएं भी जाकर काम कर सकें. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के विकेंद्रीकरण की बातें मैं पिछले 10 सालों से कर रहा हूं. मेरी राय में फिलहाल हुआ केंद्रीकरण हिंदी फिल्मों के विकास के लिए अप्रासंगिक और अनुचित हो चुका है. विषय, कल्पना और प्रयोग की कमी से पिछले दो दशकों में हिंदी फिल्मों में सिक्वल,रीमेक और फ्रेंचाइजी का चलन बढ़ा है. दर्शकों को फार्मूलाबद्ध मनोरंजन मिल जाता है. उन्हे

सिनेमालोक : हिंदी सिनेमा की हिंदी

  सिनेमालोक हिंदी सिनेमा की हिंदी -अजय ब्रह्मात्मज कल 14 सितम्बर को हिंदी दिवस था. पूरे देश में अनेक समारोह और जलसे हुए. सोशल मीडिया पर हिंदीप्रेमियों ने एक-दूसरे को बधाइयां दीं. हिंदी के समर्थन में ढेर सारी बातें लिखी गयीं. अगर हम सोशल मीडिया की पोस्ट और टिप्पणियों का अध्ययन करें तो पाएंगे कि मुख्य स्वर कातर और दुखी था. उन्हें कहीं न कहीं यह शिकायत थी कि हिंदी को जो महत्व मिलना चाहिए, वह उसे नहीं मिल पा रहा है. आजादी के 72 सालों के बाद भी इस देश की राजभाषा होने के बावजूद हिंदी प्रशासन, शिक्षा और अनेक संस्थानों से बाहर है. कुछ टिप्पणियों में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को भी निशाना बनाया गया. यह आपत्ति रही है कि हिंदी फिल्मों के स्टार और कलाकार सार्वजनिक मंचों से सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी का ही इस्तेमाल करते हैं. चंद कलाकार जरूर ऐसे हैं, जो हिंदी में भी संवाद करते हैं या कर सकते हैं. अधिकांश की मजबूरी है कि हिंदी बोलने में उनका प्रवाह टूट जाता . पिछले 10 सालों में पूरे देश में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी हुआ है. मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग के बच्चे भी अब अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई करते हैं

सिनेमालोक : 21वीं सदी के भारत(अक्षय) कुमार

  सिनेमालोक 21वीं सदी के भारत(अक्षय) कुमार -अक्षय कुमार कल अक्षय कुमार का जन्मदिन है. फिलहाल वह स्कॉटलैंड में अपनी नई फिल्म ‘बेल बॉटम’ की शूटिंग कर रहे हैं. इस फिल्म का लेखन असीम अरोड़ा और परवेज़ शेख ने किया है. फिल्म का निर्देशन रंजीत एम तिवारी के हाथों में है. उनकी पिछली फिल्म ‘लखनऊ सेंट्रल’ थी. फिल्म के निर्माता वासु भगनानी और निखिल आडवाणी हैं. कोविड- 19 महामारी की वजह से ठप फिल्म इंडस्ट्री की गतिविधियां जब आरंभ हुई तो अक्षय कुमार ने ही सबसे पहले शूटिंग आरंभ की. पहले एक सरकारी कैंपेन और अभी तो पूरी यूनिट के साथ विदेश चले गए हैं. कोविड- 19 के दौरान जारी सख्त हिदायतों के बीच उन्होंने शूटिंग आरंभ की है. उनकी पहलकदमी कहीं ना कहीं सरकार के साथ और समर्थन में मानी जा रही है’ पिछले साल आम चुनाव आरंभ होने के समय अक्षय कुमार ने ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पहला साक्षात्कार किया था. यह छिपी बात नहीं है कि वह सत्ता और सरकार के करीब हैं. सरकारी नीतियों के जबरदस्त पैरोकार हैं. वर्तमान सरकार के अभियानों और उजाले पक्षों को वे परदे पर ले आते हैं. उनकी ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’, ‘पैडमैन’, ‘मिशन

सिनेमालोक : बरतनी होगी सावधानी

  सिनेमालोक बरतनी होगी सावधानी -अजय ब्रह्मात्मज खबरें आ रही है कि फिल्मों की शूटिंग की तैयारियां चल रही हैं. पिछले स्तम्भ में मैंने सूचना दी थी अमिताभ बच्चन ‘कौन बन गया करोड़पति’ और अक्षय कुमार स्कॉटलैंड में ‘बेल बॉटम’ की शूटिंग कर रहे हैं. मुंबई के स्टूडियो मैं भी हलचलें आरंभ हो गई हैं. फिल्मसिटी और अन्य स्टूडियो में आने-जाने वाली गाड़ियों की संख्या बढ़ गई है. फ्लोर पर जाने के पहले सब कुछ देखा-परखा जा रहा है. इस बीच ऐड और इंडोर्समेंट की शूटिंग चल रही है. कुछ पॉपुलर छोटे शूट से सीख-समझ रहे हैं कि किस तरह के एहतियात पर गौर करने की जरूरत है. वैक्सीन आने तक सरकार और स्थानीय प्रशासन की हिदायतों का पालन करना सभी की सेहत के लिए ठीक रहेगा. शॉट के लालच में कोई भी ढील नहीं बरती जा सकती. फिल्म की शूटिंग में निचले स्तर के जरूरी काम करने वाले कामगारों को सबसे ज्यादा खटना पड़ता है. उनकी सुरक्षा का पक्का इंतजाम भी नहीं रहता. नॉर्मल दिनों में हुई दुर्घटनाओं में मैं उनके ही शिकार होने की के समाचार मिलते हैं. अभी जो गतिविधियां आरंभ हुई हैं, उनमें शूटिंग के बेसिक इंतजाम में जुटे कामगारों को सुरक

सिनेमालोक : शूटिंग की अनुमति मिलने की ख़ुशी

  सिनेमालोक शूटिंग की अनुमति मिलने की ख़ुशी -अजय ब्रह्मात्मज सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने स्वयं सोशल मीडिया पर आकर फिल्म इंडस्ट्री में प्रोडक्शन आरंभ करने का एसओपी( स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) जारी किया है. हिंदी समेत देश के सभी भाषाओं की फिल्म इंडस्ट्री में इससे राहत और खुशी मिली है. लगभग पांच महीनों से ठप गतिविधियां सीमित पैमाने पर आरंभ हो सकेंगी. मुंबई में खुशी की खास लहर है. मुंबई के फिल्मकारों और कलाकारों ने भारत सरकार के जरूरी कदम का स्वागत किया है. मंत्री महोदय ने भी जोर दिया है कि देश की अर्थव्यवस्था को सुचारु करने में शूटिंग की अनुमति देना आवश्यक है. उन्होंने स्वीकार किया है कि देश की अर्थव्यवस्था में फिल्मों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है. एसओपी में दुनिया भर में पालन हो रहे एहतियात का उल्लेख किया गया है. मसलन शूटिंग में शामिल सभी कलाकारों और तकनीशियनों के लिए फेस मास्क लगाना जरूरी होगा. केवल कैमरे के सामने खड़े कलाकारों को फेस मास्क हटाने की अनुमति मिल सकती है. यह तो सुरक्षा के लिए जरूरी भी होगा. वैसे एक सवाल बना हुआ है कि फिल्मों के अंतरंग और आलिंगन के

सिनेमालोक : 90 सालों की सुरयात्रा

  सिनेमालोक 90 सालों की सुरयात्रा -अजय ब्रह्मात्मज इन दिनों हिंदी में सिनेमा पर किताबें लिखी जा रही हैं. व्यवसायिक प्रकाशन गृह तो बिकाऊ किताबों की योजना के तहत ज्यादातर लोकप्रिय फिल्म सितारों की जीवनियाँ छापने में रुचि लेते हैं. इसके अलावा वे पाठकों की तात्कालिक जरूरतों और जिज्ञासा(स्क्रिप्ट लेखन,फिल्म पत्रकारिता आदि) को ध्यान में रखकर प्रकाशन योजनाएं बनाते हैं. दिक्कत यह है कि इन प्रकाशन गृहों में साहित्य के संपादकों की तरह सिनेमा और अन्य साहित्यिक विषयों के संपादक नहीं है. वे इनके आउटसोर्सिंग भी नहीं करते. नतीजा यह होता है कि वे साहित्यकारों या अनुवादकों से ही फिल्मों की किताबें भी लिख पाते हैं. वे उनकी टिप्पणियों का संग्रह प्रकाशित करते हैं. उससे भी ज्यादा अफसोस की बात है कि राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के निर्णायक ऐसी किताबों और टिप्पणियों के संग्रह को राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित कर शेष गंभीर और ईमानदार लेखकों को हतोत्साहित करते हैं. इस विकट माहौल में राजीव श्रीवास्तव की पुस्तक ‘सात सुरों का मेला’ का आना एक सुखद घटना है. इसे सूचना और प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन विभाग ने प्