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फिल्‍म समीक्षा : राज रीबूट

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डर नहीं है हॉरर में -अजय ब्रह्मात्‍मज विक्रम भट्ट की राज श्रृंखला की अगली कड़ी है ‘ राज रीबूट ’ । पहली से लेकर अभी तक इन सभी हॉरर फिल्‍मों में सुहाग की रक्षा के इर्द-गिर्द ही कहानियां बुनी जाती हैं। विक्रम भट्ट के इस फार्मूले में अब कोई रस नहीं बचा है। फिर भी वे उसे निचोड़े जा रहे हैं। ‘ राज रीबूट ’ में वे अपने किरदारों को लकर रोमानिया चले गए हैं। रोमानिया का ट्रांसिल्‍वेनिया ड्रैकुला के लिए मशहूर है। एक उम्‍मीद बंधती है कि शायद ड्रैकुला के असर से डर की मात्रा बढ़े। फिल्‍म शुरू होते ही समझ में आ जाता है कि विक्रम भट्ट कुछ नया नहीं दिखाने जस रहे हैं। रेहान और शायना भारत से रोमानिया शिफ्ट करते हैं। रेहान अनचाहे मन से शायना की जिद पर रोमानिया आ जाता है। पहली ही शाम को दोनों अलग-अलग कमरों में जाकर सोते हैं। हमें सूत्र दिया जाता है कि रेहान के मन में कोई राज है,जिसे वह बताना नहीं चाहता। उधर शायना के रोमानी ख्‍वाब बिखर जाते हैं। वह इस राज को जानना चाहती है। रोमानिया में वे जिस महलनुमा मकान में रहते हैं,वहां कोई आत्‍मा निवास करती है। पहले चंद दृश्‍यों में ही आत्‍मा का आगमन

लकी नंबर है 13 - कृति खरबंदा

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  --प्राची दीक्षित फिल्म जगत को भट्ट कैंप से समय –समय पर सितारे मिलते रहे हैं। इमरान हाशमी, जॉन अब्राहम और बिपाशा बसु इसकी ताकीद करते रहे हैं। इस कड़ी में अगला नाम कृति खरबंदा का जुड़ रहा है। उस कैंप की सफल फ्रेंचाइजी ‘राज’ की तीसरी किश्त ‘ राज रीबूट ’ से कृति हिंदी फिल्मों में डेब्यू कर रही हैं। इससे पहले वे साउथ की फिल्में करती रही हैं। उनकी प्रतिभा से प्रभावित हो विशेष फिल्म्स ने उनके संग तीन फिल्मों का करार भी किया है। राज ने बनाया जिम्मेदार कृति बताती हैं , ‘ 2009  में मैंने साउथ फिल्म इंडस्ट्री से अपना करियर शुरू किया। मेरा मकसद हिंदी सिनेमा में जुड़ना नहीं था। मैं कुछ साल एक्टिंग कर शादी करना चाहती थी, लेकिन वक्त ने मेरी दिशा बदल दी। मुकेश भट्ट ने साउथ की फिल्मों में मेरा काम देखा था। उन्होंने एक दिन मुझे मिलने के लिए बुलाया। हमारी मुलाकात हुई। हमने जीवन, मुंबई और अध्यात्म की बातें की। एक हफ्ते बाद मुझे इस फिल्म का प्रस्ताव मिल गया। मुझे लगा की ‘ राज रीबूट ’ में मैं पैरलल लीड में हूं। पर उन्होंने कहा कि यह महिला प्रधान फिल्म है। यह बिना

फिल्म समीक्षा : मिस्टर एक्स

स्टार:   डेढ़ स्टार विक्रम भट्ट निर्देशित इमरान हाशमी की 'मिस्टर एक्स' 3डी फिल्म है। साथ ही एक नयापन है कि फिल्म का नायक अदृश्य हो जाता है। यह नायक अदृश्य होने पर भी अपनी प्रेमिका को चूमने से बाज नहीं आता, क्योंकि पर्दे पर इमरान हाशमी हैं। इमरान हाशमी की कोई फिल्म बगैर चुंबनों के समाप्त नहीं होती। विक्रम भट्ट 3डी तकनीक में दक्ष हैं। वे अपनी फिल्में 3डी कैमरे से शूट भी करते हैं, लेकिन इस तकनीकी कुशलता के बावजूद उनकी 'मिस्टर एक्स' में कथ्य और निर्वाह की कोई नवीनता नहीं दिखती। फिल्म पुराने ढर्रे पर चलती है। रघु और सिया एटीडी में काम करते हैं। दोनों अपने विभाग के कर्मठ अधिकारी हैं। एक-दूसरे से प्रेम कर रहे रघु और सिया शादी करने की छट्टी ले चुके हैं। उन्हें बुलाकर एक खास असाइनमेंट दिया जाता है। कर्तव्यनिष्ठ रघु और सिया पीछे नहीं हटते। वे इस असाइनमेंट में एक कुचक्र के शिकार होते हैं। स्थितियां ऐसी बनती हैं कि दोनों एक-दूसरे के खिलाफ हो जाते हैं। अदृश्य हो सकने वाला नायक अब बदले पर उतारू होता है। वह स्पष्ट है कि कानून उसकी कोई मदद नहीं कर सकता, इसलिए

फिल्‍म समीक्षा : हॉरर स्‍टोरी

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आ डर मुझे मार -अजय ब्रह्मात्‍मज किसी प्रकार की कोई गलतफहमी नहीं रहे, इसलिए विक्रम भट्ट ने फिल्म का नाम ही 'हॉरर स्टोरी' रख दिया। डरावनी और भुतहा फिल्में बनाने में विशेषज्ञता हासिल कर चुके विक्रम भट्ट ने इस बार खुद को लेखन और निर्माण तक सीमित रखा है। निर्देशन की जिम्मेदारी आयुष रैना की है। सात दोस्त हैं। उनमें से एक अमेरिका जा रहा है। उसकी विदाई की पार्टी चल रही है। पार्टी को इंटरेस्टिंग बनाने के लिए सातों दोस्त पब में मिली एक टीवी खबर को फॉलो करते हुए उस होटल में जा पहुंचते हैं, जिसे भुतहा माना जाता है। वहां कई रहस्य छिपे हैं। रहस्य जानने का रोमांच उन्हें वहां खींच लाता है। होटल में घुसने के बाद उन्हें एहसास होता है कि गलती हो गई है। वे होटल में कैद हो जाते हैं और फिर एक-एक कर मारे जाते हैं। माया की भटकती दुष्ट आत्मा उन्हें परेशान कर रही है। बचने की उनकी कोशिशें नाकाम होती रहती हैं। हॉरर फिल्मों में पहले से जानकारी रहती है कि भूत या आत्मा और जीवित व्यक्तियों के बीच फिल्म खत्म होने तक संघर्ष चलता रहेगा। लेखक, निर्देशक और तकनीशियन अगर खूबी के साथ थ्रिल बर

फिल्‍म समीक्षा : राज 3

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  डर के आगे मोहब्बत है   -अजय ब्रह्मात्मज      अच्छी बात है कि इस बार विक्रम भट्ट ने 3डी के जादुई प्रभाव को दिखाने के बजाए एक भावनापूर्ण कहानी चुनी है। इस कहानी में छल-कपट, ईष्र्या, घृणा, बदला और मोहब्बत के साथ काला जादू है। काला जादू के बहाने विक्रम भट्ट ने डर क्रिएट किया है, लेकिन दो प्रेमी (खासकर हीरो) डर से आगे निकल कर मोहब्बत हासिल करता है। कल तक टॉप पर रही फिल्म स्टार सनाया शेखर अपने स्थान से फिसल चुकी हैं। संजना कृष्ण पिछले दो साल से बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड ले रही हैं। सनाया किसी भी तरह अपनी खोई हुई पोजीशन हासिल करना चाहती है। पहले तो भगवान और मंत्र के जरिए वह यह कोशिश करती है। सफल नहीं होने पर वह काला जादू और तंत्र के चक्कर में आ जाती है। काला जादू राज-3 में एक तरकीब है डर पैदा करने का, खौफ बढ़ाने का। काला जादू के असर और डर से पैदा खौफनाक और अविश्वसनीय दृश्यों को छोड़ दें, तो यह प्रेमत्रिकोण की भावनात्मक कहानी है। फिसलती और उभरती दो अभिनेत्रियों के बीच फंसा हुआ है निर्देशक आदित्य अरोड़ा। वह सनाया के एहसानों तले दबा है। वह पहले तो उसकी मदद करता है, लेक

दो तस्‍वीरें : बिपाशा बसु

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बिपाशा बसु की दोनों तस्‍वीरें राज 3 से ली गई हैं। इस पफल्‍म में वह ढलती उम्र की अभिनेत्री की भूमिका में हैं। कहते हैं कि विक्रम भट्ट ने उनका किरदार अमीषा पटेल से प्रेरित होकर गढ़ा है। कभी अमीषा और विक्रम गहरे दोस्‍त थे।

फिल्‍म समीक्षा : डेंजरस इश्‍क

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  जन्म-जन्मांतर की प्रेमकहानी -अजय ब्रह्मात्‍मज च्छी है 21 वीं सदी। जन्म-जन्मांतर से मिलने के लिए भटकती आत्माओं का मिलन हो जाता है। अधूरे प्रेम और पुनर्जन्म के साथ विक्रम भट्ट ने रहस्य भी जोड़ दिया है। यह फिल्म एक प्रकार से करिश्मा कपूर की रीलांचिंग या दूसरी पारी की शुरूआत है। करिश्मा कपूर को यह जाहिर करने का अच्छा मौका मिला है कि वह हर प्रकार की भूमिकाएं निभा सकती हैं। उन्होंने संजना और उसके पूर्वजन्म के किरदारों को पूरे इमोशन और आवेग के साथ निभाया है। ऐसी प्रेमकहानियां फैंटेसी ही होती हैं। देश की श्रुति परंपरा और पुराने साहित्य मैं पुनर्जन्म और भटकती आत्माओं के अनेक किस्से मिलते हैं। कुछ रोचक और मनोरंजक फिल्में भी बनी हैं। डेंजरस इश्क उसी श्रेणी की फिल्म है। मुमकिन है कि मल्टीप्लेक्स के दर्शक ऐसी कहानी की अवधारणा से ही बिदके,लेकिन छोटे शहरों,कस्बों और देहातों में यह फिल्म पसंद की जा सकती है। विक्रम भट़ट रोचकता बनाए रखने की कोशिश करते हैं। पिछले जन्मों की कहानियों को एक-एक कर उन्होंने लेखक की मदद से गूंथा है। हर जन्म की घटनाओं और वियोग में नाटकीयता का प्रभाव

फिल्‍म समीक्षा : हांटेड

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0 हांटेड हिंदी में बनी पहली 3डी फिल्म है। 3ड ी की वजह से दृश्यों में गहराई नजर आने लगती है। मसलन अगर दो दीवारें हों तो आगे और पीछे की दीवार के बीच की दूरी भी समझ में आती है। इसकी वजह से फिल्म देखने का आनंद बढ़ जाता है। 3डी एक तकनीक है, जिसका इस्तेमाल फिल्म शूट करते समय या पोस्ट प्रोडक्शन में भी किया जा सकता है। हांटेड के दृश्यों की कल्पना 3डी तकनीक को ध्यान में रख कर की गई है। 0 हिंदी फिल्मों के दर्शकों के लिए 3 डी का मतलब फिल्म देखते समय यह एहसास होना भी है कि पर्दे से कोई चीज निकली और सीधे उन तक आई। जैसे तीर चलें तो दर्शक बचने के लिए अपना सिर झटक लें। 2डी से 3डी बनाई गई फिल्मों में एक दो ऐसे दृश्य रखे जाते थे। हांटेड में ऐसे कई दृश्य हैं, कई बार तो लगता है कि पर्दे से बढ़ा हाथ हमारे चेहरे को छू लेगा। 0 हांटेड का आनंद लेने के लिए जरूरी है कि आप भूत-प्रेत और आत्माओं के साथ हिंदी फिल्मों पर भी विश्वास करते हों। अगर वैज्ञानिक सोच, तर्क और कार्य-कारण संबंध खोजेंगे तो हॉरर फिल्मों की फंतासी और हांटेड का मजा किरकिरा हो जाएगा। हॉरर फिल्में पूरी तरह से काल्पनिक और अतार्किक होती ह

हमारा काम सिर्फ मनोरंजन करना है: विक्रम भट्ट

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-अजय ब्रह्मात्‍मज आपका जन्म मुंबई का है। फिल्मों से जुडाव कैसे और कब हुआ? मेरे दादाजी का नाम था विजय भट्ट। वे प्रसिद्ध प्रोडयूसर-डायरेक्टर रहे हैं। हिमालय की गोद में, गूंज उठी शहनाई, हरियाली और रास्ता बैजू बावरा जैसी बडी पिक्चरें बनाई। मेरे पिता प्रवीण भट्ट कैमरामैन थे। मैं डेढ साल की उम्र से ही फिल्म के सेट पर जा रहा था। अंकल अरुण भट्ट डायरेक्टर व स्टोरी राइटर थे, पापा कैमरामैन थे तो दादा डायरेक्टर। घर में दिन-रात फिल्मों की चर्चा होती थी। बचपन से फिल्म इन्फॉर्मेशन और ट्रेड गाइड पत्रिकाएं देखता आ रहा हूं घर में। ऐसे माहौल में फिल्मों से इतर कुछ और सोचने की गुंजाइश थी ही कहां। हालांकि मेरे चचेरे भाई फिल्मों से नहीं जुडे। मुझे शुरू से यह शौक रहा। कहानियां सुनाने का शौक मुझे बहुत था। सुना है कि कॉलेज के दिनों में आपने और बॉबी देओल ने मिलकर फिल्म बनाई थी? तब केवल सोलह की उम्र थी मेरी। मैंने निर्देशन दिया और बॉबी ने एक्ट किया। कब फैसला किया कि डायरेक्टर ही बनना है, एक्टर नहीं? सात साल का था, तभी फैसला कर लिया था कि डायरेक्टर ही बनूंगा। इतनी कम उम्र में करियर का फैसला कम ही लोग करते हैं शाय

फिल्‍म समीक्षा : शापित

डराने में सफल  -अजय  ब्रह्मात्‍मज हिंदी में बनी डरावनी फिल्में लगभग एक जैसी होती हैं। किसी अंधविश्वास को आधार बनाकर कहानी गुंथी जाती है और फिर तकनीक के जरिए दर्शकों को चौंकाने की कोशिश की जाती है। साउंड इफेक्ट से दृश्यों का झन्नाटेदार अंत किया जाता है और हम अपेक्षित ढंग से अपनी सीट पर उछल पड़ते हैं। विक्रम भट्ट अपनी डरावनी फिल्मों में कुछ अलग करते हैं और दर्शकों में डर पैदा करने में सफल होते हैं। शापित में अमन अपनी प्रेमिका काया के परिवार को मिले पुराने शाप को खत्म करने के लिए आत्मा की तलाश में निकलता है। इस खोज में डॉ ़पशुपति उसके साथ हैं। पता चलता है किएक दुष्ट आत्मा सदियों पहले दिए अभिशाप की रक्षा कर रही है। उस आत्मा की मुक्ति के बाद ही शाप से मुक्त हुआ जा सकता है। चूंकि अमन और काया के बीच बेइंतहा प्यार है, इसलिए अमन हर जोखिम के लिए तैयार है। विक्रम भट्ट ने स्पेशल इफेक्ट से दृश्यों को डरावना बनाने के साथ उनके पीछे एक लॉजिक भी रखा है। अपनी खासियत के मुताबिक उन्होंने मुख्य किरदारों की प्रेमकहानी में दुष्टात्मा को विलेन की तरह पेश किया है। अतीत में लौटने केदृश्य सुंदर हैं। विक्रम

दरअसल:बन रही हैं डरावनी फिल्में

-अजय ब्रह्मात्मज हालिया रिलीज भट्ट कैंप की मोहित सूरी निर्देशित फिल्म राज-द मिस्ट्री कंटीन्यूज को 2009 की पहली हिट फिल्म कही जा रही है। इस फिल्म ने इमरान हाशमी और कंगना रानावत के बाजार भाव बढ़ा दिए। भट्ट कैंप में खुशी की लहर है और सोनी बीएमजी भी मुनाफे में रही। उल्लेखनीय है कि सांवरिया और चांदनी चौक टू चाइना में विदेशी प्रोडक्शन कंपनियों को नुकसान हुआ था। ट्रेड पंडित राज-द मिस्ट्री कंटीन्यूज की सफलता का श्रेय पुरानी राज को देते हैं। इसके अलावा, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में यह धारणा काफी मजबूत हो रही है कि डरावनी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर अच्छा बिजनेस करती हैं। सन 2008 में रामगोपाल वर्मा की फिल्म फूंक और विक्रम भट्ट की 1920 ने ठीकठाक कारोबार किया। इसके पहले रामू की भूत भी सफल रही, लेकिन उसकी कामयाबी से प्रेरित होकर बनी दूसरी डरावनी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर लुढ़क गई। पिछले साल फूंक को पसंद करने के बाद विक्रम भट्ट आशंकित थे कि शायद दर्शकों को 1920 पसंद न आए। दरअसल, उन्हें यह लग रहा था कि कुछ ही हफ्तों के अंतराल पर आ रही 1920 को दर्शक नहीं मिलेंगे, लेकिन उनकी आशंका निराधार निकली। रजनीश दुग्गल और अदा