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जासूस बन देखें ‘डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी’ : दिबाकर बनर्जी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज -इस फिल्म को देखने के लिए ऑडिएंस को किस तरह तैयार होना चाहिए। दर्शक आप की फिल्मों को लेकर द्वंद्व में रहते हैं। 0 बड़ा अच्छा सवाल किया आपने, लेकिन डायरेक्टर ही दर्शकों को बताता फिरे कि मेरी फिल्म को इस तरह देखो तो वह जरा अजीब सा लगता है। बहरहाल,मेरे हिसाब से हमारी फिल्मों में आजकल खाली टाइम बढ़ गया है। मैं पाता हूं कि सीन में गाने चल रहे हैं। डायलॉग चल रहा है, पर ऑडिएंस मोबाइल पर बातें कर रहे हैं। सिनेमा के बीच से बाहर जा चक्कर लगा कर आ रहे हैं। फिर वे कहना शुरू कर देते हैं कि यार हम तो बोर हो रहे हैं। इधर हिंदी फिल्में दर्शकों को बांधकर नहीं रख पा रही हैं। साथ ही सिनेमा के प्रति दर्शकों के समर्पण में भी कमी आई है। वे भी समर्पित भाव से फिल्में नहीं देखते। मेरा कहना है कि यार इतना आरामदेह सिनेमहॉल है। बड़ी सी हाई क्वॉलिटी स्क्रीन है। डॉल्बी साउंड है। अगर हम उस फिल्म के प्रति सम्मोहित न हो गए तो फिर फायदा क्या? कॉलेज स्टूडेंट को देखता हूं कि सिनेमा हॉल में बैठ वे आपस में तफरीह कर रहे हैं। मस्ती कर रहे हैं। सामने स्क्रीन पर चल रही फिल्म तो उनके लिए सेकेंडरी चीज है। सा

सुशांत सिंह राजपूत की 'ब्‍योमकेश बख्‍शी' बनने की तैयारी

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-अजय ब्रह्मात्मज देश में इस साल जबरदस्त मॉनसून आया हुआ है और इसके छींटे कोलकाता की गलियों और सडक़ों को मंगलवार को भीगो रहे थे। ठहरा शहर कुछ और थमकर चल रहा था। शहर की इस मद्धिम चाल के बीच भी ‘पार्क स्ट्रीट’ के पास शरगोशियां चालू थीं। मौका था ‘ब्योमकेश बख्शी’ के नायक सुशांत सिंह राजपूत के मीडिया से रू-ब-रू होने का। सुशांत सिंह राजपूत और दिबाकर बनर्जी ने मीडियाकर्मियों के साथ धरमतल्ला से खिदिरपुर तक की ट्राम यात्रा की। इस फिल्म में कोलकाता से जुड़ी पांच-छह दशक पुरानी कई चीजें देखने को मिलेंगी।     एक सवाल के जवाब में सुशांत ने बताया कि मैं छह दिन पहले से कोलकाता में हूं। इस दरम्यान वे डिटेक्टिव ब्योमकेश के व्यक्तित्व को साकार करने के लिए स्थानीय लोगों से मिलकर बात-व्यवहार सीख रहे हैं। गौरतलब है कि दिबाकर बनर्जी की फिल्म ब्योमकेश बख्शी में वे पांचवे दशक के आरंभ(1942 के आसपास) के किरदार को निभा रहे हैं। हिंदी दर्शकों के लिए यह किरदार अपरिचित नहीं है। दूरदर्शन से प्रसारित इसी नाम के धारावाहिक में वे किरदार से मिल चुके हैं। सालों बाद दिबाकर बनर्जी को किशोरावस्था में पढ़े शर्दिंदु बनर्जी

बाहरी प्रतिभाओं का बढ़ता दायरा

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दरअसल ... -अजय ब्रह्मात्मज     पिछले हफ्ते की खबर है कि दिबाकर बनर्जी के साथ यशराज फिल्म्स ने तीन फिल्मों का करार किया है। इनमें से दो फिल्में स्वयं दिबाकर बनर्जी निर्देशित करेंगे। तीसरी फिल्म के निर्देशन का मौका उनके सहयोगी कनु बहल को मिलेगा। फिल्म इंडस्ट्री पर नजर रख रहे पाठक अवगत होंगे कि एकता कपूर की प्रोडक्शन कंपनी बालाजी फिल्म्स ने विशाल भारद्वाज की ‘एक थी डायन’ का निर्माण किया है। जल्दी ही अनुराग कश्यप और करण जौहर का संयुक्त निर्माण भी सामने आएगा। ऊपरी तौर पर ऐसे अनुबंध, सहयोग और संयुक्त उद्यम हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में चलते रहते हैं। यहां उल्लेखनीय है कि दिबाकर बनर्जी, विशाल भारद्वाज और अनुराग कश्यप को जिन फिल्म कंपनियों ने अनुबंधित किया है, उनके मालिक फिल्म इंडस्ट्री के हैं। आज इन तीनों की प्रतिभाओं और संभावनाओं से अच्छी तरह परिचित होने के बाद ही वे ऐसे कदम उठा रहे हैं।     दरअसल, यह हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बाहर से आई प्रतिभाओं की बड़ी जीत है। पीछे पलट कर देखें तो तीनों फिल्मकारों ने छोटी और नामालूम सी फिल्मों से शुरुआत की। उनकी आरंभिक फिल्में पूरी तरह से हिंदी फिल्म इंडस

फिल्‍म समीक्षा : शांघाई-वरूण ग्रोवर

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वरूण ग्रोवर ने शांघाई की यह पर लिखी है। उनसे पूछे बगैर मैंने उसे चवन्‍नी के पाठकों के लिए यहां पोस्‍ट किया है। moifightclub.wordpress.com/2012/06/11/%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%AD%E0%A5%80-%E0%A4%A6%E0%A5%8B-%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%98%E0%A4%BE%E0%A4%88/ आनंद लें। नोट: इस लेख में कदम-कदम पर spoilers हैं. बेहतर यही होगा कि फिल्म देख के पढ़ें. (हाँ, फिल्म देखने लायक है.) आगे आपकी श्रद्धा. मुझे नहीं पता मैं लेफ्टिस्ट हूँ या राइटिस्ट. मेरे दो बहुत करीबी, दुनिया में सबसे करीबी, दोस्त हैं. एक लेफ्टिस्ट है एक राइटिस्ट. (वैसे दोनों को ही शायद यह categorization ख़ासा पसंद नहीं.) जब मैं लेफ्टिस्ट के साथ होता हूँ तो undercover-rightist होता हूँ. जब राइटिस्ट के साथ होता हूँ तो undercover-leftist. दोनों के हर तर्क को, दुनिया देखने के तरीके को, उनकी political understanding को, अपने अंदर लगे इस cynic-spray से झाड़ता रहता हूँ. दोनों की समाज और राजनीति की समझ बहुत पैनी है, बहुत नयी भी. अपने अपने क्षेत्र में दोनों शायद सबसे revolutionary, सबसे संजीदा विचार ले