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फिल्‍म समीक्षा : हेट स्‍टोरी 3

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बदले की कामुक कहानी -अजय ब्रह्मात्‍मज     तीन साल पहले विवेक अग्निहोत्री के निर्देशन में आई ‘ हेट स्‍टोरी ’ से बदले की ऐसी कहानी गढ़ी गई,जिसमें सेक्‍स और अंग प्रदर्शन की पर्याप्‍त संभावनाएं थीं। तीन सालों में तीसरी हेट स्टोरी आ रही है। ऐसी संभावना है कि आगे भी इस फ्रेंचाइजी की फिल्‍में बनती रहेंगी। लेखक विक्रम भट्ट और निर्देशक विशाल पांड्या ने इस बार हेट स्‍टोरी को अलग विस्‍तार दिया है। कह सकते हैं कि उन्‍होंने कहानी तो बदली है,लेकिन सेक्‍स की चाशनी रहने दी है। ‘ हेट स्‍टोरी3 ’ भी पहले की फिल्‍मों की तरह आम दर्शकों के लिए बनाई गई है,जिन्‍हें कभी चवन्‍नी छाप या स्‍टाल के दर्शक कहते थे। अब न तो चवन्‍नी रही और न स्टाल,लेकिन दर्शक आज भी मौजूद हैं। अब वे मल्‍टीप्‍लेक्‍स और सिंगल स्‍क्रीन में समान रूप से ऐसी फिल्‍मों के मजे लेते हैं। आदित्‍य दीवान और उनकी बीवी सिया एक अस्‍पताल के उद्घाटन में पहुंचे हैं। यह अस्‍पताल उद्योगपति आदित्‍य दीवान के बड़े भाई विक्रम दीवान के नाम पर है। वहां सिया के इंटरव्‍यू से पता चलता है कि वह पहले बड़े भाई विक्रम की प्रेमिका थी। उसने अब छोटे

फिल्‍म समीक्षा : फरारी की सवारी

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  मध्यवर्गीय मुश्किलों में भी जीत -अजय ब्रह्मात्‍मज विनोद चोपड़ा फिल्म्स स्वस्थ मनोरंजन की पहचान बन चुका है। प्रदीप सरकार और राजकुमार हिरानी के बाद इस प्रोडक्शन ने राजेश मापुसकर को अपनी फिल्म निर्देशित करने का मौका दिया है। राजेश मापुसकर ने एक सामान्य विषय पर सुंदर और मर्मस्पर्शी कहानी बुनी हैं। सपने टूटने और सपने साकार होने के बीच तीन पीढि़यों के संबंध और समझदारी की यह फिल्म पारिवारिक रिश्ते की बांडिंग को प्रभावपूर्ण तरीके से पेश करती है। राजेश मापुसकर की कल्पना को विधु विनोद चोपड़ा और राजकुमार हिरानी ने कागज पर उतारा है। बोमन ईरानी, शरमन जोशी और ऋत्विक सहारे अपने किरदारों को प्रभावशाली तरीके से निभा कर फरारी की सवारी को उल्लेखनीय फिल्म बना दिया है। फिल्म के शीर्षक फरारी की सवारी की चाहत सहयोगी किरदार की है, लेकिन इस चाहत में फिल्म के मुख्य किरदार अच्छी तरह गुंथ जाते हैं। रूसी (शरमन जोशी) अपने प्रतिभाशाली क्रिकेटर बेटे केयो (ऋत्विक सहारे) के लिए कुछ भी कर सकता है। तीन पीढि़यों के इस परिवार में कोई महिला सदस्य नहीं है। अपने बिस्तर पर बैठे मूंगफली टूंगते हुए टीवी

फिल्‍म समीक्षा : तो बात पक्‍की

उलझी हुई सीधी कहानी -अजय ब्रह्मात्‍मज केदार शिंदे ने मध्यवर्गीय मानसिकता की एक कहानी चुनी है और उसे हल्के-फुल्के अंदाज में पेश करने की कोशिश की है। उन्हें तब्बू जैसी सक्षम अभिनेत्री का सहारा मिला है। साथ में शरमन जोशी और वत्सल सेठ जैसे आकर्षक कलाकार हैं। इन सभी के बावजूद तो बात पक्की हास्य और विडंबना का अपेक्षित प्रभाव नहीं पैदा करती। ऋषिकेश मुखजी, बासु चटर्जी और गुलजार की तरह हल्की-फुल्की और रोचक फिल्म बनाने का आइडिया सुंदर हो सकता है, लेकिन उसे पर्दे पर उतारने में भारी मशक्कत करनी पड़ती है। केदार शिंदे की फिल्म की शुरूआत अच्छी है, किंतु इंटरवल के बाद फिल्म उलझ जाती है। राजेश्वरी की इच्छा है कि उसकी छोटी बहन निशा की शादी किसी योग्य लड़के से हो जाए। उसे पहले राहुल सक्सेना पसंद आता है, लेकिन युवराज सक्सेना के आते ही वह राहुल के प्रति इरादा बदल लेती है। राहुल और युवराज के बीच फंसी निशा दीदी के हाथों में कठपुतली की तरह है, जिसकी एक डोर राहुल के पास है। युवराज से निशा की शादी नहीं होने देने की राहुल की तरकीब सीधे तरीके से चित्रित नहीं हो पाई है। इसके अलावा फिल्म की सुस्त गति से थिए
लंबे गैप के बाद तब्बू तो बात पक्की में दिखेंगी। केदार शिंदे निर्देशित इस फिल्म में उनके साथ शरमन जोशी और वत्सल सेठ भी हैं। बातचीत तब्बू से..। लंबे गैप के बाद आप फिल्म तो बात पक्की केसाथ आ रही हैं? बहुत समय से कॉमेडी करने की इच्छा थी। ऐसी कॉमेडी, जिसमें रोल अच्छा हो और कहानी भी हो। यह चलती-फिरती कॉमेडी फिल्म नहीं है। यह छोटे शहर के मिडिल क्लास फैमिली की कहानी है। कोई मुद्दा या समस्या नहीं है। फिर फिल्म के निर्माता रमेश तौरानी ने साफ कहा कि आप नहीं करेंगी, तो हम फिल्म नहीं बनाएंगे। उनका आग्रह अच्छा लगा। फिर बात पक्की हो गई। नए डायरेक्टर के साथ फिल्म करने के पहले कोई उलझन नहीं हुई? मेरे लिए नए डायरेक्टर के साथ काम करने का सवाल उतना मायने नहीं रखता। मैंने ज्यादातर नए डायरेक्टर के साथ ही काम किया है। मैंने कभी किसी नए डायरेक्टर के साथ काम करने को रिस्क नहीं समझा। कहानी और स्क्रिप्ट पर भरोसा है, तो मैं हां कर देती हूं। क्या स्क्रिप्ट पढ़कर आप डायरेक्टर पर भरोसा कर लेती हैं? हां, इतनी समझ तो हो ही गई है। भरोसा तो आप बड़े डायरेक्टर का भी नहीं कर सकते। मैं इतना नहीं सोचती। मुझे जिन फिल्मों में

फ़िल्म समीक्षा:सॉरी भाई

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नयी सोच की फिल्म ** -अजय ब्रह्मात्मज युवा ओर प्रयोगशील निर्देशक ओनिर की 'सॉरी भाई' रिश्तों में पैदा हुए प्रेम और मोह को व्यक्त करती है। हिंदी फिल्मों में ऐसे रिश्ते को लेकर बनी यह पहली फिल्म है। एक ही लडक़ी से दो भाइयों के प्रेम की फिल्में हम ने देखी है, लेकिन बड़े भाई की मंगेतर से छोटे भाई की शादी का अनोखा संबंध 'सॉरी भाई' में दिखा है। रिश्ते के इस बदलाव के प्रति आम दर्शकों की प्रतिक्रिया सहज नहीं होगी। हर्ष (संजय सूरी)और आलिया (चित्रांगदा सिंह)की शादी होने वाली है। दोनों मारीशस में रहते हैं। हर्ष अपने परिवार को भारत से बुलाता है। छोटा भाई सिद्धार्थ, मां और पिता आते हैं। मां अनिच्छा से आई है, क्योंकि वह अपने बेटे से नाराज है। बहरहाल, मारीशस पहुंचने पर सिद्धार्थ अपनी भाभी आलिया के प्रति आकर्षित होता है। आलिया को भी लगता है कि सिद्धार्थ ज्यादा अच्छा पति होगा। दोनों की शादी में मां एक अड़चन हैं। नयी सोच की इस कहानी में 'मां कसम' का पुराना फार्मूला घुसाकर ओनिर ने अपनी ही फिल्म कमजोर कर दी है। शरमन जोशी और चित्रांगदा सिंह ने अपने किरदारों को सही