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फिल्‍म समीक्षा : मस्‍तीजादे

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बड़े पर्दे पर लतीफेबाजी -अजय ब्रह्मात्‍मज   मिलाप झावेरी की ‘ मस्‍तीजादे ’ एडल्‍ट कामेडी है। हिंदी फिल्‍मों में एडल्‍ट कामेडी का सीधा मतलब सेक्‍स और असंगत यौनाचार है। कभी सी ग्रेड समझी और मानी जाने वाली ये फिल्‍में इस सदी में मुख्‍यधारा की एक धारा बन चुकी हैं। इन फिल्‍मों को लेकर नैतिकतावादी अप्रोच यह हो सकता है कि हम इन्‍हें सिरे से खारिज कर दें और विमर्श न करें,लेकिन यह सच्‍चाई है कि सेक्‍स के भूखे देश में फिल्‍म निर्माता दशकों से प्रत्‍यक्ष-अप्रत्‍यक्ष तरीके से इसका इस्‍तेमाल करते रहे हैं। इसके दर्शक बन रहे हैं। पहले कहा जाता था कि फ्रंट स्‍टाल के चवन्‍नी छाप दर्शक ही ऐसी फिल्‍में पसंद करते हैं। अब ऐसी फिल्‍में मल्‍टीप्‍लेक्‍श में दिख रही हैं। उनके अच्‍छे-खासे दर्शक हैं। और इस बार सनी लियोन के एक विवादित टीवी इंटरव्‍यू को जिस तरीके से परिप्रेक्ष्‍य बदल कर पेश किया गया,उससे छवि,संदर्भ और प्रासंगिकता का घालमेल हो गया।        बहरहाल, ’ मस्‍तीजादे ’ ह्वाट्स ऐप के घिसे-पिटे लतीफों को सीन बना कर पेश करती है। इसमें सेक्‍स एडिक्‍ट और समलैंगिक किरदार हंसी और कामेडी करने के