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दरअसल : पर्दे पर आम आदमी

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-अजय ब्रह्मात्मज फिल्में आमतौर पर भ्रम और फंतासी रचती हैं। इस रचना में समाज के वास्तविक किरदार भी पर्दे पर थोड़े नकली और नाटकीय हो जाते हैं। थिएटर में भी यह परंपरा रही है। भाषा, लहजा, कॉस्ट्यूम और भाव एवं संवादों की अदायगी में किरदारों को लार्जर दैन लाइफ कर दिया जाता है। माना जाता है कि इस लाउडनेस और अतिरंजना से कैरेक्टर और ड्रामा दर्शकों के करीब आ जाते हैं। हिंदी सिनेमा में लंबे समय तक इस लाउडनेस पर जोर रहा है। भारत में पहले इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के आयोजन के बाद इतालवी यर्थाथवाद से प्रभावित होकर भारतीय फिल्मकारों ने सिनेमा में यर्थाथवादी स्थितियों और चरित्रों का चित्रण आरंभ किया। उस प्रभाव से सत्यजीत राय से लेकर श्याम बेनेगल तक जैसे निर्देशकों का आगमन हुआ। इन सभी ने सिनेमा में यथार्थ और वास्तविकता पर जोर दिया। सत्यजीत राय यर्थाथवादी सिनेमा के पुरोधा रहे और श्याम बेनेगल के सान्निध्य में आए फिल्मकारों ने पैरेलल सिनेमा को मजबूत किया। पैरेलल सिनेमा की व्याप्ति के दौर में कुछ बेहद मार्मिक, वास्तविक और प्रमाणिक फिल्में आईं। इस दौर की बड़ी दुविधा यह रही कि ज्यादातर फिल्

जेड प्‍लस मतलब con man बनाम common man

आज जेड प्‍लस के निर्देशक डाॅ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी एक सवाल के जवाब में मीडिया को जिम्‍मेदार ठहराते हुए कहा कि con man की कहानी को आप देश के अंतिम व्‍यक्ति तक ले जाते हैं,लेकिन जब common man की कहानी बनती है तो क्‍या आप उसके साथ खड़े रहते हैं? मुझे लगता है कि इस बार आप के सामने अवसर आया है कि आप किस के साथ खड़े हैं ? देश के यबसे बड़े con man के साा या देश के common man के साथ।

जेड प्‍लस पात्र परिचय

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असलम पंचरवाला - फतेहपुर में दरगाह रोड पर पंचर की इसकी दुकान है। पंचर लगाता है और दिल का एकदम साफ। जागरुक है और रोमांटिक भी। कभी सोचा नहीं था कि पंचर से आगे कभी कोई और धंधा चल निकलेगा और जब उसकी दुकान को अतिक्रमण समझकर तोड़ा गया तो पता चला कि कस्‍बे में प्रधानमंत्री आ रहे हैं और प्रधानमंत्री से उसकी मुलाकात होगी। सीधा सादा भोला भाला फतेहपुर का असलम अचानक कस्‍बे में चर्चित हुआ तो फतेहपुर आए प्रधानमंत्री उसको जेड सिक्‍योरिटी दे गए और फिर जो असलम के साथ हुआ वो ऐसा कि देश में किसी के साथ ना हुआ हो। हमीदा असलम की पत्‍नी। रफीक की अम्‍मा। दिल की नेक। अकेले मियां के पंचर की दुकान से गुजारा कहां होता है। दरगाह के पास उसकी जूतियों की दुकान है। बातों की बादशाह। ग्राहक दुकान पर आएगा तो वह बातों में उसे ऐसे लुभाएगी कि वह हमीदा के यहां से जूतियां खरीदे बिना नहीं जाएगा। ईमान की पक्‍की और अल्‍लाह मियां से डरने वाली। असलम की लगाम उसके हाथ में और असलम है कि तुड़ाव करता रहता है। हबीब मियां आशिक पेशे से शायर , दिल से आशिक मिजाज और हरकतों से चिरकुट। सीधी प्रतिस्‍पर्धा गुलजार और जावेद

'जेड प्लस' के लेखक रामकुमार सिंह से एक बातचीत

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रामकुमार सिंह का यह इंटरव्यू चवन्‍नी के पाठकों के लिए जानकी पुल से लिया गया है। 21 नवम्बर की 'चाणक्य' और 'पिंजर' फेम निर्देशक चंद्रप्रकाश द्विवेदी की फिल्म 'जेड प्लस' रिलीज हो रही है. यह फिल्म हिंदी लेखक रामकुमार सिंह की मूल कहानी पर आधारित है. यह हमारे लिए ख़ुशी की बात है कि एक लेखक ने फिल्म लेखन में दिलचस्पी दिखाई और एक कायदे का निर्देशक मिला जिसने उसकी कहानी की संवेदनाओं को समझा. हम अपने इस प्यारे लेखक की कामयाबी को सेलेब्रेट कर रहे हैं, एक ऐसा लेखक जो फिल्म लिखने को रोजी रोटी की मजबूरी नहीं मानता है न ही फ़िल्मी लेखन को अपने पतन से जोड़ता है, बल्कि वह अपने फ़िल्मी लेखन को सेलेब्रेट कर रहा है. आइये हम भी इस लेखक की कामयाबी को सेलेब्रेट करते हैं. लेखक रामकुमार सिंह से जानकी पुल की एक बातचीत- मॉडरेटर. ============================================== आपकी नजर में जेड प्‍लस की कहानी क्‍या है ? यह एक आम आदमी और प्रधानमंत्री के मिलने की कहानी है। सबसे मामूली आदमी के देश के सबसे महत्‍त्‍वपूर्ण आदमी से मिलने की कहानी। असल में प्रधानमंत्री

हम सब असलम : डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेद्वी

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‘जेड प्लस’ के निर्देशक से बातचीत -अजय ब्रह्मात्मज      डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेद्वी की अलग पहचान है। सांस्कृतिक, सामाजिक और साहित्यिक विषयों के प्रति उनकी चिंताएं धारावाहिकों और फिल्मों के माध्यम से दर्शकों के समक्ष आती रही हैं। ‘पिंजर’ के निर्देशन के बाद उनकी कुछ कोशिशें सामने नहीं आ सक ीं। एक अंतराल के बाद वे ‘जेड प्लस’ लेकर आ रहे हैं। सामाजिक-राजनीतिक संदर्भों की यह फिल्म उनकी प्रचलित छवि से भिन्न है। ‘जेड प्लस’ के प्रोमो और लुक देखकर उनके प्रशंसक चकित हैं।     -‘पिंजर’ के बाद इतना लंबा अंतराल क्यों? ‘पिंजर’ की रिलीज के बाद मैंने कुछ फिल्में लिखीं और उन्हें निर्देशित करने की योजना बनाई। अमिताभ बच्चन के साथ ‘दि लिजेंड ऑफ कुणाल’ की आरंभिक तैयारियां हो चुकी थीं। तभी मंदी का दौर आरंभ हुआ और वह फिल्म रुक गई। उसके बाद काशीनाथ सिंह की ‘काशी का अस्सी’ पर आधारित ‘मोहल्ला अस्सी’ का निर्देशन किया। यह फिल्म पूरी हो चुकी है। सनी देओल अपनी डबिंग भी कर रहे हैं। अब ‘मोहल्ला अस्सी’ के निर्माता पर निर्भर करता है कि वे फिल्म कब रिलीज करेंगे। मैंने अपना काम कर दिया है। हां, इस बीच मैंने चिन्मय मिशन के

जेड प्‍लस का ट्रेलर

पोस्‍टर - जेड प्‍लस

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इस पोस्‍टर को गौर से देखें।  याद करें कि हाल-फिलहाल में ऐसा कोई और पोस्‍टर देखा है क्‍या ? आप ने सही गौर किया कि एक व्‍यक्ति एक हाथ से लोटा उठाए और दूसरे हाथ से लुंगी थामे शौच के लिए जा रहा हैत्र स्‍पष्‍ट है कि इस व्‍यक्ति के घर में शौचालय नहीं है। देश के अधिकांश पुरुष गांवों से लेकर महानगरों तक में ऐसे ही खुलेआम शौच के लिए जाते हैं।              इस व्‍यक्ति का नाम असलम है। यह पंचर बनाने का काम करता है। आप को बता दें कि असलम को गफलत में जेड प्‍लस सेक्‍युरिटी मिल गई है। अब ये सुरक्षा गार्ड उसे तनहा नहीं छोड़ सकते। शौच में भी साथ जाते हैं। पोस्‍टर में सुरक्षा गार्डो के अलावा तीन और व्‍यक्ति दिख रहे हैं। वे मुकेश तिवारी,कुलभूषण खरबंदा और संजय मिश्रा हैं। मुकेश तिवारी असलम के पड़ोसी हैं। कुल जी प्रधानमंत्री की भूमिका में हैं। संजय मिश्रा आतंकवादी बने हैं।असलम की भूमिका में आदिल हुसैन  असली से दिख रहे हैं। एक प्रधानमंत्री के अलावा सभी देश-समाज के आम नागरिक हैं। इन्‍हें अपने आसपास आप ने देखा होगा। याद करें कि ऐसे आम किरदारों को कब आखिरी बार पोस्‍टर और सिनेमा में देखा था। दाएं कोने में