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फिल्‍म समीक्षा : टोटल सियाप्‍पा

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चूक गए लेखक-निर्देशक -अजय ब्रह्मात्‍मज हिंदू-मुसलमान किरदार.. ऊपर से वे भारतीय और पाकिस्तानी। लेखक के पास इतनी ऊर्वर कथाभूमि थी कि वह प्रभावशाली रोमांटिक सटायर लिख सकता था। नीरज पांडे ने इसकी झलक फिल्म के प्रोमो में दी थी। अफसोस है कि फिल्म के सारे व्यंग्यात्मक संवाद प्रोमो में ही सुनाई-दिखाई पड़ गए। फिल्म में व्यंग्य की धार गायब है। वह एक ठहरा हुआ तालाब हो गया है, जिसमें सारे किरदार बारी-बारी से डुबकियां लगा रहे हैं। आशा हिंदुस्तानी पंजाबी है और अमन पाकिस्तानी पंजाबी है। दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं। आशा अपने परिवार से मिलवाने के लिए अमन को लेकर आती है। पहली मुलाकात में ही आशा की मां और भाई के पाकिस्तानी पूर्वाग्रह जाहिर हो जाते हैं। फिल्म उसी पूर्वाग्रह पर अटकी रहती है। प्रसंगों के लेप चढ़ते जाते हैं। लंदन के बैकड्रॉप में चल रही इन किरदारों की कथा एक कमरे तक सिमट कर रह जाती है। लंदन में बसा आशा का पंजाबी परिवार अपने पाकिस्तानी पड़ोसी से भी दोस्ती नहीं कर सका है। इस पृष्ठभूमि में आशा और अमन के प्यार को स्वीकार कर पाना उनके लिए निश्चित ही बड़ी राष्ट्रीय अनहोनी र

फिल्‍म समीक्षा : स्‍पेशल छब्‍बीस

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-अजय ब्रह्मात्मज तकरीबन 25 साल पहले साधारण और सामान्य परिवारों से आए चार व्यक्ति मिल कर देश भर में भ्रष्ट लोगों को लूटने और ठगने के काम में सफल रहते हैं। अपने अंतिम मिशन में वे 'स्पेशल छब्बीस' टीम बनाते हैं और अलर्ट सीबीआइ ऑफिसर वसीम (मनोज बाजपेयी) की आंखों में धूल झोंकने में सफल होते हैं। 'ए वेडनेसडे' से विख्यात हुए नीरज पांडे की दूसरी फिल्म है 'स्पेशल छब्बीस'। पिछली बार विषय और शिल्प दोनों में संजीदगी थी। इस बार विषय हल्का है। उसकी वजह से शिल्प अधिक निखर गया है। अजय (अक्षय कुमार), शर्माजी (अनुपम खेर), जोगिन्दर (राजेश शर्मा) और इकबाल (किशोर कदम) देश के चार कोनों में बसे ठग हैं। चारों अपने परिवारों में लौटते हैं तो हम पाते हैं कि वे आम मध्यमवर्गीय परिवारों से हैं। अमीर बनने का अपने हिसाब से उन्होंने ठगी का सुरक्षित रास्ता चुना है। वे बड़ी सफाई से अपना काम करते हैं। कोई सुराग नहीं छोड़ते। फिल्म में उनकी तीन ठगी दिखाई गई है, लेकिन अपनी 50वीं ठगी के लिए उन्होंने 'स्पेशल छब्बीस' का गठन किया है। बड़ा हाथ मार कर वे चैन की जिंदगी जीना चाहते हैं।