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निराश करती हैं गुलजार से अपनी बातचीत में नसरीन मुन्‍नी कबीर

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(इन द कंपनी ऑफ ए पोएट गुलजार इन कंवर्सेशन विद नसरीन मुन्नी कबीर) पढऩे के बाद ... -अजय ब्रह्मात्मज     भारतीय मूल की नसरीन मुन्नी कबीर लंदन में रहती हैं। हिंदी फिल्मों में उनकी गहरी रुचि है। पिछले कई सालों से वह हिंदी फिल्मों का अध्ययन कर रही हैं। लंदन के चैनल 4 टीवी के लिए उन्होंने हिंदी सिनेमा पर कई कार्यक्रम बनाए। 46 कडिय़ों की मूवी महल उनका उल्लेखनीय काम है। गुरुदत्त को उन्होंने नए सिरे से स्थापित किया। शुरू के मौलिक और उल्लेखनीय कार्यो के बाद वह इधर जिस तेजी से पुस्तकें लिख और संपादित कर रही हैं, उस से केवल पुस्तकों की संख्या बढ़ रही है। अध्ययन और विश्लेषण के लिहाज से इधर की पुस्तकें बौद्धिक खुराक नहीं दे पातीं। चूंकि हिंदी फिल्मों पर लेखन का घोर अभाव है, इसलिए अंग्रेजी में उनके औसत लेखन को भी उल्लेखनीय सराहना मिल जाती है।     हिंदी फिल्मों के स्टार, डायरेक्टर और अन्य महत्वपूर्ण लोगों को अंग्रेजी में बात करना जरूरी लगता है। अंग्रेजी के पत्रकारों और लेखकों के लिए उनके दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं, जबकि हिंदी का कोई अध्येता उनकी चौखट पर सिर भी फोड़ दे तो वे नजर न डालें। जी हां, य

देवदास के बहाने

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-अजय ब्रह्मात्‍मज अप्रतिम फिल्म है बिमल राय की देवदास। शरतचंद्र चटर्जी के उपन्यास देवदास पर बनी अनेक फिल्मों में अभी तक बिमल राय की देवदास को ही श्रेष्ठ फिल्म माना जाता है। अनुराग कश्यप ने देव डी में देवदास को बिल्कुल अलग रूप में पेश किया। बहरहाल, देवदास की पूरी पटकथा को किताब के रूप में लाने के दो प्रयास मेरे सामने हैं। 2003 में सुरेश शर्मा ने बिमल राय का देवदास नाम से इसकी पटकथा को राधाकृष्ण प्रकाशन के सौजन्य से प्रकाशित किया था। उस साल इसका विमोचन मुंबई के सोवियत कल्चर सेंटर में वैजयंतीमाला के हाथों हुआ था। बिमल राय की बेटी रिंकी भट्टाचार्य के सौजन्य से सुरेश शर्मा को मूल पटकथा मिली थी। उन्होंने मूल पटकथा को व्यावहारिक तरीके से ऐक्शन और संवाद के साथ प्रकाशित किया है। पिछले बुधवार की शाम मुंबई के महबूब स्टूडियो में नसरीन मुन्नी कबीर के प्रयास से उनके संपादन में प्रकाशित द डायलॉग ऑफ देवदास का विमोचन हुआ। इस अवसर संजय लीला भंसाली की देवदास के नायक शाहरुख खान आए। उन्होंने इस मौके के लिए लिखे दिलीप कुमार के पत्र को पढ़कर सुनाया। उस पत्र में दिलीप साहब ने देवदास की अपनी स्मृतियों को साझा

बातचीत में आत्‍मकथा ए आर रहमान की

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-अजय ब्रह्मात्‍मज इंटरनेट पर अलग-अलग जानकारियां पढ़ने को मिल जाएंगी कि उनका नाम एआर रहमान कैसे पड़ा और पर्दे की दुनिया से उनके जीवन की सच्ची कहानी क्या है? रहमान बताते हैं कि सच है कि अपना यह नाम उन्हें कभी पसंद नहीं आया और उन्हें इसका कारण भी नहीं मालूम? वह बताते हैं कि बस मुझे अपने नाम की ध्वनि अच्छी नहीं लगती थी। उनके मुताबिक महान अभिनेता दिलीप कुमार के प्रति उनका कोई अनादर नहीं है। उन्हें लगता था कि उनकी खुद की छवि के अनुरूप उनका नाम नहीं था। सूफी मत का अनुकरण करने से कुछ समय पहले वह लोग एक ज्योतिषी के पास बहन की जन्मपत्री लेकर गए थे, क्योंकि मां उसकी शादी कर देना चाहती थी। यह उसी समय की बात है, जब वह अपना नाम बदलना चाहते थे और इस बहाने एक नई पहचान पाना चाहते थे। ज्योतिषी ने उनकी तरफ देखा और कहा, इस व्यक्ति में कुछ खास है। उन्होंने अब्दुल रहमान और अब्दुल रहीम नाम सुझाया और कहा कि दोनों में से कोई भी नाम उनके लिए बेहतर रहेगा। उन्हें रहमान नाम एकबारगी में पसंद आ गया। यह भी एक संयोग ही था कि एक हिंदू ज्योतिषी ने उन्हें यह मुस्लिम नाम दिया था। फिर उनकी मां चाहती थी कि वह अपने नाम में