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Showing posts from December, 2014

आप की पसंद की 5 पोस्‍ट

2014 में मैंने चवन्‍नी चैप पर आप के लिए 305 पोस्‍ट किए। 2007 से मैं निरंतर लिख रहा हूं। इस बीच कई पाठक कलाकार,पत्रकार और फिल्‍मकार बने। मुझे खुशी होती है,जब यह पता चलता है कि उनके विकास में चवन्‍नी की भूमिका रही है। मैं आगे भी लिखता रहूंगा। इसे स्‍वावलंबी बनाने की दिशा में सोच रहा हूं। आप में जानकार मुझे सुझाव दे सकते हैं। अपेक्षित मदद कर सकते हैं। साथ ही यह भी बताएं कि चवन्‍नी की खनक कैसेट बढ़ाई जाए। फिलहाल आग्रह है कि पिछले साल की पोस्‍ट में से अपनी पसंद की पांच पोस्‍ट का उल्‍लेख करें। पढ़ने की सुविधा के लिए आर्काइव में जा सकते हैं। दिसंबर से जनवरी तक की यह सूची है।     ▼  December (25)     रॉन्ग नंबर के लोग विरोध कर रहे हैं : आमिर खान     पीके फिल्‍म की धुरी है यह गीत और संवाद     बाक्स आफिस सालाना रिपोर्ट     फिल्‍म समीक्षा : अग्‍ली     दरअसल : 2014 की मेरी पसंद की 12 फिल्में     हिंदी सिनेमा से भी जुड़े थे के बालाचंदर     अग्‍ली के लिए लिखे गौरव सोलंकी के गीत     बस अच्छी फिल्में करनी है - अनुष्का शर्मा     दरअसल : राजकुमार हिरानी और अभिजात जोशी     इंपैक्‍ट 2

रॉन्ग नंबर के लोग विरोध कर रहे हैं : आमिर खान

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-स्मिता श्रीवास्‍तव  विवादों के बीच राजकुमार हिरानी की 'पीके' 200 करोड़ क्लब में शामिल हो चुकी है। फिल्म पर हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया जा रहा है। फिल्म को लेकर उठने वाले विवाद के पीछे इसमें दिखाए गए कुछ दृश्य हैं। दरअसल, 'पीके' में धर्म के नाम पर होने वाली कुरीतियों पर कड़ा प्रहार किया गया है। भगवान और धर्म-कर्म के नाम पर चल रहे धार्मिक उद्योगों पर सवालिया निशान लगाया गया है। फिल्म चमत्कार दिखाने वाले संतों को भी कठघरे में खड़ा करती है। हवा से सोना पैदा करने वाले बाबा चंदा क्यों लेते हैं या देश की गरीबी क्यों नहीं दूर करते? धर्म के नाम पर खौफ पैदा करने वालों पर भी नकेल कसी गई है। फिल्म में स्पष्ट संदेश है कि जब ईश्वर ने तर्क-वितर्क की शक्ति दी है तो अतार्किक बातों पर हम आंखें मूंद कर विश्वास क्यों करते हैं। इन सबके बीच सवाल उठ रहा है कि सिर्फ हिंदू धर्म पर ही चोट क्यों की गई। बाकी धर्मालंबियों पर ऊंगली क्यों नहीं उठाई? पूछने पर आमिर खान कहते हैं, 'फिल्म मानवता का संदेश देती है। दूसरा, अंधविश्वास के खिलाफ अलख जग

पीके फिल्‍म की धुरी है यह गीत और संवाद

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पीके के पर चल रहे इस विवाद के संदर्भ में कि फिल्‍म में केवल हिंदू धर्म और साधु-संतों पर निशाना साध गया है...  पेश है फिल्‍म का एक गीत और वह महत्‍वपूर्ण संवाद जो फिल्‍म की धुरी है....112वें मिनट से 116 वें मिनट तक आप फिल्‍म में इन्‍हें सुन सकते हैं।   Bhagwan Hai Kahan Re Tu Lyrics Hai suna ye poori dharti tu chalata hai Meri bhi sun le araj mujhe ghar bulata hai Bhagwan hai kahan re tu Hey Khuda hai kahan re tu Hai suna tu bhatke mann ko raah dikhata hai Main bhi khoya hun mujhe ghar bulata hai Bhagwan hai kahan re tu Hey Khuda hai kahan re tu Aa... Main pooja karun ya namajein padhun Ardaasein karun din rain Na tu Mandir mile, na tu Girje mile Tujhe dhoondein thake mere nain Tujhe dhoondein thake mere nain Tujhe dhoondein thake mere nain Jo bhi rasmein hain wo saari main nibhata hoon In karodon ki tarah main sar jhukata hoon Bhagwan hai kahan re tu Aye Khuda hai kahan re tu Tere naam kayi, tere chehre kayi Tujhe paane ki raahein kayi Har raah chalaa

बाक्स आफिस सालाना रिपोर्ट

-अजय ब्रह्मात्मज      साल खत्म होने को है। अनुराग कश्यप की ‘अग्ली’ रिलीज हो चुकी है। पिछले हफ्ते राजकुमार हिरानी की ‘पीके’ रिलीज हुई। इस फिल्म ने आशा के अनुरूप कलेक्शन किया। हालांकि पहले दिन 26 करोड़ से कुछ अधिक के कलेक्शन से ऐसा लगा था कि दर्शकों ने फिल्म को पूरी तरह पसंद नहीं किया। टिकटों की ऊंची दर का मामला भी सामने आया। फिर भी ‘पीके’ ने शनिवार और रविवार को कामयाब फिल्मों की बढ़त दिखाई। शनिवार को फिल्म का कलेक्शन बढ़ कर 30 के लगभग हो गया और रविवार को तो ‘पीके’ ने 38 करोड़ का आंकड़ा छू लिया। फिल्मों के कलेक्शन में वीकएंड के तीन दिनों में ऐसी बढ़त दिखे तो माना जाता है कि वह फिल्म हिट होगी। ट्रेड पंडित कह रहे हैं कि ‘पीके’ हिट फिल्म है। इसने पलिे हफ्ते में 182 करोड1 का कलेक्‍शन कर नया रिकार्ड बना लिया है।अब देखना यह है कि वह कितनी बड़ी हिट होती है।     2014 बाक्स आफिस के हिसाब से बहुत संतोषजनक नहीं रहा है। 2012 की 24 और 2013 की 25 की तुलना में 2014 में केवल 19 फिल्में ही कामयाब फिल्मों की श्रेणी में आ सकीं। इस साल केवल 8 फिल्में ही 100 करोड़ का आंकड़ा पार कर सकीं। बड़ी फिल्मों की

फिल्‍म समीक्षा : अग्‍ली

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- अजय ब्रह्मात्‍मज  अग्ली अग्ली है सब कुछ अग्ली अग्ली हैं सपने अग्ली अग्ली हैं अपने अग्ली अग्ली हैं रिश्ते अग्ली अग्ली हैं किस्तें अग्ली अग्ली है दुनिया अब तो बेबी सबके संग हम खेल घिनौना खेलें मौका मिले तो अपनों की लाश का टेंडर ले लें बेबी लाश का टेंडर ले लें क्योंकि अग्ली अग्ली है सब कुछ।     अनुराग कश्यप की फिल्म 'अग्ली' के इस शीर्षक गीत को चैतन्य की भूमिका निभा रहे एक्टर विनीत कुमार सिंह ने लिखा है। फिल्म निर्माण और अपने किरदार को जीने की प्रक्रिया में कई बार कलाकार फिल्म के सार से प्रभावित और डिस्टर्ब होते हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही भूमिका निभाने की उधेड़बुन को यों प्रकट कर पाते हैं। दरअसल, इस गीत के बोल में अनुराग कश्यप की फिल्म का सार है। फिल्म के थीम को गीतकार गौरव सोलंकी ने भी अपने गीतों में सटीक अभिव्यक्ति दी है। वे लिखते हैं, जिसकी चादर हम से छोटी, उसकी चादर छीन ली, जिस भी छत पर चढ़ गए हम, उसकी सीढ़ी तोड़ दी...या फिल्म के अंतिम भाव विह्वल दृश्य में बेटी के मासूम सवालों में उनके शब्द संगदिल दर्शकों के सीने में सूइयों की तरह चुभते हैं। इन दि

दरअसल : 2014 की मेरी पसंद की 12 फिल्में

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-अजय ब्रह्मात्मज 2014 समाप्त हो गया। कल आखिरी शुक्रवार होगा। अनुराग कश्यप की ‘अग्ली’ रिलीज होगी। पहले तय था कि उनकी ‘बांबे वेलवेट’ क्रिसमस के मौके पर रिलीज होगी। पोस्ट प्रोडक्शन में लग रहे समय की वजह से अब यह फिल्म मई में रिलीज होगी। पिछले हफ्ते राजकुमार हिरानी की ‘पीके’ रिलीज होने के साथ प्रशंसित हुई। गौर करें तो 2014 में भी फिल्मों का हाल कमोबेश 2013 रके समान ही रहा। च्यादातर बड़े और लोकप्रिय स्टारों ने मसाला एंटरटेनर फिल्में ही कीें। अपनी बढ़त और पोजीशन बनाए रखने की फिक्र में पॉपुलर स्टार हमेशा की तरह लकीर के फकीर बने रहे। स्थापित डायरेक्टरों का भी यही हाल रहा। उन्होंने भी लकीर छोडऩे का साहस नहीं किया। अच्छी बात है कि फिर भी कुछ बेहतरीन और उल्लेखनीय फिल्में 2014 में प्रदर्शित हुईं। उनमें से कुछ को कामयाबी और तारीफ दोनों मिली और कुछ केवल सराही गईं। याद करें तो हम समय गुजरने के साथ यह भूल जाते हैं कि रिलीज के समय किस फिल्म ने कितना बिजनेस किया था। हमें बेहतरीन फिल्में ही याद रह जाती हैं। 2014 की रिलीज फिल्मों में से अपनी पसंद  12 फिल्में चुनना अधिक मुश्किल काम नहीं रहा। 1. हाईवे

हिंदी सिनेमा से भी जुड़े थे के बालाचंदर

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अजय ब्रह्मात्मज ‘एक दूजे के लिए’ के निर्देशक के बालचंदर का कल चेन्नई में निधन हो गया। मृत्यु के समय वे 84 साल के थे। 9 जुलाई 1930 को उनका जन्म हुआ था। हिंदी सिनेमा के दर्शक उन्हें मुख्य रूप से ‘एक दूजे के लिए’ के निर्देशक के तौर पर जानते हैं। वे यह भी जानते हैं कि तमिल सिनेमा के वर्तमान सुपरस्टार रजनीकांत और कमल हासन का करियर के बालाचंदर ने ही संवारा था। उन्होंने अन्य कई स्टारों को पहला मौका दिया। के बालाचंदर मूलत: रंगकर्मी और लेखक थे। उन्होंने आरंभ में नाटक लिखे और उनका मंचन किया। रागिनी रिक्रिएशन उनकी रंग संस्था थी। हिंदी में ‘एक दूजे के लिए’ के निर्देशन से पहले उन्होंने ‘आईना’ का निर्देशन किया था और अनेक फिल्मों के लेखन से जुड़े थे। सबसे पहले फणि मजुमदार ने उनके नाटक ‘मेजर चंद्रकांत’ पर आधारित ‘ऊंचे लोग’(1965) का निर्देशन किया था। ‘ऊंचे लोग’ सेना के रिटायर मेजर चंद्रकांत की कहानी है। अंधे मेजर चंद्रकांत रिटायर होने के बाद अपने तीनों बेटे की शादी करते हैं। उसके बाद उनकी जिंदगी में भारी तब्दीली आती है। फिर 1968 में एसएस वासन ने ने के बालचंदर की तमिल फि

अग्‍ली के लिए लिखे गौरव सोलंकी के गीत

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अनुराग कश्‍यप की फिल्‍म अग्‍ली के गीत गौरव सोलंकी ने लिखे हैं। मेरा सामान उनके ब्‍लाग्‍ा का नाम है। उन्‍हें आप फेसबुक और ट्विटर पर भी पा सकते हैं। खुशमिजाज गौरव सोलंकी मुंबइया लिहाज से सोशल नहीं हैं,लेकिन वे देश-दुनिया की गतिविधियों से वाकिफ रहते हैं। इन दिनों वे एडवर्ल्‍ड में आंशिक रूप से सक्रिय हैं। और एक फिल्‍म स्क्रिप्‍ट भी लिख रहे हैं। प्रस्‍तुत हैं अग्‍ली के गीत... सूरज है कहां सूरज है कहाँ ,  सर में आग रे ना गिन तितलियां ,  अब चल भाग रे मेरी आँख में   लोहा है क्या मेरी रोटियों में काँच है गिन मेरी उंगलियां क्या पूरी पाँच हैं ये मेरी बंदूक देखो, ये मेरा संदूक है घास जंगल जिस्म पानी  कोयला मेरी भूख हैं   चौक मेरा गली मेरी,  नौकरी वर्दी मेरी   धूल धरती सोना रद्दी,  धूप और सर्दी मेरी   मेरी पार्किंग है,  ये मेरी सीट है तेरा माथा है ,  ये मेरी ईंट है तेरी मिट्टी से मेरी मिट्टी तक आ रही हैं जो ,  सारी रेलों से रंग से ,  तेरे रिवाज़ों से तेरी बोली से ,  तेरे मेलों से कीलें चुभती हैं चीलें दिखती हैं लकड़ियां गीली नहीं हैं तेल है, तीली यहीं है मेरा झंडा

बस अच्छी फिल्में करनी है - अनुष्का शर्मा

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फिल्मों के चयन में काफी एहतियात बरतती हैं अनुष्का शर्मा। 'पीके' में आमिर खान के साथ काम करके वह हैं काफी उत्साहित हैं। अजय ब्रह्मात्मज से साक्षात्कार के अंश... आपको इस बात का इल्म कब हुआ कि आप असल में अपने करियर से क्या चाहती हैं? मुझे पिछले दो-तीन सालों में इस बात का एहसास हुआ कि मुझे अपने करियर से चाहिए क्या? उन सालों में मैंने चार फिल्में की। सब में अलग-अलग टाइप के रोल थे। अलग-अलग और अपनी-अपनी किस्सागोई में महारथी निर्देशकों के संग काम करने का मौका मिला। वहां से मुझे लगने लगा कि मुझे क्या करना है। मैंने तय कर लिया कि मुझे सिर्फ अच्छी फिल्में ही करनी हैं और अच्छे-अच्छे निर्देशकों के संग काम करना है। यह एहसास सफलता से हुआ। अगर आप सफल न हुई होतीं तो ऐसा एहसास हो पाता? असफल रहने पर भी मैं ऐसी ही रहती। मेरे ख्याल से मैं ऐसी हूं तभी मुझे सफलता मिली है। मैंने वह सब नहीं किया, जो बहुत सारे लोगों ने मुझे सजेस्ट किया। वह भी तब, जब मैं रेस में भाग रही थी। यही वजह है कि पिछले छह सालों में मेरी फिल्मों का आंकड़ा डबल डिजिट में नहीं है। अब जब मैं इंडस्ट्री में अच्छी प

दरअसल : राजकुमार हिरानी और अभिजात जोशी

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-अजय ब्रह्मात्मज     हिंदी फिल्मों के इतिहास में सलीम-जावेद की जोड़ी मशहूर रही है। दोनों ने अनेक सफल फिल्मों का लेखन किया। दोनों बेहद कामयाब रहे। उन्होंने फिल्मों के लेखक का दर्जा ऊंचा किया। उसे मुंशी से ऊंचे और जरूरी आसन पर बिठाया। उनके बाद कोई भी जोड़ी बहुत कामयाब नहीं रही।  लंबे समय के बाद राजकुमारी हिरानी और अभिजात जोशी की जोड़ी कुछ अलग ढंग से वैसी ही ख्याति हासिल कर रही है। अभी देश का हर दर्शक राजकुमार हिरानी के नाम से परिचित है। ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’, ‘लगे रहो मुन्नाभाई’, ‘3 इडियट’ और इस हफ्ते आ रही ‘पीके’ के निर्देशक राजकुमार हिरानी ने हिंदी फिल्मों को नई दिशा दी है। उन्होंने मनोरंजन की परिभाषा बदल दी है। उन्होंने अपनी तीनों फिल्मों से साबित किया है कि मनोरंजन के लिए आसान और आजमाए रास्तों पर ही चलना जरूरी नहीं है। लकीर छोडऩे पर भी मंजिल तक पहुंचा जा सकता है।     अभिजात जोशी उनके सहयोगी लेखक हैं। ‘लगे रहो मुन्नाभाई’ से दोनों साथ आए। दोनों के बीच संयोग से मुलाकात हुई। 1992 में अयोध्या में घटना के बाद अहमदाबाद में हुए सांप्रदायिक दंगों के परिप्रेक्ष्य में उन्होंने ‘शैफ्ट ऑफ सनलाइट

इंपैक्‍ट 2014 : आमिर खान, कपिल शर्मा

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इंपैक्ट 2014 -अजय ब्रह्मात्‍मज आमिर खान     ‘सत्य की जीत’ का संदेश बुलंद करता अमिर खान का टीवी शो ‘सत्यमेव जयते’ पहला ऐसा अनोखा शो है, जिसमें मुख्य रूप से सामाजिक मुद्दों, कुरीतियों और चलन पर सवाल उठाए गए। विमर्श के केंद्र में लाए विषयों को आमिर खान ने आत्मीयता और गंभीरता के साथ न केवल पेश किया, बल्कि निदान, समाधान और विकल्प के भी सुझाव दिए। हर एपिसोड में किसी एक विषय के सभी पहलुओं को प्रस्तुत करते समय साक्ष्य रखे गए। ‘सत्यमेव जयते’ की टीम ने आमिर खान और उनके मित्र व सहयोगी सत्यजित भटकल के निर्देशन और निरीक्षण में वस्तुनिष्ठ रहते हुए विषयों का विश्लेषण और विमर्श किया। पहले सीजन में ही सत्यमेव जयते के प्रभाव से सरकारी और निजी संस्थानों को सुझाए रास्तों पर बढऩे की प्रेरणा मिली। आमिर खान के हर शो में निदान और सहयोग में सक्रिय व्यक्तियों और संस्थाओं के प्रयासों की मुखर प्रस्तुति रही। इस शो ने टीवी दर्शकों समेत भारतीय समाज में एक मन आंदोलन सा खड़ा कर दिया, जिसका निश्चित सामाजिक संदर्भ बना। इस साल आमिर खान ने शो के प्रसारण के बाद देश के किसी एक शहर में जाकर सीधे प्रसारण से स्थानीय नाग

फिल्‍म समीक्षा : पीके

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-अजय ब्रह्मात्‍मज .. ..बहुत ही कनफुजिया गया हूं भगवान। कुछ तो गलती कर रहा हूं कि मेरी बात तुम तक पहुंच नहीं रही है। हमारी कठिनाई बूझिए न। तनिक गाइड कर दीजिए... हाथ जोड़ कर आपसे बात कर रहे हैं...माथा जमीन पर रखें, घंटी बजा कर आप को जगाएं कि लाउड स्पीकर पर आवाज दें। गीता का श्लोक पढ़ें, कुरान की आयत या बाइबिल का वर्स... आप का अलग-अलग मैनेजर लोग अलग-अलग बात बोलता है। कौनो बोलता है सोमवार को फास्ट करो तो कौनो मंगल को, कौनो बोलता है कि सूरज डूबने से पहले भोजन कर लो तो कौनो बोलता है सूरज डूबने के बाद भोजन करो। कौनो बोलता है कि गैयन की पूजा करो तो कौनो कहता है उनका बलिदान करो। कौना बोलता है नंगे पैर मंदिर में जाओ तो कौनो बोलता है कि बूट पहन कर चर्च में जाओ। कौन सी बात सही है, कौन सी बात लगत। समझ नहीं आ रहा है। फ्रस्टेटिया गया हूं भगवान... पीके के इस स्वगत के कुछ दिनों पहले पाकिस्तान के पेशावर में आतंकवादी मजहब के नाम पर मासूम बच्चों की हत्या कर देते हैं तो भारत में एक धार्मिक संगठन के नेता को सुर्खियां मिलती हैं कि 2021 तक वे भारत से इस्लाम और ईसाई

दरअसल : एनएफडीसी का फिल्म बाजार

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-अजय ब्रह्मात्मज     सन् 1975 में एनएफडीसी की स्थापना हुई थी। उद्देश्य था कि सार्थक सिनेमा को बढ़ावा दिया जाए। हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में बन रही कमर्शियल फिल्मों के बीच से राह निकाली जाए। युवा निर्देशकों की सोच को समर्थन मिले और उनके लिए आवश्यक धन की व्यवस्था की जाए। एनएफडीसी के समर्थन से सत्यजित राय से लेकर रितेश बत्रा तक ने उम्दा फिल्में निर्देशित कीं। उन्होंने भारतीय सिनेमा में वास्तविकता के रंग भरे। सिनेमा को कलात्मक गहराई देने के साथ भारतीय समाज के विविध रूपों को उन्होंने अपनी फिल्मों का विषय बनाया। देश में पैरलल सिनेमा की लहर चली। इस अभियान से अनेक प्रतिभाएं सामने आईं। उन्होंने अपने क्षेत्र विशेष की कहानियों से सिनेमा में भारी योगदान किया। कमी एक ही रही कि ये फिल्में सही वितरण और प्रदर्शन के अभाव में दर्शकों तक नहीं पहुंच सकीं। ये फिल्में मुख्य रूप से फेस्टिवल और दूरदर्शन पर ही देखी गईं। समय के साथ तालमेल नहीं बिठा पाने के कारण पैरेलल सिनेमा काल कवलित हो गया।     धीरे-धीरे एनएफडीसी के बारे में यह धारणा विकसित हो गई थी कि उसके समर्थन से बनी फिल्में कभी रिलीज नहीं होती