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बीसवीं सदी में हिंदी सिनेमा में महिलाएं

बीसवीं सदी में हिंदी सिनेमा में महिलाएं -अजय ब्रह्मात्मज आज ८ मार्च है.पूरी दुनिया में यह दिन महिला दिवस के तौर पर मनाया जाता है.चवन्नी ने सोचा कि क्यों न सिनेमा के परदे की महिलाओं को याद करने साथ ही उन्हें रेखांकित भी किया जाए.इसी कोशिश में यह पहली कड़ी है. इरादा है कि हर दशक की चर्चित अभिनेत्रियों के बहाने हम हिन्दी सिनेमा को देखें.यह एक परिचयात्मक सीरीज़ है। तीसरा दशक सभी जानते हैं के दादा साहेब फालके की फ़िल्म ' हरिश्चंद्र तारामती ' में तारामती की भूमिका सालुंके नाम के अभिनेता ने निभाई थी.कुछ सालों के बाद फालके की ही फ़िल्म ' राम और सीता ' में उन्होंने दोनों किरदार निभाए।इस दौर में जब फिल्मों में अभिनेत्रियों की मांग बढ़ी तो सबसे पहले एंगलो-इंडियन और योरोपीय पृष्ठभूमि के परिवारों की लड़कियों ने रूचि दिखाई. केवल कानन देवी और ललिता पवार ही हिंदू परिवारों से आई थीं. उस ज़माने की सबसे चर्चित अभिनेत्री सुलोचना थीं. उनका असली नाम रूबी मेयेर्स था.कहा जाता है कि उनकी महीने की कमाई मुम्बई के तत्कालीन गवर्नर से ज्यादा थी.सुलोचना आम तौर पर शहरी कि