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फिल्‍म समीक्षा : नाम शबाना

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फिल्‍म रिव्‍यू दमदार एक्‍शन नाम शबाना -अजय ब्रह्मात्‍मज नीरज पांडेय निर्देशित ‘ बेबी ’ में शबाना(तापसी पन्‍नू) ने चंद दृश्‍यों में ही अपनी छोटी भूमिका से सभी को प्रभावित किया था। तब ऐसा लगा था कि नीरज पांडेय ने फिल्‍म को चुस्‍त रखने के चक्‍कर में शबाना के चरित्र विस्‍तार में नहीं गए थे। हिंदी में ‘ स्पिन ऑफ ’ की यह अनोखी कोशिश है। फिल्‍म के एक किरदार के बैकग्राउंड में जाना और उसे कहानी के केंद्र में ले आना। इस शैली में चर्चित फिल्‍मों के चर्चित किरदारों के विस्‍तार में जाने लगें तो कुछ दिलचस्‍प फिल्‍में मिल सकती हैं। किरदारों की तैयारी में कलाकार उसकी पृष्‍ठभूमि के बारे में जानने की कोशिश करते हैं। अगर लेखक-निर्देशक से मदद नहीं मिलती तो वे खुद से उसका अतीत गढ़ लेते हैं। यह जानना रोचक होगा कि क्‍या नीरज पांडेय ने तापसी पन्‍नू को शबाना की पृष्‍ठभूमि के बारे में यही सब बताया था,जो ‘ नाम शबाना ’ में है ? ‘ नाम शबाना ’ के केंद्र में शबाना हैं। तापसी पन्‍नू को टायटल रोल मिला है। युवा अभिनेत्री तापसी पननू के लिए यह बेहतरीन मौका है। उन्‍होंने लेखक नीरज पांढेय और निर्दे

कहालियों में इमोशन की जरूरत - शिवम नायर

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कहालनयों में इमोशन की जरूरत - शिवम नायर -अजय ब्रह्मात्‍मज तापसी पन्‍नू अभिनीत ‘ नाम शबाना ’ के निर्देशक शिवम नायर हैं। यह उनकी चौथी फिल्‍म है। नई पीढ़ी के कामयाब सभी उनका बहुत आदर करते हैं। संयोग ऐसा रहा कि उनकी फिल्‍में अधिक चर्चित नहां हो सकीं। ‘ नाम शबाना ’ से परिदृश्‍य बदल सकता है। नीरज पांडेय ने ‘ बेबी ’ की ‘ स्पिन ऑफ ’ फिल्‍म के बारे में सोचा तो उन्‍हें शिवम नायर का ही खयाल आया। - ‘ नाम शबाना ’ थोड़ा अजीब सा टायटल है। कैसे यह नाम आया और क्‍या है इस फिल्‍म में ? 0 ‘ बेबी ’ में तापसी पन्‍नू का नाम शबाना था। नीरज पांडेय ने ‘ स्पिन ऑफ ’ फिल्‍म के बारे में सोचा। भारत में यह अपने ढंग की पहली कोशिश है। ऐसी फिल्‍म में किसी एक कैरेक्‍टर की बैक स्‍टोरी पर जाते हैं। ‘ नाम शबाना ’ टायटल नीरज ने ही सुझाया। फिल्‍म में मनोज बाजपेयी दो-तीन बार इसी रूप में नाम लेते हैं। - नीरज पांडेय की फिल्‍म में आप कैसे आए ? उन्‍होंने आप को बुलाया या आप... 0 नीरज के साथ मेरे पुराने संबंध हैं। ‘ ए वेडनेसडे ’ के बाद उन्‍होंने मुझे दो बार बुलाया,लेकिन स्क्रिप्‍ट समझ में नहीं आने से

फिल्‍म समीक्षा : एम एस धौनी-द अनटोल्‍ड स्‍टोरी

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छोटे पलों के बड़े फैसले -अजय ब्रह्मात्‍मज सक्रिय और सफल क्रिकेटर महेन्‍द्र सिंह धौनी के जीवन पर बनी यह बॉयोपिक 2011 के वर्ल्‍ड कप तक आकर समाप्‍त हो जाती है। रांची में पान सिंह धौनी के परिवार में एक लड़का पैदा होता है। बचपन से उसका मन खेल में लगता है। वह पुरानी कहावत को पलट कर बहन को सुनाता है...पढ़ोगे-लिखोगे तो होगे खराब,खेलोगे-कूदोगे तो बनोगे नवाब। हम देखते हैं कि वह पूरी रुचि से फुटबॉल खेलता है,लेकिन स्‍पोर्ट्स टीचर को लगता है कि वह अच्‍छा विकेट कीपर बन सकता है। वे उसे राजी कर लेते हैं। यहां से धौनी का सफर आरंभ होता है। इसकी पृष्‍ठभूमि में टिपिकल मिडिल क्‍लास परिवार की चिंताएं हैं,जहां करिअर की सुरक्षा सरकारी नौकरियों में मानी जाती है। नीरज पांडेय के लिए चुनौती रही होगी कि वे धौनी के जीवन के किन हिस्‍सों को फिल्‍म का हिस्‍सा बनाएं और क्‍या छोड़ दें। यह फिल्‍म क्रिकेटर धौनी से ज्‍यादा छोटे शहर के युवक धौनी की कहानी है। इसमें क्रिकेट खेलने के दौरान लिए गए सही-गलत या विवादित फैसलों में लेखक-निर्देशक नहीं उलझे हैं। ऐसा लग सकता है कि यह फिल्‍म उनके व्‍यक्तित्‍व के उजले पक्षो