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हिन्दी टाकीज:तीन घंटे की फ़िल्म का नशा तीस दिनों तक रहता था-दुर्गेश उपाध्याय

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हिन्दी टाकीज-४१ दुर्गेश में गंवई सहजता है। मालूम नहीं उन्होंने कैसे इसे बचा लिया है? बातचीत में हमेशा हँसी की चाशनी रहती है और चवन्नी ने कभी किसी की बुराई नहीं सुनी उनसे. ईर्ष्या होती है उनकी सादगी से... उनका परिचय उनके ही शब्दों में...नाम दुर्गेश उपाध्याय, पेशा- बीबीसी पत्रकार,मुंबई में कार्यरत..पढ़ाई लिखाई कुछ गांव में बाकी की लखनऊ में..लखनऊ विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में मास्टर्स ..कैरिएर की शुरुआत मुंबई में की और पिछले कुछ सालों से फिल्मी और राजनैतिक पत्रकारिता में सक्रिय हैं..अच्छा खाना,बौद्दिक लोगों के साथ उठना बैठना,फिल्में देखना और पढ़ना खास शौक हैं..व्यक्तिगत तौर पर काफी भावुक हैं और गूढ विषयों जैसे ईश्वर का अस्तित्व,मानव विकास का इतिहास में गहरी दिलचस्पी,ओशो को पढ़ना पसंद है... मेरा मानना है कि अपनी कहानी कहना हमेशा थोड़ा कठिन काम होता है।आपको लगता है कि कहीं कुछ छूट तो नहीं गया॥फिल्मी दुनिया में रिपोर्टिंग का मेरा अनुभव भले ही ज्यादा ना हो लेकिन इस दौरान काफी दिलचस्प अनुभव हुए हैं..मसलन अमिताभ बच्चन के साथ इंटरव्यू और बिना चिप लगी मशीन से प्रीति जिंटा का आधा इंटरव्यू करना