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फिल्‍म समीक्षा : ग्रेट ग्रैंड मस्‍ती

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फिल्‍म रिव्‍यू न डर,न हंसी और न मस्‍ती ग्रेट ग्रैंड मस्‍ती -अजय ब्रह्मात्‍मज इंद्र कुमार की ‘ मस्‍ती ’ 2004 में आई थी। सेक्‍स कामेडी के तौर पर आई इस फिल्‍म की अधिक सराहना नहीं हुई थी। अब 2016 में ‘ मस्‍ती ’ के क्रम में तीसरी फिल्‍म ‘ ग्रेट ग्रैंड मस्‍ती ’ देखने के बाद ऐसा लग सकता है कि ‘ मस्‍ती ’ तो फिर भी ठीक फिल्‍म थी। अच्‍छा है कि यह ग्रेट है। अब इसके आगे ‘ मस्‍ती ’ की संभावना खत्‍म हो जानी चाहिए। ‘ ग्रेट ग्रैंड मस्‍ती ’ में सेक्‍स,कॉमेडी और हॉरर को मिलाने की नाकाम कोशिश है। यह फिल्‍म नाम के अनुसार न तो मस्‍ती देती है और न ही हंसाती या डराती है। फिल्‍म में वियाग्रा,सेक्‍स प्रसंग,स्‍त्री-पुरुष संबंध, कामातुर लालसाओं के रूपक हैं,लेकिन इन सबके बावजूद फिल्‍म वितृष्‍णा से भर देती है। कहते हैं मृत्‍यु के बाद मुक्ति नहीं मिलती तो आत्‍माएं भटकती हैं। भूत बन जाती हैं। अपनी अतृप्‍त इच्‍छाएं पूरी करती हैं। ‘ ग्रेट ग्रैंड मस्‍ती ’ में भी एक भूत है। इस भूत के रुप में हम रागिनी को देखते हैं। 20 साल की उम्र में उसका देहांत हो गया था,लेकिन देह की इच्‍छाएं अधूरी रह गई थीं

फिल्‍म समीक्षा : ग्रैंड मस्‍ती

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सस्‍ती मस्‍ती  -अजय ब्रह्मात्‍मज  वर्तमान दौर में एडल्ट कॉमेडी के प्रति नाक-भौं सिकोड़ने की जरूरत नहीं रह गई है। इंद्र कुमार निर्देशित 'ग्रैंड मस्ती' इसी रूप में प्रचारित की गई है। पहले से मालूम है कि फिल्म में क्या परोसा जाएगा? सामान्य जिंदगी में हर तबके के स्त्री-पुरुष खास अवसरों और पलों में अश्लील और एडल्ट लतीफों का आनंद लेते हैं। इस फिल्म को हम सिपल एडल्ट कॉमेडी की तरह ही देखें। एडल्ट कॉमेडी फिल्मों में सेक्स संबंधी हरकतें, प्रसंग और पहलू होते हैं। फिल्म के लेखक मिलाप झावेरी और तुषार हीरानंदानी ने पुरानी 'मस्ती' की स्टोरी लाइन को ही अपनाया है। उसे ही ग्रैंड करने की असफल कोशिश की है। चूंकि कहने या दिखाने के लिए लेखक-निर्देशक के पास ज्यादा कुछ नहीं है, इसलिए वे हंसाने के लिए बार-बार फूहड़ तरकीबें अपनाते हैं। सामान्य फिल्मों में ऐसे दृश्य और व्यवहार देखे जा चुके हैं। मुख्य रूप से रीतेश देशमुख, विवेक ओबरॉय और आफताब शिवदसानी पर यह फिल्म टिकी है। तीनों कलाकारों से निर्देशक लगातार ओछी, फूहड़ और निम्नस्तरीय हरकतें करवाते हैं। फिल्म में ऐसी हरकतों के उपादा