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अहंकार की स्पेलिंग मुझे नहीं मालूम : अमिताभ बच्चन

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  -‘पीकू’ को लोगों का बेशुमार प्यार मिला। आप के संग-संग आप के सहयोगी कलाकारों का परफॉरमेंस भी काफी सराहा और स्वीकार किया गया। क्या इतनी बड़ी सफलता की उम्मीद थी? नहीं, बिल्कुल नहीं। हमें तो किसी फिल्म से उम्मीद नहीं रहती। फिर भी कहीं न कहीं इसकी उम्मीद जरूर थी कि जिस तरह की साधारण कहानी है, उसकी सरलता अगर लोगों को अपनी जिंदगी से ही संबंधित लगे तो एक तसल्ली होगी। बहरहाल, जब फिल्म बन रही थी तो उतनी उम्मीद नहीं थी, लेकिन लोगों ने इसे जिस तरह अपनाया है और जिस किसी ने इसकी प्रशंसा की। हमसे बातें की, सबने यही कहा कि सर आपने हमारी जिंदगी का ही एक टुकड़ा निकाल कर दर्शाया है। कोई कह रहा है उन्हें उनके दादाजी की याद आ गई तो कोई कह रहा उन्हें उनके नानाजी की याद आ गई। बहुत सी लड़कियां कह रही हैं कि उन्हें उनके पिताजी की याद आ रही है। यानी कहीं न कहीं एक घनिष्ठता सी बन गई है। -कई लोगों को भास्कोर में अपने पिताजी और  दादाजी महसूस हुए हैं? जी बिल्कुल। ऐसा हर परिवार में होता है। अच्छी बात यह कि फिल्म के तार परिवार से जुड़ गए हैं। हमें तो बड़ी खुशी है कि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अच्छा कर रह

परिवार की रीढ़ है मां : दीपिका पादुकोण

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-अजय ब्रह्मात्मज     दीपिका पादुकोण की शुजीत सरकार निर्देशित ‘पीकू’ रिलीज हो चुकी है। इम्तियाज अली निर्देशित ‘तमाशा’ की शूटिंग समाप्ति पर है। इन दिनों वह संजय लीला भंसाली की ‘बाजीराव मस्तानी’ की शूटिंग कर रही हैं। इसकी शूअिंग के सिलसिले में वह फिल्मसिटी के पास ही एक पंचतारा होटल में रह रही हैं। समय बचाने के लिए यह व्यवस्था की गई है। दीपिका पिछले दिनों काफी चर्चा में रहीं। ‘माई च्वॉयस’ वीडियो और डिप्रेशन की स्वीमृति के बारे में बहुत कुछ लिखा और बताया गया। दीपिका थोड़ी खिन्न हैं,क्योंकि सोशल मीडिया और मीडिया पर चल रहे विमर्श ने उसे अलग परिप्रेक्ष्य में रख दिया है। दीपिका देश की अन्य हमउम्र लड़कियों की तरह स्वतंत्र हैं। मिजाज की कामकाजी लड़की हैं। उन्हें परिवार से बेहद प्यार है। इधर मिली पहचान की वजह से वह अपनी फिल्मों के चुनाव और एक्टिंग के प्रति अधिक सचेत हो गई हैं। उन्हें इसके अनुरूप तारीफ भी मिल रही है।     ‘पीकू’ देख चुके दर्शकों को दीपिका के किरदार के बारे में मालूम होगा। पीकू के बारे में दीपिका के विचार कुछ यूं हैं, ‘वह कामकाजी लड़की है। अपने परिवार का भी ख्याल रखती है। अपने पित

फिल्‍म समीक्षा : पीकू

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-अजय ब्रह्मात्‍म्‍ाज  **** चार स्‍टार  कल शाम ही जूही और शूजीत की सिनेमाई जुगलबंदी देख कर लौटा हूं। अभिभूत हूं। मुझे अपने पिता याद आ रहे हैं। उनकी आदतें और उनसे होने वाली परेशानियां याद आ रही हैं। उत्तर भारत में हमारी पीढ़ी के लोग अपने पिताओं के करीब नहीं रहे। बेटियों ने भी पिताओं को अधिक इमोशनल तवज्जो नहीं दी। रिटायरमेंट के बाद हर मध्यीवर्गीय परिवार में पिताओं की स्थिति नाजुक हो जाती है। आर्थिक सुरक्षा रहने पर भी सेहत से संबंधित रोज की जरूरतें भी एक जिम्मेदारी होती है। अधिकांश बेटे-बेटी नौकरी और निजी परिवार की वजह से माता-पिता से कुढ़ते हैं। कई बार अलग शहरों मे रहने के कारण चाह कर भी वे माता-पिता की देखभाल नहीं कर पाते। 'पीकू' एक सामान्य बंगाली परिवार के बाप-बेटी की कहानी है। उनके रिश्ते को जूही ने इतनी बारीकी से पर्दे पर उतारा है कि सहसा लगता है कि अरे मेरे पिता भी तो ऐसे ही करते थे। ऊपर से कब्जियत और शौच का ताना-बाना। हिंदी फिल्मों के परिप्रेक्ष्य में ऐसी कहानी पर्दे पर लाने की क्रिएटिव हिम्मत जूही चतुर्वेदी और शूजीत सरकार ने दिखाई है। 'विकी डोनर' के बाद एक बार