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बुरा शब्द नहीं है ‘बेशर्म’-अभिनव सिंह कश्यप

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-अजय ब्रह्मात्मज - ‘बेशर्म’ का क्या आयडिया है? 0 न सम्मान का मोह न, अपमान का भय। पिछली बार मेरी फिल्म से ‘दबंग’ की नई परिभाषा बनी। इस बार ‘बेशर्म’ की नई परिभाषा बनेगी। ‘बेशर्म’  बुरा शब्द नहीं है। कभी-कभी बेशर्म होना अच्छा होता है। - क्या अनुमान था कि ‘दबंग’ बड़ी फिल्म हो जाएगी? 0 मैं तो छोटे आयडिया पर काम करता हूं। मेरे पिता जी अकड़ू और जिद्दी थे। नौकरी में जो पसंद नहीं आता था, उसे नहीं करते थे। हमेशा उनकी पोस्टिंग आड़ी-तिरछी जगह पर हो जाती थी। लोग उन्हें दबंग टाइप आदमी कहते थे। चूंकि पापा मेरे हीरो थे और उन्हें दबंग कहा जाता था। मेरे लिए दबंग हमेशा अच्छा शब्द रहा है। अखबार और न्यूज चैनल में गुंडों के लिए दबंग शब्द का इस्तेमाल होता था। उस फिल्म में मैं यही बताना चाह रहा था कि दबंग का मतलब होता है-किसी  से नहीं दबना। - तो ‘बेशर्म’ की भी नई परिभाषा गढ़ी जाएगी? 0 मैंने एक कहावत से बात शुरू की थी कि ‘सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगे लोग?’ आजू-बाजू वाले कुछ न कर रहे हों और आप कुछ करने चलो तो पहले सभी मना करते हैं। वे हतोत्साहित भी करते हैं। फिर भी आप करते रहो तो कहेंगे बड़ा बेशर्म आदमी है। किस
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कानपुर आ गए हैं चुलबुल पांडे-दिलीप शुक्ला -अजय ब्रह्मात्मज     1990 में सनी देओल की फिल्म ‘घायल’ से हिंदी फिल्मों के लेखन से जुड़े दिलीप शुक्ला ने इस बीच कई कामयाब और चर्चित फिल्में लिखी हैं। बीच में उन्होंने ‘हैलो हम लल्लन बोल रहे हैं’ फिल्म का निर्देशन भी किया। वहीं ‘गट्टू’ जैसी चिल्डे्रन फिल्म भी लिखी। एक अर्से के बाद ‘दबंग’ ने उन्हें फिर से चर्चा में ला दिया है। अब ‘दबंग 2’ आ रही है। अपने संवादों और किरदारों के देसी टच के लिए मशहूर दिलीप शुक्ला इन दिनों काफी डिमांड में हैं।     मूलत: लखनऊ निवासी दिलीप शुक्ला का कुछ समय कानपुर में भी गुजरा है। कानपुर में उनका ससुराल है और बहन की शादी भी कानपुर में हुई है। शुरू से कानपुर आते-जाते रहने और वहां के लोगों को भली-भांति समझने से दिलीप शुक्ला को चुलबुल पांडे जैसे किरदारों को पर्दे पर जीवित करना मुश्किल नहीं रहा। ‘दबंग 2’ में उन्होंने चुलबुल पांडे को कानपुर के बजरिया थाने का प्रभारी बना दिया है। वे कहते हैं, ‘इस बार चुलबुल पांडे कनपुरिया लहजे में बोलते नजर आएंगे। वे गाली और गोली तो नहीं चलाते, लेकिन अपनी बोली से ही घायल कर देते हैं।

दबंग 2 की धमक

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;अजय ब्रह्मात्‍मज सलमान खान की 'दबंग 2' 21 दिसंबर को रिलीज होगी। इसके निर्माता-निर्देशक उनके भाई अरबाज खान हैं, लेकिन 'दबंग 2' शुरू से आखिर तक सलमान खान की ही फिल्म रहेगी। अभी की स्थिति में आमिर खान, सलमान खान, शाहरुख खान, अजय देवगन और अक्षय कुमार की फिल्मों का निर्देशक गौण हो जाता है। इन स्टारों का स्टार पॉवर इतना तगड़ा और जोरदार है कि दर्शक परवाह नहीं करते। उन्हें निर्देशकों के नाम और उनके पुराने काम की सुध नहीं रहती। उनके लिए स्टार ही काफी होता है। अपना चहेता स्टार..। स्टारडम और स्टार पॉवर की बात करें, तो अभी सलमान की टक्कर में कोई नहीं है। 'वांटेड' के बाद निरंतर सफलता का स्वाद चख रहे सलमान खान पर दर्शकों की मेहरबानी बनी हुई है। उनकी नई फिल्मों का निर्देशक कोई भी हो, नाम उन्हीं की दांव पर लगता है। 'दबंग 2' के मामले में यह दांव कुछ बड़ा और जोखिमपूर्ण हो गया है। 'दबंग' के लगभग दो साल बाद आ रही 'दबंग 2' के रिस्क फैक्टर की बात करें, तो सबसे पहला जोखिम अरबाज खान का निर्देशक बनना है। पहली 'दबंग' के निर्माता अरबाज

दर्शकों की पसंद हूं मैं-सोनाक्षी सिन्हा

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-अजय ब्रह्मात्मज     सोनाक्षी सिन्हा की अभी तक दो ही फिल्में रिलीज हुई हैं, लेकिन दोनों ही सुपरहिट रही हैं। ‘दबंग’ और ‘राउडी राठोड़’ की जबरदस्त सफलता ने उन्हें फिल्म इंडस्ट्री की टॉप हीरोइनों में शामिल कर दिया है। हालांकि दोनों ही फिल्मों की कामयाबी का श्रेय उनके हीरो सलमान खान और अक्षय कुमार को ही मिला। फिर भी कामयाब फिल्म की हीरोइन होने के हिस्से के रूप में सोनाक्षी सिन्हा भी सफल मानी जाएंगी। अब उनकी तीसरी फिल्म ‘जोकर’ रिलीज होगी। इसमें भी उनके हीरो अक्षय कुमार हैं। सोनाक्षी सिन्हा से एक बातचीत ़ ़ ़ - दो-दो फिल्मों की कामयाबी से आप ने इतनी जल्दी ऐसी ऊंचाई हासिल कर ली है। बात कहां से शुरू करें? 0 कहीं से भी शुरू करें। इतनी छोटी जर्नी है मेरी कि न तो आप ज्यादा कुछ पूछेंगे और न मैं ज्यादा बता पाऊंगी। खुश हूं कि मेरी दोनों फिल्में दर्शकों को पसंद आई। पसंद आने की एक वजह तो मैं हूं ही। - आप की तीसरी फिल्म शिरीष कुंदर की ‘जोकर’ होगी। उसके बारे में बताएं? 0 ‘जोकर’ वैसे मेरी दूसरी फिल्म है। ‘दबंग’ के बाद मैंने ‘जोकर’ ही साइन की थी और उसकी शूटिंग भी आरंभ हो गई थी। यह बहुत ही स्पेशल फिल्म

दबंग के पक्ष में - विनोद अनुपम

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नेशनल फिल्‍म अवार्ड मिलने के बाद से निरंतर 'दबंग' की चर्चा चल रही है। ज्‍यादातर लोग 'दंबग' को पुरस्‍कार मिलने से दंग हैं। विनोद अनुपम ने 'दबंग' के बारे में यह लेख फिल्‍म की रिलीज के समय ही लिखा था। उसकी प्रासंगिकता देखते हुए हम उसे यहां पोस्‍ट कर रहे हैं... भरा पूरा गाँव, ढ़ेर सारे बेतरतीब लोग, जिसमें कुछ को हम पहचान पाते हैं कुछ को नहीं। इनमें पाण्डेय भी हैं, सिंह भी, कुम्हार भी। सबों की अलग-अलग बनावट, अलग-अलग वेषभूषा, अलग-अलग स्वभाव। हद दर्जे का लालची भी, पियक्कड़ भी, मेहनती भी, आलसी भी, हिम्मती भी और डरपोक भी। यही विविध्ता पहचान है किसी हिन्दी समाज की, जो अपनी पूर्णता में प्रतिबिम्बित होता दिखता है 'दबंग' में। यही है जो 'दबंग' को एक विशिष्टता देती है, जिसमें हम अपने आस-पास को दख सकते हैं। ठीक 'शोले' की तरह, जहाँ नायक भले ही ठाकुर होता है, लेकिन गाँव को गाँव बनाने में 'मौसी' की भी उतनी ही भूमिका होती है जितना मौलबी साहब की। 'अनजाना अनजानी' और 'वी आर पफैमिली' के दौर में जब याद करने की कोशिश करते हैं कि पिछली बाद

दबंग देखने लौटे दर्शक

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-अजय ब्रह्मात्‍मज पटना, मुजफ्फरपुर, दरभंगा और मधुबनी..। पिछले दिनों इन चार शहरों से गुजरने का मौका मिला। हर शहर में दबंग की एक जैसी स्थिति नजर आई। अभिनव सिंह कश्यप की यह फिल्म जबरदस्त हिट साबित हुई है। तीन हफ्तों के बाद भी इनके दर्शकों में भारी गिरावट नहीं आई है। बिहार के वितरक और प्रदर्शकों से लग रहा है कि दबंग सलमान खान की ही पिछली फिल्म वांटेड से ज्यादा बिजनेस करेगी। उल्लेखनीय है कि बिहार में वांटेड का कारोबार 3 इडियट्स से अधिक था और सलमान खान बिहार में सर्वाधिक लोकप्रिय स्टार हैं। पटना में फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम दबंग की कामयाबी से बहुत अधिक चकित नहीं हैं। बातचीत के क्रम में उन्होंने अपनी एक राय जाहिर की, गौर से देखें तो दबंग हिंदी में बनी भोजपुरी फिल्म है। यही कारण है कि पिछले दस सालों में हिंदी सिनेमा से उपेक्षित हो चुके दर्शकों ने इसे हाथोंहाथ अपनाया। पिछले दस सालों में भोजपुरी सिनेमा ने उत्तर भारत और खासकर बिहार और पूर्वी यूपी में दर्शकों के मनोरंजन की जरूरतें पूरी की है। उनकी रुचि और पसंद पर दबंग खरी उतरी है। विनोद अनुपम की राय में सच्चाई है। दबंग में हिंदी सिनेमा में पिछले