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बच्चों का फिल्म संसार

—अजय ब्रह्मात्मज बच्चों से बातें करने के लिए आवश्यक नहीं है कि आप तुतलाएँ। आप साफ़ उच्चारण में उनसे बातें करें तो भी वे सीखते हैं। हाँ, शब्दों के चुनाव में सावधानी रखें कि वे उनकी समझ में आ जाएँ। अगर यह छोटी सी बात हमारे फ़िल्मकार समझ जाएँ तो बच्चों के लायक फ़िल्मों की संख्या बढ़ सकती हैं और सोच में बदलाव आ सकता है। आम धारणा है कि बच्चों के लिए बनी फ़िल्मों में बड़ों की सोच के कारण ऐसी असहजता आ जाती है कि बच्चे उन फ़िल्मों को देखना पसंद नहीं करते। अगर आप बच्चों को बताएँ कि उनके लिए विशेष तौर पर बनी फ़िल्में ही उन्हें देखनी चाहिए तो वे हरगिज़ नहीं देखेंगे। यह मनुष्य का स्वभाव है कि वह अलग–थलग नहीं होना चाहता। देश में बनी बाल फ़िल्मों की संख्या अपेक्षाकृत कम है, लेकिन इतनी कम भी नहीं है कि हम शर्मिंदा हों। देश के प्रथम प्रधानमंत्री का बाल प्रेम जगजाहिर है। उनके जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वयं उन्होंने यह इच्छा व्यक्त की थी कि बच्चों को ध्यान में रखकर फ़िल्में बननी चाहिए। उनकी इस इच्छा से प्रेरित होकर ११ मई १९