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Showing posts from March, 2020

सिनेमालोक : हर तरह की फ़िल्में लिखने में सिद्धहस्त जावेद सिद्दीकी

सिनेमालोक हर तरह की फ़िल्में लिखने में सिद्धहस्त जावेद सिद्दीकी -अजय ब्रह्मात्मज कोरोना वायरस के प्रकोप की वजह से 14 मार्च को निश्चित फिल्मों का एक पुरस्कार समारोह मुंबई में नहीं हो सका. इस बार 8 भाषाओं में पांच (फिल्म, निर्देशक, अभिनेता, अभिनेत्री और लेखक) श्रेणियों के साथ फिल्मों में असाधारण योगदान के लिए भी प्रतिभाओं को सम्मानित करना था. समारोह नहीं हो पाने की स्थिति में इन पुरस्कारों से अधिकांश दर्शक और फिल्मप्रेमी वाकिफ नहीं हो सके. संक्षेप में फिल्म समीक्षकों की राष्ट्रीय संस्था फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड हर साल शॉर्ट फिल्म और फीचर फिल्मों के लिए पुरस्कार देती है. 2019 के लिए दूसरे साल में 8 भाषाओं की श्रेष्ठ फिल्म और प्रतिभाओं पर विचार किया गया. अगले साल भाषाओं की संख्या बढ़ सकती है. कोशिश है कि यह अखिल भारतीय पुरस्कार के तौर पर स्वीकृत हो. बहरहाल, फिल्मों में असाधारण योगदान के लिए इस साल लेखक जावेद सिद्दीकी के नाम पर सभी समीक्षक एकमत हुए थे. जावेद सिद्दीकी ने अभी तक 80 से अधिक फिल्में लिखी हैं, लेकिन उनके प्रचार प्रिय नहीं होने की वजह से फिल्मों के दर्शक उनके बारे में वि

सिनेमालोक : फिल्म ‘मंडी’ का मजार

सिनेमालोक फिल्म ‘मंडी’ का मजार -अजय ब्रह्मात्मज श्याम बेनेगल की फिल्म ‘मंडी’ में शबाना आज़मी और उनकी मंडली को शहर से निकलकर वीराने में अपना कोठा बनाना पड़ा था. कोठा बनने के बाद शहर के लोगों को ही आने-जाने लगते हैं और वह इलाका गुलज़ार हो जाता है. फिल्म देखी हो तो आपको याद होगा कि ‘मंडी’ में एक मजार भी था. बाबा खड़ग शाह का मजार. उस मजार का एक दिलचस्प किस्सा है. सालों पहले एक इंटरव्यू में श्याम बेनेगल ने यह किस्सा खुद सुनाया था. हुआ यों कि ‘मंडी’ का सेट जिस स्थान पर लगाया गया था, वह वास्तव में पाकिस्तान चले गए एक मुसलमान परिवार की खाली जमीन थी. वह खाली जमीन मुसलमान परिवार के जाने के बाद स्थानीय रेड्डी परिवार के कब्जे में थी. उन्होंने ने ही श्याम बेनेगल को वह ज़मीं फिल्म का सेट लगाने के लिए दी थी. सेट लगना शुरू हुआ तो श्याम बेनेगल और उनके कला निर्देशक नीतीश राय ने कोने की एक ढूह को मजार का रूप दे दिया. फिल्म के हिसाब से बने सेट के लिए वह मजार माकूल था. कुछ जोड़ ही रहा था. ‘मंडी’ का यह मजार मलाली पहाड़ी तलहटी के पास की जमीन पर बना था. मलाली पहाड़ी बहुत ही पवित्र मानी जाती है, क्यों

सिनेमालोक : मनाएं फॅमिली फिल्म फेस्टिवल

सिनेमालोक मनाएं फॅमिली  फिल्म फेस्टिवल -अजय ब्रह्मात्मज अनेक राज्यों में सिनेमाघर बंद कर दिए गए हैं. कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए केंद्र सरकार की पहल पर राज्य सरकारों ने एहतियातन यह कदम उठाया है. कोशिश है कि भीड़ इकट्ठी ना हो और लोग एक=दूसरे के संपर्क में ना आएं. इसी के तहत सिनेमाघरों को बंद रखने के आदेश दिए गए हैं. आम नागरिकों(दर्शकों) की सेहत के मद्देनजर सरकारों के इस जरूरी कदम का स्वागत होना चाहिए. फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखने के शौकीन दर्शकों के लिए यह मुश्किल घड़ी है. हम सभी जानते हैं कि फिल्में देश में मनोरंजन का सबसे सस्ता साधन हैं और सिनेमाघर इन फिल्मों के प्रदर्शन का माध्यम हैं. सिनेमाघरों के बंद होने से फिलहाल थिएटर में जाकर फिल्म देखना मुमकिन नहीं   होगा. सचमुच इस वक्त दर्शकों को मनोरंजन का विकल्प खोजना होगा. कामकाज ठप है. बाहर निकलना बंद है. ऐसे में घर में बैठे-बैठे और भी बोरियत होगी. अभी तो पहला हफ्ता ही है. हालांकि अभी तक यह आदेश 31 मार्च तक ही है, लेकिन कोरोलाग्रस्त मरीजों की बढ़ती संख्या देखते हुए कहा जा सकता है कि अप्रैल महीने में भी सिनेमाघर बंद रह सकते

सिनेमालोक : चांटा या पुचकार ?

सिनेमालोक चांटा या पुचकार ? -अजय ब्रह्मात्मज इन दिनों ‘थप्पड़’ के कलेक्शन को लेकर बहस चल रही है. एक ट्रेड पत्रिका ने लिखा कि दर्शकों ने ‘थप्पड़’ को मारा चांटा. उनका आशय था कि ‘थप्पड़’ पसंद नहीं की गई है. फिल्म का कलेक्शन उत्साहवर्धक नहीं है. उन्होंने इसी कड़ी में ‘पंगा’ और ‘छपाक’ फिल्मों के नाम भी जोड़ दिए थे. थोड़ा और पीछे चलें और बॉक्स ऑफिस की खबरें याद करें तो ‘सांड की आंख’ के लिए भी ऐसा ही कुछ नकारात्मक लिखा और कहा गया था. फिल्म इंडस्ट्री के कुछ निर्माताओं और उनके इशारों को चल रहे ट्रेड पंडितों को यह बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है कि महिला केंद्रित फिल्में आकर तारीख पा रही हैं. उनका कलेक्शन भी संतोषजनक हो रहा है. फिल्मों की सफलता-असफलता मापने के कई तरीके हैं. लागत और लाभ के सही आकलन के लिए जरूरी है कि दोनों के बीच का अनुपात निकाला जाए. अधिकांश ट्रेड खबरों में यह बताया जाता है कि फलां फिल्म ने कितने करोड़ का कलेक्शन किया, लेकिन उनकी लागत नहीं बताई जाती. दहाई करोड़ और सैकड़ों करोड़ का फर्क आम दर्शक नहीं समझ पाता. जाहिर सी बात है कि 12 करोड़ और 130 करोड़ के आंकड़े सामने हों तो 1

सिनेमालोक : फनीश्वरनाथ रेणु और 'तीसरी कसम'

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सिनेमालोक फनीश्वरनाथ रेणु और 'तीसरी कसम' -अजय ब्रह्मात्मज कल 4 मार्च को फनीश्वरनाथ रेणु का जन्मदिन है. यह साल उनकी जन्मशती का साल भी है. जाहिर सी बात है कि देशभर में उन्हें केंद्र में रखकर गोष्ठियां होंगी. विमर्श होंगे. नई व्याख्यायें भी हो सकती हैं. कोई और वक्त होता तो शायद बिहार में उनकी जन्मशती पर विशेष कार्यक्रमों का आयोजन होता. उन्हें याद किया जाता है. उनकी प्रासंगिकता को रेखांकित किया जाता. फिलहाल सरकार और संस्थाओं को इतनी फुर्सत नहीं है. उनकी मंशा भी नहीं रहती कि साहित्य और साहित्यकारों पर केंद्रित आयोजन और अभियान चलाए जाएं. साहित्य स्वभाव से ही जनपक्षधर रोता है. साहित्य विमर्श में वर्तमान राजनीति में पचलित जनविरोधी गतिविधियां उजागर होने लगती हैं, इसलिए खामोशी ही बेहतर है. हालांकि अभी देश भर में लिटररी फेस्टिवल चल रहे हैं, लेकिन आप गौर करेंगे कि इन आयोजनों में आयोजकों और प्रकाशकों की मिलीभगत से केवल ताजा प्रकाशित किताबों और लेखकों की चर्चा होती है. फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म पूर्णिया जिले के औराही हिंगना गांव में 4 मार्च 1921 को हुआ था. स्कूल के दिनों से ही जा