फिल्म समीक्षा : बार बार देखो
पल पल में दशकों की यात्रा -अजय ब्रह्मात्मज नित्या मेहरा की फिल्म ‘ बार बार देखो ’ के निर्माता करण जौहर और रितेश सिधवानी-फरहान अख्तर हैं। कामयाब निर्माताओं ने कुछ सोच-समझ कर ही नित्या मेहरा की इस फिल्म को हरी झंडी दी होगी। कभी इन निर्माताओं से भी बात होनी चाहिए कि उन्होंने क्या सोचा था ? क्या फिल्म उनकी उम्मीदों पर खरी उतरी ? पल पल में दशकों की यात्रा करती यह फिल्म धीमी गति के बावजूद झटके देती है। 2016 से 2047 तक के सफर में हम किरदारों के इमोशन और रिएक्शन में अधिक बदलाव नहीं देखते। हां,यह पता चलता है कि तब स्मार्ट फोन कैसे होंगे और गाडि़यां कैसी होंगी ? दुनिया के डिजिटाइज होने के साथ सारी चीजें कैसे बदल जाएंगी ? यह भविष्य के भारत की झलक भी देती है। इसके अलावा फिल्म में कलाकार,परिवेश,मकान,गाडि़यों समेत सभी चीजें साफ और खूबसूरत हैं। उनमें चमक भी है। जय और दीया एक ही दिन पैदा होते हैं। आठ साल में दोनों की दोस्ती होती है। पढ़ाकू जय और कलाकार दीया अच्छे दोस्त हैं। दीया ज्यादा व्यावहारिक है। जय पढ़ाई और रिसर्च की सनक में रहता है। बड़े होने पर जय मैथ