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हर बारीकी के लिए परिश्रम - श्रुति तिवारी छाबड़ा

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-श्रुति तिवारी छाबड़ा  पिछले साल जब सुनने में आया की दिवाकर ब्‍योमकेश बक्शी पर फिल्म बना रहे है तो सोचा कौन देखने जाएगा ऐसे फिल्म। बचपन में रजित कपूर को ब्योमकेश का किरदार निभाते देखा था और मन मे ऐसी धारणा थी की कौन ले सकता है उनका स्थान। फिर एक हफ्ते पहले फिल्म के  ट्रेलर को देखा और सोचा कि देखना चाहिए। आखिर दिवाकर कोई ऐसे वैसे फ़िल्मकार नहीं है।  फिल्म का बैकग्राउण्ड 1942 के कोलकाता मे सेट है। फिल्म के शुरू होने से लेकर अंत तक कहीं भी ऐसा नहीं प्रतीत होता कि उस एरा को दिखाने में फिल्मकार से कहीं भी ज़रा सी चूक हुई है। हाथ रिक्शा से लेकर हिन्दी statesman अखबार और यहाँ तक कि पुरानी ट्राम तक यह एहसास दिलाती है कि दिवाकर को ऐस्थेटिक की कितनी समझ है और कितना परिश्रम किया गया है एक-एक बारीकी के लिए। यह आसान काम नहीं है। 2015 में 1942 क्रिएट करना। इसके लिए आर्ट डायरेक्‍टर कि भी खुले दिल से प्रशंसा करने के योग्य है।  जहां तक कहानी की बात है तो ब्‍योमकेश बक्शी एक डिटैक्टिव सीरीज़ थी जो शर्लाक होम्स कि तर्ज़ पर लिखी गयी थी। यह उस वक़्त कि बात थी जब फोरेंसिक अपनी बालावस्था मे भी न