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फिल्‍म समीक्षा : क्लिक

साउंड से डराने की कोशिश -अजय ब्रह्मात्‍मज किर्र... किर्र... फ्लैश... खींच गई तस्वीर। तस्वीर में उतरती धुएं की लकीर... धुएं की लकीर यानी कोई आत्मा और फिर उस आत्मा के पीछे का रहस्य। इस रहस्य के उद्घाटन में आधी फिल्म निकल जाती है। तब तक संदीप चौटा अलग-अलग ध्वनियों से दृश्यों में डर भरने की कोशिश करते हैं। हर दृश्य धम्म, धड़ाक म, फट-फटाक, थड , च्यूं-च्यूं जैसी किसी ध्वनि और शार्प कट के साथ अकस्मात खत्म होता है। निर्देशक को लगा होगा कि दर्शकों के डर के के लिए यह इफेक्ट कारगर होगा, लेकिन सिनेमाघरों में बैठे दर्शक हंस पड़ते हैं। पर्दे पर दिखाया जा रहा खौफ सिनेमाघर में नहीं पसर पाता। निर्देशक नई युक्ति निकालता है। वह आत्मा के बाद शरीर तक पहुंचता है। शरीर पलटने पर हमें एक विकृत चेहरा दिखता है, जिसे उसकी मां प्यार से चूमती और सो जाने के लिए कहती है। मां को भ्रम है कि उसकी बेटी मरी नहीं है। वह उसे बीमार समझती है। अंतिम संस्कार न हो पाने की वजह से आत्मा भटकती रहती है। इस आत्मा और फिल्म के किरदारों के बीच रिश्ता रहा है। वही अब सता और डरा रहा है। संगीत सिवन की क्लिक साधारण किस्म की डरावनी फिल्म