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Showing posts from May, 2008

रामू और बच्चन परिवार के लिए मायने रखती है सरकार राज

रामगोपाल वर्मा की सरकार राज के साथ खास बात यह है कि यह उनकी बड़ी फ्लॉप रामगोपाल वर्मा की आग के बाद आ रही है। सच तो यह है कि फिलहाल सफलता को सलाम करने वाली फिल्म इंडस्ट्री ने रामू का नाम लगभग खारिज कर दिया है। हालांकि कभी उनके दफ्तर के बाहर संघर्षशील कलाकार और निर्देशकों की कतार लगी रहती थी। माना यह जाता था कि यदि रामू की फैक्ट्री का स्टाम्प लग जाए, तो फिल्म इंडस्ट्री में पांव टिकाने के लिए जगह मिल ही जाती है, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि उसी इंडस्ट्री में एक फिल्म के फ्लॉप होने के बाद रामू के पांव के नीचे की कालीन खींच ली गई है। अब देखना यह है कि रामू सरकार राज के जरिए फिर से लौट पाते हैं या नहीं? सरकार राज के साथ दूसरी खास बात यह है कि इसमें बच्चन परिवार के तीन सदस्य काम कर रहे हैं, जबकि सरकार में केवल अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन थे। इस बार बहू ऐश्वर्या राय बच्चन भी हैं। गौरतलब है कि अभिषेक और ऐश्वर्या की शादी के बाद दोनों की साथ वाली यह पहली फिल्म होगी। कहा यह भी जा रहा है कि बच्चन परिवार के सदस्यों ने इस फिल्म में जोरदार अभिनय किया है। उल्लेखनीय है कि रामू की सरकार सफल इसलिए भी हु

राम गोपाल वर्मा और सरकार राज

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यहाँ प्रस्तुत हैं सरकार राज की कुछ तस्वीरें.इन्हें चवन्नी ने राम गोपाल वर्मा के ब्लॉग से लिया है.जी हाँ,रामू भी ब्लॉग लिखने लगे हैं। http://rgvarma.spaces.live.com/default.aspx

वुडस्टाक विला: एक और धोखा

-अजय ब्रह्मात्मज संजय गुप्ता ने खुद को एक ब्रांड के तौर पर स्थापित कर लिया है। उनकी फिल्मों की रिलीज के पहले खूब चर्चा रहती है। अलग-अलग तरीके से वह फिल्म से संबंधित कार्यक्रम करते रहते हैं और टीवी चैनलों के लिए जरूरी फुटेज की व्यवस्था कर देते हैं। दर्शकइस भ्रम में रहते हैं कि कोई महत्वपूर्ण फिल्म आ रही है। एक बार फिर ऐसा ही धोखा हुआ है। हंसल मेहता के निर्देशनमें बनी वुडस्टाक विला इसी धोखे के कारण निराश करती है। विदेश में बसे भारतीय मूल के मां-बाप का बेटा सैम तफरीह के लिए भारत आया है। एक बातचीत में वह अपने दोस्त को बताता है कि भारत में हाट स्पाइसेज हैं, इसलिए वह यहां आया है। माफकरें, हाट स्पाइसेज का अर्थ आप गरम मसाला न लें। उसका इशारा लड़कियों की तरफ है। हर रात एक नई लड़की की तलाश उसका शौक है। इसी शौक के चक्कर में वह जारा के संपर्क में आता है। जारा उससे एक डील करती है कि वह उसे किडनैप कर ले और उसके पति से पचास लाख रुपयों की मांग करे। वह जांचना चाहती है कि उसका पति उसे प्यार करता है या नहीं? भूल से भी आप अपने पति का प्यार जांचने के लिए ऐसा तरीका आजमाने की मत सोचिएगा। बहरहाल, इस प्रपंच मे

कहां से लाएं कहानी?

-अजय ब्रह्मात्मज घोर अकाल है। दरअसल, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कहानी की ऐसी किल्लत पहले कभी नहीं हुई। अभी हर तरफ यही सुगबुगाहट है। सभी एक-दूसरे से कहानी मांग रहे हैं। हर व्यक्ति नए विचार, विषय और वस्तु की तलाश में है और शायद इसीलिए कुछ महीने पहले सुभाष घई के हवाले से खबर आई थी कि वे मौलिक कहानी के लिए एक करोड़ रुपए देने को तैयार हैं। उन्होंने एक बातचीत में यह भी कहा कि अगर कोई उनके इंस्टीट्यूट में स्क्रिप्ट राइटिंग का कोर्स करने आए और महंगी फीस न दे पा रहा हो, तो वे उसे मुफ्त में ट्रेनिंग देंगे। पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट में भी स्क्रिप्ट राइटिंग पर जोर दिया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले एनएफडीसी ने स्क्रिप्ट राइटिंग का वर्कशॉप किया था। हाल में दो संस्थानों ने स्क्रिप्ट राइटिंग को बढ़ावा देने और नए लेखन की उम्मीद में दो अभियान आरंभ किए हैं। तात्पर्य यह कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कहानियों की मांग है और एक अरब से ज्यादा व्यक्तियों के देश में कायदे की बीस-पचीस कहानियां भी नहीं मिल पा रही हैं, जिन पर फिल्म बनाई जा सके! मिर्ची मूवीज ने स्क्रिप्ट-कहानी के लिए प्रतियोगिता आयोजित की है

बिग बी के ब्लॉग से 'अलाद्दीन' की तस्वीरें और चंद बातें

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बिग बी यानि अमिताभ बच्चन अपने ब्लॉग पर रोचक जानकारियाँ भी दे रहे हैं.उन्होंने अपनी ताज़ा फ़िल्म 'अलाद्दीन' की तस्वीरें पोस्ट की हैं और उनके बारे में विस्तृत तरीके से बताया है.फ़िल्म में विशेष प्रभाव को समझाया है और यह आशंका भी व्यक्त की है कि भविष्य में ऐक्टर का काम मुश्किल और चुनौतियों से भरा होगा। पीली आभा की दोनों तस्वीरें एक गाने की हैं.और नीली आभा की तस्वीरें एक विशेष प्रभाव के दृश्य हैं। दोनों आभा की तस्वीरों में जो हरे और नीले रंग की पृष्ठभूमि दिख रही है.वह फ़िल्म बदल जायेगी.वहाँ कुछ और छवियाँ आ जायेंगी.आप अनुमान भी नहीं लगा सकेंगे कि कैसे यह कमाल हुआ होगा. इन दिनों सभी ऐक्टर अभिनय के इस तकनीकी पक्ष से जूझ रहे हैं.आजकल हर फ़िल्म में कमोबेश विशेष प्रभाव तो रहता ही है. इस तस्वीर में अमिताभ बच्चन एक बर्फीली पहाडी पर हैं. इस उम्र में भी उनका जोश देखते ही बनता है.आप दोनों तस्वीरों को गौर से देखें और फ़िल्म देखते समय याद रखें तो थोड़ा समझ पायेंगे.बिग बी अपने ब्लॉग पर कई बार ऐसी जानकारियां सहज शब्दों में लिख देते है.बिल्कुल आम दर्शक भी समझ सकते हैं। http://blogs.bigadda.com/ab

बॉक्स ऑफिस:३०.०५.२००८

धड़ाम से गिरी धूम धड़ाका वक्त आ गया है कि हिंदी फिल्मों के निर्माता-निर्देशक रिलीज के पहले अपनी कॉमेडी फिल्मों की परख कर लें। पिछले हफ्ते रिलीज हुई डॉन मुत्थुस्वामी और धूम धड़ाका से सीखने की जरूरत है। दोनों ही फिल्में बॉक्स ऑफिस पर धड़ाम से गिरीं। डॉन मुत्थुस्वामी में मिथुन चक्रवर्ती और धूम धड़ाका में अनुपम खेर थे। दोनों ने मेहनत भी की थी, पर जैसे अकेला चना भांड़ नहीं फोड़ सकता ़ ़ ़ वैसे ही अकेला एक्टर फिल्म नहीं चला सकता। फिल्म के चलने में कई ताकतों का मजबूत हाथ होता है। डॉन मुत्थुस्वामी और धूम धड़ाका नकल में खो रही अकल के नमूने हैं। फिल्मों की क्वालिटी के अनुपात में ही उन्हें दर्शक मिले। दोनों फिल्मों के कलेक्शन दस से पंद्रह प्रतिशत ही रहे। मुंबई में दर्शकों के अभाव की वजह से पहले ही दिन धूम धड़ाका के कुछ शो रद्द करने पड़े। घटोत्कच ने भी निराश किया। उम्मीद थी कि छुट्टी के दिनों में बच्चों को केंद्रित कर बनायी गयी यह फिल्म ठीक चलेगी, लेकिन बच्चों ने घटोत्कच में रुचि नहीं दिखाई। पहले दिन जो कुछ बच्चे देखने गए, उन्होंने अपने दोस्तों से फिल्म देखने की सिफारिश नहीं की। एनीमेशन का नाम देक

फट से फायर फिलम लगा दे

चवन्नी को राकेश रंजन की यह कविता बहुत सही लगी.चवन्नी के पाठक यह न समझें कि आजकल चवन्नी फिल्मों की दुनिया से बाहर टाक-झाँक कर रहे हैं.इस कविता में भी फ़िल्म का ज़िक्र है और वह भी विवादास्पद फ़िल्म फायर का... आ बचवा,चल चिलम लगा दे। रात भई,जी अकुलाता है कैसा तो होता जाता है ऊ ससुरा रमदसवा सरवा अब तक रामचरित गाता है रमदसवा जल्दी सो जाए ऐसा कोई इलम लगा दे । आ बचवा,अन्दरवा आजा हौले से जड़ दे दरवाजा रामझरोखे पे लटका दे तब तक यह बजरंगी धाजा हाँ,अब,सब कुछ बहुत सही है फट से फायर फिलम लगा दे. अभी -अभी जन्मा है कवि संग्रह से

१२ घंटे पीछे क्यों है ब्लॉगवाणी?

ब्लॉगवाणी में सुधार और परिष्कार हुआ है.कई नई सुविधाएं आ गई हैं.देख कर अच्छा लग रहा है.लेकिन घड़ी क्यों गड़बड़ हो गई है ब्लॉगवाणी की?आज सवेरे १० बज कर ७ मिनट पर चवन्नी ने एगो चुम्मा पोस्ट किया था.जब ब्लॉगवाणी पर जाकर चवन्नी ने देखा तो वहाँ रात का १० बज कर ७ मिनट हो रहा था.तारीख भी कल की थी.ब्लॉगर लोग तो आजकल ब्लोगयुद्ध में लगे हैं,इसलिए शायद किसी धुरंधर ब्लॉगर का ध्यान इधर नहीं गया.चवन्नी की इस हिमाकत को ग़लत न लें आप सभी.जरूरी समझा चवन्नी ने,इसलिए ध्यान दिला रहा है। अरे ये क्या हो रहा है...पसंद और टिप्पणी दोनों बरस रहे हैं...नहीं,नहीं ...बादल थे ,गरजे और गुजर गए...

एगो चुम्मा...पर हुआ विवाद

ख़बर पटना से मिली है.चवन्नी के एक दोस्त हैं पटना में.फिल्मों और फिल्मों से संबंधित गतिविधियों पर पैनी नज़र रखते हैं.टिप्पणी करते हैं। उन्होंने ने बताया की पटना में पिछले दिनों एक भोजपुरी फ़िल्म के प्रचार के लिए मनोज तिवारी और रवि किशन पहुंचे.फ़िल्म का नाम है - एगो चुम्मा देले जइह हो करेजऊ। भोजपुरी के इस मशहूर गीत को सभी लोक गायकों ने गाया है.अब इसी नाम से एक फ़िल्म बन गई है.उस फ़िल्म में मनोज तिवारी और रवि किशन दोनों भोजपुरी स्टार हैं.साथ में भाग्यश्री भी हैं.इस फ़िल्म के प्रचार के लिए आयोजित कार्यक्रम में मनोज ने मंच से कहा की इस फ़िल्म का नाम बदल देना चाहिए.भोजपुरी संस्कृति के हिसाब से यह नाम उचित नहीं है,लेकिन रवि भइया को इसमें कोई परेशानी नहीं दिखती.मनोज हों या रवि दोनों एक- दूसरे पर कटाक्ष करने का कोई मौका नहीं चूकते.सुना है कि बात बहुत बढ़ गई.मनोज ने अगला वार किया कि रवि भइया की असल समस्या मेरी मूंछ है.कहते रवि किशन ने मंच पर ही कहा कि तुम्हारा मूंछ्वे कबाड़ देंगे। मनोज तिवारी और रवि किशन की नोंक-झोंक से आगे का मामला है यह.भोजपुरी फिल्मों में भरी मात्रा में अश्लीलता रहती है.भोज

सलमान खान का शुक्राना

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सलमान खान ने भी ब्लॉग लिखना शुरू कर दिया है.उन्होंने यह ब्लॉग हम सभी की तरह ब्लागस्पाट पर ही आरंभ किया है.इसका नम दस का दम रखा गया है.इसी नाम से सलमान खान सोनी टीवी पर एक शो लेकर आ रहे है.यह उसी से संबंधित है.लोगों को लग सकता है कि दस का दम के प्रचार के लिए इसे शुरू किया गया है.अगर ऐसा है भी तो क्या दिक्कत है?सलमान खान ने अभी तक पाँच पोस्ट डाली है। आप अवश्य पढ़ें.आप समझ पाएंगे कि सलमान किस मिजाज के व्यक्ति हैं.उनमें एक प्रकार का आलस्यपना है.वह उनके लेखन में झलकता है.खान त्रयी के बाकी दोनों खान आमिर और शाहरुख़ कि तरह उन्हें बतियाने नहीं आता.बहुत कम बोलते हैं और जिंदगी की साधारण चीजों में खुश रहते हैं.सलमान खान ने यहाँ अपने दर्शकों से सीधे बात की है.चवन्नी को तो उनकी बातों रोचक जानकारी मिली है.सलमान खान का कहना है कि अक्ल हर काम को ज़ुल्म बना देती है.यही कारन है कि सलमान खान अक्लमंदी की बातें करने से हिचकते हैं। सलमान खान का अपना दर्शक समूह है.उनकी फ़िल्म को पहले दिन अवश्य दर्शक मिलते हैं.गौर करें तो उन्होंने बहुत उल्लेखनीय फ़िल्म नहीं की है,फिर भी लोकप्रियता के मामले में वे आगे रहे हैं.

कंफ्यूजन की बिसात पर कामेडी का तड़का

-अजय ब्रह्मात्मज प्रियदर्शन की फिल्मों से एक खास ट्रेंड चला है। जिसके मुताबिक कहानी में कंफ्यूजन पैदा करो तो कामेडी अपने आप निकल आएगी। हिंदी फिल्मों में इन दिनों कामेडी के नाम पर ऐसी ही फिल्में बन रहीं हैं। अगर आप अपनी समझ और संवेदना का स्तर नीचे ले आएं तो डान मुत्थुस्वामी जैसी फिल्म का आनंद उठा सकते हैं। जिन शक्ति सामंत ने आराधना और अमर प्रेम जैसी फिल्में दी हों उनके ही सामंत मूवीज के बैनर तले डान मुत्थुस्वामी का निर्माण हुआ है। 14-15 साल पहले मिथुन चक्रवर्ती ने सीमित बजट की सी ग्रेड फटाफट फिल्मों का फैशन आरंभ किया था। लगता है उसी दौर की एक फिल्म छिटक कर 2008 में आ गई है। पिता की आत्मा की शांति के लिए डान मुत्थुस्वामी (मिथुन चक्रवर्ती) अच्छा आदमी बनना चाहता है। पिता की अंतिम इच्छा के मुताबिक जिंदगी और मौत के बीच लटके व्यक्ति की मदद के लिए वह कुछ भी कर सकता है। नेक इंसान बनने की उसकी घोषणा केसाथ शुरू हुआ कंफ्यूजन इतना बढ़ता है कि कुछ समय के बाद आप सोचना बंद कर देते हैं। निर्देशक असीम सामंत ने मिथुन की प्रतिभा के साथ खिलवाड़ किया है। लेकिन, फिल्म से यह भी पता लगता है कि बेहतरीन अभिनेता

घटोत्कच: एनीमेशन के नाम पर फूहड़ प्रस्तुति

-अजय ब्रह्मात्मज एस श्रीनिवास के निर्देशन में बनी घटोत्कच एनीमेशन फिल्मों के नाम पर चल रहे कारोबार की वास्तविकता सामने ला देती है। महाभारत के पात्र घटोत्कच के जीवन पर बनी इस एनीमेशन फिल्म को सुंदर और प्रभावशाली बनाने की संभावनाएं थीं, लेकिन निर्देशक ने एक मिथकीय किरदार को कैरीकेचर और कार्टून बना कर रख दिया है। एनीमेशन की बारीकियों में न जाकर सिर्फ कहानी की ही बात करें तो घटोत्कच के जीवन में हास्यास्पद प्रसंग दिखाने के लिए निर्देशक की कपोल कल्पना उसे आज तक खींचती है। समझ में नहीं आता कि निर्देशक की क्या मंशा है? आखिर किन दर्शकों के लिए यह फिल्म बनाई गई है। घटोत्कच की विकृत प्रस्तुति महाभारत के एक उल्लेखनीय वीर का मखौल उड़ाती है और उसे हिंदी फिल्मों के साधारण कामेडियन में बदल देती है। भीम और हिडिम्बा के बेटे घटोत्कच की महाभारत में खास भूमिका रही है। उन्होंने अपने शौर्य, पराक्रम और चमत्कार से श्रीकृष्ण का आर्शीवाद भी पाया था। अगर यह फिल्म बाल घटोत्कच के कारनामों तक सीमित रहती तो भी मनोरंजक और शिक्षाप्रद होती। घटोत्कच एनीमेशन के नाम पर फूहड़ प्रस्तुति है। दिक्कत यह है कि ऐसी फिल्म की मार्क

बच्चों की फिल्म में हैं अपार संभावनाएं

-अजय ब्रह्मात्मज आप लोगों ने भी गौर किया होगा। अगर कोई बच्चा किसी अक्षर के उच्चारण में तुतलाता है और आप उसी शब्द का तोतला उच्चारण करें, तो वह नाराज हो जाता है। इसकी सीधी वजह यह है कि वह अपनी जानकारी में सही उच्चारण कर रहा होता है और हम सभी से अपेक्षा रखता है कि हम भी सही उच्चारण करें। बच्चों की फिल्मों के बारे में यही बात कही जा सकती है। हमने अपनी तरफसे तय कर लिया है कि बच्चों की फिल्में कैसी होनी चाहिए और बच्चों को क्या पसंद आता है? बाल संवेदना के नाम पर ऐसी फिल्में बनती रही हैं, जिन्हें बच्चे बड़ों के तोतले उच्चारण की तरह नापसंद करते रहे हैं। लगभग दो दशकों तक चिल्ड्रेन फिल्म सोसाइटी के सौजन्य से ऐसी दर्जनों फिल्में बनीं, जिन्हें न तो बच्चों ने पसंद किया और न ही बड़ों ने! गौरतलब यह है कि ऐसी अधिकांश फिल्में 26 जनवरी, 15 अगस्त और चाचा नेहरू के जन्मदिन बाल दिवस पर बच्चों को जबरन दिखाई जाती हैं। चूंकि स्कूल और बाल सोसाइटी का सर्कुलर जारी हो गया रहता है, इसलिए युनिफॉर्म पहने बच्चे मन मारकर ऐसी फिल्में देखते हैं। सामान्य तौर पर भारतीय फिल्मों और खास कर हिंदी फिल्मों के फिल्मकारों ने बच्चों

बॉक्स ऑफिस :२०.०५.२००८

औसत कारोबार कर लेगी जन्नत जन्नत हिट हो गयी है। फिल्म से संबंधित एक प्रमुख व्यक्ति का यही एसएमएस आया तो लगा कि हर फिल्म की रिलीज के बाद उस यूनिट के लोगों द्वारा किए जाने वाले झूठे प्रचार का ही यह हिस्सा होगा। लेकिन सप्ताहांत के तीन दिनों में जन्नत ने उम्मीद से ज्यादा बिजनेस किया और सचमुच हिट होने की दिशा में अग्रसर दिखी। कुणाल देशमुख निर्देशित जन्नत से ज्यादा उम्मीद नहीं की गयी थी। इमरान हाशमी का मार्केट पिछली कुछ फिल्मों से ढीला ही चल रहा था। नायिका सोनल चौहान एकदम नयी थीं। फिर भी जन्नत को दर्शकों ने पसंद किया। फिल्म का आरंभिक कलेक्शन 90 फीसदी तक पहुंचा। सोमवार से फिल्म के कलेक्शन में थोड़ी गिरावट आई है। इस हफ्ते की फिल्मों को दर्शक मिले तो जन्नत का कलेक्शन और घटेगा। फिर भी माना जा रहा है कि जन्नत औसत कारोबार कर लेगी और और कम बजट के कारण निर्माताओं के लिए फायदेमंद साबित होगी। भूतनाथ को शहरों में दर्शकों ने पसंद किया। खास कर बच्चे इसे देख रहे हैं और उन्हें दिखाने के चक्कर में परिवार के बड़ों को भी इसे देखना पड़ रहा है। भूतनाथ के साथ रिलीज हुई जिम्मी सिनेमाघरों से उतर रही है। यशराज फिल्म

खप जाती है एक पीढ़ी तब मिलती है कामयाबी

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री समेत हर इंडस्ट्री और क्षेत्र में ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे। हजारों- लाखों उदाहरण हैं। एक पीढ़ी के खपने और होम होने के बाद ही अगली पीढ़ी कामयाब हो पाई। आजकल मनोवैज्ञानिक और अन्य सभी कहते हैं कि बच्चों पर अपनी इच्छाओं और सपनों का बोझ नहीं लादना चाहिए। लेकिन हम अपने आसपास ऐसे अनेक व्यक्तियों को देख सकते हैं, जिन्होंने अपने माता या पिता के सपनों को साकार किया। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे कई उदाहरण हैं। हाल ही में 'हाल-ए-दिल' के म्यूजिक रिलीज के समय फिल्म के निर्माता कुमार मंगत मंच पर आए। उन्होंने कहा कि मैं कुछ भी बोलने से घबराता हूं। लेकिन आज मैं खुद को रोक नहीं पा रहा हूं। आज मैं अवश्य बोलूंगा। उन्होंने समय और तारीख का उल्लेख करते हुए बताया कि 1973 में मैं आंखों से सपने लिए मुंबई आया था। इतने सालों के बाद मेरा वह सपना पूरा हो रहा है। मेरी बेटी अमिता पाठक फिल्मों में हीरोइन बन कर आ रही है। अमिता पाठक के पिता कुमार मंगत हैं। लंबे समय तक वे अजय देवगन के मैनेजर रहे। इन दिनों वे बिग स्क्रीन एंटरटेनमेंट के मालिक हैं और कई फिल्मों का निर्माण कर रहे हैं।

माँ से नहीं मिले खली पहलवान

खली पहलवान भारत आए हुए हैं.आप पूछेंगे चवन्नी को पहलवानी से क्या मतलब? बिल्कुल सही है आप का चौंकना. कहाँ चवन्नी चैप और कहाँ पहलवानी? चवन्नी को कोई मतलब ही नहीं रहता.मगर खली चवन्नी की दुनिया में आ गए.यहाँ आकर वे राजपाल यादव के साथ फोटो खिंचवाते रहे और फिर रविवार को धीरे से मन्नत में जा घुसे.मन्नत ??? अरे वही शाहरुख़ खान का बंगला.बताया गया की आर्यन और सुहाना खली पहलवान के जबरदस्त प्रशंसक हैं.प्रशंसक तो आप के भी बच्चे हो सकते हैं,लेकिन खली वहाँ कैसे जा सकते हैं।बेचारे खली पहलवान के पास तो इतना समय भी नहीं है कि वे माँ के पास जा सकें.चवन्नी को पता चला है कि खली की माँ ने घर का दरवाजा ८ फीट का करवा दिया है.उसे ४ फीट चौडा भी रखा है,ताकि लंबे-चौड़े हो गए बेटे को घर में घुसने में तकलीफ न हो.वहाँ नए दरवाजे के पास बैठी माँ खली का इंतज़ार कर रही है और यहाँ खली पहलवान शाहरुख़ खान के बेटे-बेटी का मनोरंजन कर रहे हैं। ऐसा कैसे हो रहा कि ढाई साल के बाद अपने देश लौटा बेटा माँ के लिए समय नहीं निकल पा रहा है.ऐसा भी तो नहीं है कि उसके पास गाड़ी-घोडा नहीं है.उसे तो बस सोचना है और सारा इन्तेजाम हो जायेगा

छोटी फिल्मों का सीमित संसार

-अजय ब्रह्मात्मज हिंदी की छोटी फिल्में अवधि, आकार या विषय की दृष्टि से छोटी नहीं होतीं, बल्कि बजट और कलाकारों से फिल्में छोटी या बड़ी हो जाती हैं। फिर उसी के अनुरूप उनका प्रचार भी किया जाता है। भले ही विडंबना हो, लेकिन यही सच है कि हिंदी फिल्में आज भी स्टार के कारण बड़ी हो जाती हैं। अगर स्टार रहेंगे, तो बजट बढ़ेगा और यदि बजट बढ़ा, तो फिल्म अपने आप महंगी हो जाती है। महंगी फिल्मों में निवेशित धन उगाहने के लिए मार्केटिंग और पब्लिसिटी पर भी ज्यादा खर्च किया जाता है। यह अलग बात है कि कई बार नतीजा ठन-ठन गोपाल हो जाता है, जैसा कि टशन के साथ हुआ। बहरहाल, हम छोटी फिल्मों की बातें कर रहे हैं। सुभाष घई की कंपनी मुक्ता आ‌र्ट्स ने सर्चलाइट नाम से एक अलग कंपनी बनाई है। यह कंपनी छोटी फिल्मों का निर्माण करती है। नागेश कुक्नूर की फिल्म इकबाल से इसकी शुरुआत हुई। यूटीवी ने भी स्पॉट ब्वॉय नाम से एक अलग कंपनी खोलकर छोटी फिल्मों का निर्माण आरंभ किया है। उनकी पहली फिल्म आमिर जल्दी ही रिलीज होगी। स्पॉट ब्वॉय ही अनुराग कश्यप की फिल्म देवड़ी का भी निर्माण कर रही है। यशराज फिल्म्स ने कोई अलग से कंपनी नहीं बनाई ह

बस नाम से ही 'जन्नत'

-अजय ब्रह्मात्मज भट्ट कैंप की खूबी है कि वे फटाफट फिल्में बनाते हैं। सीमित बजट, छोटी बात, नए व मझोले कलाकार और चौंकाने वाले कुछ संवाद..। जन्नत भी इसी प्रकार की फिल्म है। इसे युवा निर्देशक कुणाल देशमुख ने निर्देशित किया है। अर्जुन दीक्षित आदर्शवादी पिता का बेटा है। पिता से अलग मिजाज के अर्जुन द्वारा चुना हुआ माहौल अलग है। वह तीन पत्ती के खेल से जल्दी पैसे कमाने के चक्र में घुसता है और क्रिकेट मैच की फिक्सिंग तक पहुंचता है। धारावी की झोपड़पट्टी से निकला अर्जुन एक दिन दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन के शानदार बंगले में रहने लगता है। कहते हैं पाकिस्तानी कोच वूल्मर की हत्या की घटना से प्रेरित है यह फिल्म। अमीर बनने की लालसा रखने वाले अर्जुन की कहानी उस घटना के इर्द-गिर्द बुनी गई है। फिल्म में एक प्रेम कहानी भी है, जिसका तनाव किरदारों को जोड़े रखता है। भट्ट कैंप की फिल्मों में नायक-नायिका हमेशा खिंचे-खिंचे से रहते हैं। तनावपूर्ण प्रेम संबंध उनकी फिल्मों की विशेषता बन गयी है। जन्नत में अर्जुन और जोया के बीच भी ऐसा ही संबंध है। जन्नत की कहानी दो स्तरों पर चलती है। प्रेम कहानी के आगे-पीछे अर्जुन के

बॉक्स ऑफिस: १५.०५.२००८

भूतनाथ और जिम्मी में स्वाभाविक रूप से भूतनाथ को ज्यादा दर्शक मिले। हीरो-हीरोइन की रोमांटिक थ्रिलर या कामेडी जैसी फिल्म नहीं होने के बावजूद दर्शक उत्साह से भूतनाथ देखने आए। शायद अमिताभ बच्चन का आकर्षण रहा हो। इस फिल्म का कलेक्शन पहले दिन 60 प्रतिशत रहा। सप्ताहांत में कलेक्शन बढ़ा, लेकिन सोमवार से गिरावट दिखी। हिंदी फिल्मों का निश्चित खांचों में होना जरूरी होता है। भूतनाथ चिल्ड्रेन फिल्म या फैमिली फिल्म की दुविधा का शिकार हुई। फिर भी निर्माता रवि चोपड़ा और निर्देशक विवेक शर्मा का प्रयास उल्लेखनीय कहा जाएगा। जिम्मी की बॉक्स ऑफिस संभावना कम थी। मिथुन चक्रवर्ती के बेटे मिमोह चक्रवर्ती के प्रति किसी स्टार सन का आकर्षण नहीं था। फिल्म का प्रचार उस ढंग से किया ही नहीं गया था। इसके अलावा फिल्म भी कमजोर थी। मिमोह अच्छे डांसर हैं, लेकिन वह फिल्म को बचा नहीं सके। इस फिल्म का आरंभिक कलेक्शन 20-25 प्रतिशत ही रहा। समीक्षकों ने मिमोह के लुक और ड्रेस सेंस की काफी आलोचना की। पहले की फिल्मों में अनामिका और मिस्टर ह्वाइट मिस्टर ब्लैक सिनेमाघरों से उतारी जा रही हैं। यशराज फिल्म्स ने मल्टीप्लेक्स मालिकों से

ब्लॉग पर चल रही भौं-भौं

चवन्नी तो सोच रहा था की यह हिन्दी ब्लॉगर आपस में भौं-भौं करते रहते है.टिप्पणियों के माध्यम से एक-दूसरे को काटते और चाटते रहते हैं.चवन्नी को कोफ्त होती रही है ऐसी भौं-भौं से.उसे लगता था की हिंदीवाले बीमारू प्रदेश के हैं.हमेशा खौफ में जीते हैं और किसी की तरक्की उन्हें रास नहीं आती.पिछले दिनों हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में जो शब्दों के बाण चले उनसे आप सभी वाकिफ हैं। इधर आप ने गौर किया होगा की कुछ फिल्मी हस्तियाँ ब्लॉग लिख रही है.अमिताभ बच्चन तो इतने नियमित हैं कि आलोक पुराणिक के प्रतियोगी हो गए हैं.आप रोजाना कुच्छ न कुछ उनके ब्लॉग पर पा सकते हैं.उन्होंने शत्रुघ्न सिन्हा से लेकर शाहरुख़ खान तक से भौं-भौं की.चलते-चलते कुछ पत्रकारों पर भी छींटाकशी करने से वे बाज नहीं आते.अगर १०-१२ साल पहले भी आप ने कुछ उनके ख़िलाफ़ लिख दिया हो या बोल दिया हो तो हो सकता है कि वे अपने ब्लॉग में पलटवार करें.ब्लॉग का maadhyam उन्हें मिल गया है और इसे वे हथियार की तरह इअतेमाल कर रहे हैं। दूसरे हैं आमिर खान.उनहोंने लगान का डीवीडी रिलीज करने के बाद अपने प्रशंसकों से बात करने के लिए यह ब्लॉग आरंभ किया था.कुछ अच्छी जान

पहली सीढ़ी:आशुतोष गोवारिकर से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत

पहली सीढ़ी सीरिज में इस बार प्रस्तुत है आशुतोष गोवारिकर से हुई बातचीत.यह बातचीत जोधा अकबर की रिलीज से पहले हुई थी.आशुतोष ने इस बातचीत को बहुत गंभीरता से लिया था और पूरे मनोयोग से सभी प्रश्नों के उत्तर दिए थे। आपका बचपन कहाँ बीता। आप मुंबई के ही हैं या किसी और शहर के...? सिनेमा से आपका पहला परिचय कब हुआ? - मेरा जन्म मुंबई का ही है। मैं बांद्रा में ही पला-बढ़ा हूँ। जिस घर में मेरा जन्म हुआ है, उसी घर में आज भी रहता हूँ। फिल्मों से मेरा कोई संबंध नहीं था। मैं जब स्कूल में था, तो तमन्ना भी नहीं थी कि फिल्मों में एक्टिंग करूँगा। मेरे पिताजी एक पुलिस ऑफिसर रह चुके हैं। ऐसा भी नहीं था कि उनका कोई फिल्मी संबंध हो। जिस बंगले में मैं रहता था, वह बंगला कुमकुमजी का था। कुमकुमजी ने मदर इंडिया और अन्य कई फिल्मों में काम किया। कुमकुमजी को हम लोग पहचानते थे। उस समय उनके घर पर काफी सारे स्टारों का आना-जाना था। तीसरी कक्षा में मैंने एक नाटक किया था। उसमें मैंने पीछे खड़े एक सिपाही का किरदार किया। मेरा कोई डायलॉग नहीं था। उस नाटक का प्रसारण दूरदर्शन पर हुआ था। लेकिन दिमाग में खयाल नहीं आया कि एक्टिंग करना ह

घर का द्वार खोल दिया है: अमिताभ बच्चन

इन दिनों अमिताभ बच्चन आक्रामक मुद्रा में हैं। ऐसा लगता है कि वे किसी भी आरोप, प्रश्न या आशंका पर चुप नहीं रहना चाहते। आजकल आपकी ब्लॉगिंग की बहुत चर्चा है। यह माध्यम आपके संपर्क में कब आया? -हाल ही में। यह बहुत अच्छा माध्यम है। हम अपने प्रशंसकों के साथ व्यक्तिगत संपर्क कर सकते हैं। यह मुझे बहुत अच्छा लगता है। जैसे आप और हम अभी आमने-सामने बैठकर बातें कर रहे हैं, उसी तरह हम प्रशंसकों के साथ बातें कर सकते हैं। आपके ब्लॉग पर लोगों के कमेंट्स में पूछा जा रहा है कि बच्चन जी क्या हिंदी में ब्लॉगिंग नहीं कर सकते? -हां, अवश्य करेंगे। यह टेक्नोलॉजी मेरे लिए नई है। मेरे कंप्यूटर में अभी वह सॉफ्टवेयर नहीं है जो हिंदी में कनवर्ट कर देता है। वह अभी बन रहा है। जैसे ही बन जाएगा, उसके बाद हम सीधे हिंदी में भी लिखेंगे। एक सवाल हवा में है कि बच्चन जी ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्यों वे ब्लॉग पर सभी के जवाब लिख रहे हैं? ऐसी स्थिति क्यों आ गई? -क्यों परेशान हो रहे हैं? कैसी स्थिति आ गई है? ये मेरा जीवन है, उसे मैं अपने ढंग से व्यतीत करना चाह रहा हूं। मुझे अब एक जरिया प्राप्त हो गया है, जिससे मै

क्या अपनी फिल्में देखते हैं यश चोपड़ा?

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-अजय ब्रह्मात्मज फिल्म टशन की रिलीज और बॉक्स ऑफिस पर उसके बुरे हश्र के बाद यही सवाल उठ रहा है कि क्या यश चोपड़ा अपनी फिल्में देखते हैं? चूंकि वे स्वयं प्रतिष्ठित निर्देशक हैं और धूल का फूल से लेकर वीर जारा तक उन्होंने विभिन्न किस्म की सफल फिल्में दर्शकों को दी हैं, इसलिए माना जाता है कि वे भारतीय दर्शकों की रुचि अच्छी तरह समझते हैं। फिर ऐसा क्यों हो रहा है कि यशराज फिल्म्स की पांच फिल्मों में से चार औसत से नीचे और सिर्फ एक औसत या औसत से बेहतर फिल्म हो पा रही है। ऐसा तो नहीं हो सकता कि रिलीज के पहले ये फिल्में उनकी नजरों से नहीं गुजरी हों! क्या यश चोपड़ा की सहमति से इतनी बेकार फिल्में बन रही हैं? नील एन निक्की, झूम बराबर झूम जैसी फिल्मों को देखकर कोई भी अनुभवी निर्देशक उनका भविष्य बता सकता है? खास कर यश चोपड़ा जैसे निर्देशक के लिए तो यह सामान्य बात है, क्योंकि पिछले 60 सालों में उन्होंने दर्शकों की बदलती रुचि के अनुकूल कामयाब फिल्में दी हैं। वीर जारा उनकी कमजोर फिल्म मानी जाती है, लेकिन टशन और झूम बराबर झूम के साथ उसे देखें, तो कहना पड़ेगा कि वह क्लासिक है। दिल तो पागल है के समय यश चोपड

मिमोह ने खुद को साबित किया अच्छा डांसर

पहले यह जान लें कि जिम्मी मिथुन चक्रवर्ती के बेटे मिमोह चक्रवर्ती की पहली फिल्म है। किसी भी स्टार सन की पहली फिल्म में निर्देशक की कोशिश रहती है कि वह स्टार सन के टैलेंट को अच्छी तरह से दिखाए। जिम्मी देखने के बाद कह सकते हैं कि मिमोह अच्छे डांसर हैं और एक्शन दृश्य में भी सही लगते हैं। जहां तक एक्टिंग और इमोशन का मामला है तो अभी उन्हें मेहनत करनी होगी। जिम्मी के पिता ने बिजनेस फैलाने के लिए कर्ज में भारी रकम ली थी और बिजनेस में कामयाब नहीं होने पर दिल के दौरे से उनकी मृत्यु हो गयी। अब जिम्मी की जिम्मेदारी है कि वह उनके कर्ज को चुकाए। ज्यादा पैसे कमाने के लिए वह दिन में आटोमोबाइल इंजीनियर और रात में डीजे का काम करता है। उसे हर समय डांस करते ही दिखाया गया है। जिम्मी एक साजिश का शिकार होता है। खुद को निर्देष साबित करने में वह अपने एक्शन का हुनर भी दिखाता है। निर्देशक ने जिम्मी को ज्यादा इमोशनल सीन नहीं दिए हैं। शायद वह मिमोह की सीमाओं को जानते होंगे। अमूमन स्टार सन की फिल्म का पैमाना बड़ा होता है। मिमोह को यह सौभाग्य नहीं मिला। सीमित बजट की फिल्म में दोयम दर्जे के सहयोगी कलाकारों से काम लि

डरावनी फिल्म नहीं है भूतनाथ

-अजय ब्रह्मात्मज बीआर फिल्म्स की भूतनाथ डरावनी फिल्म नहीं है। फिल्म का मुख्य किरदार भूत है, लेकिन उसे अमिताभ बच्चन निभा रहे हैं। अगर निर्देशक अमिताभ बच्चन को भूत बना रहे हैं तो आप कल्पना कर सकते हैं कि वह भूत कैसा होगा? भूतनाथ का भूत नाचता और गाता है। वह बच्चे के साथ खेलता है और उससे डर भी जाता है। इस फिल्म का भूत केवल निर्दोष बच्चे की आंखों से दिखता है। निर्देशक विवेक शर्मा ने एक बच्चे के माध्यम से भूत के भूतकाल में झांक कर एक मार्मिक कहानी निकाली है, जिसमें रवि चोपड़ा की फिल्म बागवान की छौंक है। बंटू के पिता पानी वाले जहाज के इंजीनियर हैं, इसलिए उन्हें लंबे समय तक घर से दूर रहना पड़ता है। वे अपने बेटे और बीवी के लिए गोवा में मकान लेते हैं। उस मकान के बारे में मशहूर है कि वहां कोई भूत रहता है। मां अपने बेटे बंकू को समझाती है कि भूत जैसी कोई चीज नहीं होती। वास्तव में एंजल (फरिश्ते) होते हैं। फिल्म में जब भूत से बंकू का सामना होता है तो वह उसे फरिश्ता ही समझता है। वह उससे डरता भी नहीं है। भूत और बंटू की दोस्ती हो जाती है और फिर बंकू की मासूमियत भूत को बदल देती है। इस सामान्य सी कहानी मे