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बच्चों की फिल्म में हैं अपार संभावनाएं

-अजय ब्रह्मात्मज आप लोगों ने भी गौर किया होगा। अगर कोई बच्चा किसी अक्षर के उच्चारण में तुतलाता है और आप उसी शब्द का तोतला उच्चारण करें, तो वह नाराज हो जाता है। इसकी सीधी वजह यह है कि वह अपनी जानकारी में सही उच्चारण कर रहा होता है और हम सभी से अपेक्षा रखता है कि हम भी सही उच्चारण करें। बच्चों की फिल्मों के बारे में यही बात कही जा सकती है। हमने अपनी तरफसे तय कर लिया है कि बच्चों की फिल्में कैसी होनी चाहिए और बच्चों को क्या पसंद आता है? बाल संवेदना के नाम पर ऐसी फिल्में बनती रही हैं, जिन्हें बच्चे बड़ों के तोतले उच्चारण की तरह नापसंद करते रहे हैं। लगभग दो दशकों तक चिल्ड्रेन फिल्म सोसाइटी के सौजन्य से ऐसी दर्जनों फिल्में बनीं, जिन्हें न तो बच्चों ने पसंद किया और न ही बड़ों ने! गौरतलब यह है कि ऐसी अधिकांश फिल्में 26 जनवरी, 15 अगस्त और चाचा नेहरू के जन्मदिन बाल दिवस पर बच्चों को जबरन दिखाई जाती हैं। चूंकि स्कूल और बाल सोसाइटी का सर्कुलर जारी हो गया रहता है, इसलिए युनिफॉर्म पहने बच्चे मन मारकर ऐसी फिल्में देखते हैं। सामान्य तौर पर भारतीय फिल्मों और खास कर हिंदी फिल्मों के फिल्मकारों ने बच्चों