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पटना के रिजेंट सिनेमाघर में दो दिनों में तीन फिल्में

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रिजेंट सिनेमाघर का टिकट (अगला-पिछला) पटना का गांधी मैदान … कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है। गांधी मैदान के ही एक किनारे बना है कारगिल चौक। कारगिल में शहीद हुए सैनिकों की याद दिलाते इस चौराहे के पास एलफिंस्टन, मोना और रिजेंट सिनेमाघर हैं। मोना का पुनरूद्धार चल रहा है। कहा जा रहा है कि इसे मल्टीप्लेक्स का रूप दिया जा रहा है। अगर जल्दी बन गया तो यह पटना का पहला मल्टीप्लेक्स होगा। वैसे प्रकाश झा भी एक मल्टीप्लेक्स पटना में बनवा रहे हैं। पटना के अलावा बिहार और झारखंड के दूसरे जिला शहरों में भी मल्टीप्लेक्स की योजनाएं चल रही हैं। पूरी उम्मीद है कि अगले एक-दो सालों में बिहार और झारखंड के दर्शकों का प्रोफाइल बदल जाएगा। सिनेमाघरों में भीड़ बढ़ेगी और उसके बाद उनकी जरूरतों का खयाल रखते हुए हिंदी सिनेमा भी बदलेगा। फिलहाल, 1 अक्टूबर की बात है। भोजपुरी फिल्म 'हम बाहुबली' का प्रीमियर रिजेंट सिनेमाघर में रखा गया है। रिजेंट में आमतौर पर हिंदी फिल्में दिखाई जाती हैं। उस लिहाज से यह बड़ी घटना है। यहां यह बताना

राहुल उपाध्याय:बिग बी ब्लॉग के अनुवादक

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चवन्नी की मुलाक़ात राहुल उपाध्याय से ब्लॉग पर ही हुई.चवन्नी को उनका नुवाद सरल,प्रवाहपूर्ण और मूल के भावानुरूप लगा.चवन्नी ने उनसे बात भी की.पेश है उनसे हुई संक्षिप्त बातचीत... -आपने अमिताभ बच्चन के ब्लॉग के अनुवाद के बारे में क्यों सोचा? मैंने कई लोगों को यह कहते हुए पाया कि अमिताभ अंग्रेज़ी में क्यों लिख रहे हैं। जबकि उनकी फ़िल्में हिंदी में हैं। उन फ़िल्मों को देखने वाले, उन्हें चाहने वाले अधिकांश हिंदी भाषी हैं। और ऐसा सवाल उनसे एक साक्षात्कार में भी किया गया था। सुनने में आया हैं कि अमित जी भरसक प्रयास कर रहे हैं ताकि वे हिंदी में ब्लाग लिख सके। कुछ अड़चनें होगी। कुछ उनकी सीमाएं होगी। जिनकी वजह से 170 दिन के बाद भी वे हिंदी में ब्लाग लिखने में असमर्थ हैं। मुझे भी शुरु में कुछ अड़चने पेश आई थी। आजकल यूनिकोड की वजह से हिंदी में लिखना-पढ़ना-छपना आसान हो गया है। तो मैंने सोचा कि क्यों न उनका बोझ हल्का कर दिया जाए। अगर मैं अनुवाद कर सकता हूँ तो मुझे कर देना चाहिए। बजाए इसके कि बार बार उनसे अनुरोध किया जाए और बार बार उन्हें कोसा जाए कि आप हिंदी में क्यों नहीं लिखते हैं। जो पाठक हिंदी में पढ़ना

श्रीमान सत्यवादी और गुलजार

माना जाता है कि बिमल राय की फिल्म 'बंदिनी' से गुलजार का फिल्मी जीवन आरंभ हुआ। इस फिल्म के गीत 'मेरा गोरा अंग लेइ ले' का उल्लेख किया जाता है। किसी भी नए गीतकार और भावी फिल्मकार के लिए यह बड़ी शुरूआत है। लेकिन क्या आपको मालूम है कि गुलजार ने 'बंदिनी' से तीन साल पहले एसएम अब्बास निर्देशित 'श्रीमान सत्यवादी' के गीत लिखे थे। इस फिल्म में गीत लिखने के साथ निर्देशन में भी सहायक रहे थे। तब उनका नाम गुलजार दीनवी था। दीनवी उपनाम उनके गांव दीना से आया था। हेमेन गुप्ता की फिल्म 'काबुलीवाला' में भी उनका नाम सहायक निर्देशक के तौर पर मिलता है। जाने क्यों गुलजार के जीवनीकार उनकी इस फिल्म का उल्लेख नहीं करते? गुलजार ने स्वयं भी कभी स्पष्ट नहीं कहा कि 'बंदिनी' के 'गोरा अंग लेई ले' के पहले वे गीत लिख चुके थे। 'श्रीमान सत्यवादी' में राज कपूर और शकीला ने मुख्य चरित्र निभाए थे। फिल्म में दत्ताराम वाडेकर का संगीत था। गीतकारों में हसरत जयपुरी, गुलजार दीनवी और गुलशन बावरा के नाम हैं। गुलजार दीनवी ने इस फिल्म में (1) भीगी हव

बच्चन परिवार का जोश

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अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग पर 'अविस्मरणीय' यात्रा की झलकियाँ दी हैं.चवन्नी के पाठकों के लिए वहीँ से ये तस्वीरें ली गई हैं.

हिन्दी टाकीज:फिल्में देखना जरूरी काम है-रवि शेखर

रवि शेखर देश के जाने-माने फोटोग्राफर हैं.उनकी तस्वीरें कलात्मक और भावपूर्ण होती हैं.उनकी तस्वीरों की अनेक प्रदर्शनियां हो चुकी हैं.इन दिनों वे चित्रकारों पर फिल्में बनाने के साथ ही योग साधना का भी अभ्यास कर रहे हैं.चित्त से प्रसन्न रवि शेखर के हर काम में एक रवानगी नज़र आती है.उन्होंने हिन्दी टाकीज सीरिज में लिखने का आग्रह सहर्ष स्वीकार किया.चवन्नी का आप सभी से आग्रह है की इस सीरिज को आगे बढायें। प्रिय चवन्नी, एसएमएस और ईमेल के इस जमाने में बरसों बाद ये लाइनें सफेद कागज पर लिखने बैठा हूं। संभाल कर रखना। तुमने बनारस के उन दिनों को याद करने की बात की है जब मैं हिंदी सिनेमा के चक्कर में आया था। और मुझे लगता है था कि मैं सब भूल गया हूं। यादों से बचना कहां मुमकिन हो पाता है - चाहे भले आपके पास समय का अभाव सा हो। सन् 1974 की गर्मियों के दिन थे। जब दसवीं का इम्तहान दे कर हम खाली हुए थे। तभी से हिंदी सिनेमा का प्रेम बैठ चुका था। राजेश खन्ना का जमाना था। परीक्षा के बीच में उन दिनों फिल्में देखना आम नहीं था। तभी हमने बनारस के 'साजन' सिनेमा हाल में 'आ

बिग बक बन्नी

चवन्नी को बिग बक बन्नी का यह संक्षिप्त परिचय रवि रतलामी से प्राप्त हुआ। तीन घंटों की हिन्दी फ़िल्में क्या आपको बोर नहीं करतीं? आम अंग्रेज़ी फ़िल्में भी डेढ़-दो घंटे से कम नहीं होतीं. आमतौर पर किसी भी फ़िल्म में एक छोटी सी कथा होती है - बुराई पर अच्छाई की जीत. इसे कहने के लिए, इसी बात को बताने के लिए दर्शकों पर लगातार डेढ़ से तीन घंटे अत्याचार करना कितना सही है? कोई फ़िल्म कितना ही अच्छा बन जाए, गीत संगीत, दृश्य और भावप्रण अभिनय से सज जाए, परंतु फ़िल्म की लंबाई दर्शकों को पहलू बदलने को, बीच-बीच में जम्हाई लेने को मजबूर कर ही देती है. ऐसे में, एक घिसी पिटी कहानी पर बनाई गई एक छोटी सी त्रिआयामी एनीमेशन फिल्म – बिग बक बन्नी देखना कई मामलों में सुकून दायक है. वैसे यह फिल्म कई मामलों में बेजोड़ भी है. इसे ब्लेंडर नाम के एक मुफ़्त स्रोत अनुप्रयोग की सहायता से तैयार किया गया है. इस फिल्म को क्रिएटिव कॉमन्स लाइसेंस के तहत जारी किया गया है जिसे हर कोई मुफ़्त में देख सकता है व लोगों में वितरित कर सकता है. यानी आपको इसे देखने के लिए इसे खरीदने की आवश्यकता नहीं. फ़िल्म का तकनीकी पक्ष तो शानदार ह

हरमन बवेजा बनाम इमरान खान

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पिछली चार जुलाई को हरनाम बवेजा ने 'लव स्टोरी २०५०' और इमरान खान ने 'जाने तू या जाने ना' से अपनी मौजूदगी दर्शकों के बीच दर्ज की.अभी से यह भविष्यवाणी करना उचित नहीं होगा कि दोनों में कौन आगे जायेगा ?पहली फ़िल्म के आधार पर बात करें तो इमरान की फ़िल्म'जाने तू...'की कामयाबी सुनिशिचित हो गई है.'लव स्टोरी...' के बारे में यही बात नहीं कही जा सकती.हालाँकि चार जुलाई के पहले हरमन की फ़िल्म की ज्यादा चर्चा थी और इमरान की फ़िल्म छोटी मानी जा रही थी.वैसे भी हरमन की फ़िल्म ५० करोड़ में बनी है,जबकि इमरान की फ़िल्म की लगत महज १० करोड़ है। चवन्नी को इसका अंदेशा था.सबूत है इसी ब्लॉग पर किया गया जनमत संग्रह.चवन्नी ने पूछा था की पहले किसकी फ़िल्म देखेंगे? २५ लोगों ने इस जनमत संग्रह में भाग लिया था,जिनमें से १७ ने इमरान की फ़िल्म पहले देखने की राय दी थी,बाकी ८ ने हरमन के पक्ष में मत दिए.चवन्नी को तभी समझ जाना चाहिए था कि दोनों फिल्मों के क्या नतीजे आने जा रहे हैं.चवन्नी ने एक पोस्ट के बारे में सोचा भी था। हरमन और इमरान को मीडिया आमने-सामने पेश कर रहा है.मुमकिन है कि कुछ दिन

प्रियंका चोपड़ा, बारिश और एक मुलाकात

इन दिनों अंतरंग बातचीत तो छोड़िए, अंतरंग मुलाकातें भी नहीं हो पातीं। एक्टर व्यस्त हैं और फिल्म पत्रकार जल्दी से जल्दी अखबारों की जगह भरने में सिर्फ कानों और आंखों का सहारा ले रहे हैं। दिल और दिमाग अपने कोनों में दुबके पड़े हैं। आश्चर्य है कि इस स्थिति से सभी खुश हैं... अखबार के मालिक, संपादक, पत्रकार, पाठक और फिल्मी हस्तियां... इस स्थिति की परिस्थिति पर फिर कभी, फिलहाल चवन्नी की मुलाकात पिछले दिनों प्रियंका चोपड़ा से हुई। चवन्नी के पाठकों के लिए विशेष रूप से इस मुलाकात का विवरण... प्रियंका चोपड़ा से अजय ब्रह्मात्मज मिलने गए थे। चूंकि चवन्नी हमेशा उनके साथ रहता है, इसलिए स्वाभाविक रूप से इस इंटरव्यू के लिए मौजूद था। चवन्नी ने अजय से कहा भी कि गाड़ी निकाल लो। बारिश का दिन है। अपनी गाड़ी रहेगी तो गीले नहीं होंगे और भीगी हुई बातों से आप भी बचे रहोगे, लेकिन अजय को प्रियंका चोपड़ा के इंटरव्यू के बाद स्वानंद किरकिरे से मिलने के लिए बांद्रा भी जाना था, इसलिए गाड़ी निकालना मुनासिब नहीं था। बारिश में अनजानी सड़कों के गड्ढों की जानकारी नहीं रहती और फिर मुंबई में पार्किंग इतनी बड़ी समस

अभिनेत्री करीना कपूर बनाम ब्रांड बेबो

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ताजा खबर है कि करीना कपूर ने एक साबुन के विज्ञापन के लिए करोड़ों की रकम ली है। इस तरह वह विज्ञापन से कमाई करनेवाली महंगी अभिनेत्रियों में से एक हो गई हैं। इन दिनों वह हर तरह के कंज्यूमर प्रोडक्ट के विज्ञापनों में दिख रही हैं। अभिनेत्रियों की मांग कॉस्मेटिक, पर्सनल केयर प्रोडक्ट और ज्वेलरी के विज्ञापनों में ज्यादा रहती है। करीना कपूर इस तरह के विज्ञापनों में आगे हैं। वह लाइफ स्टाइल प्रोडक्ट बेचने के लिए सबसे उपयुक्त एक्ट्रेस मानी जा रही हैं। इन दिनो फिल्म अभिनेत्रियों की कमाई का बड़ा हिस्सा विज्ञापनों से आता है। पॉपुलर एक्टर की तरह पॉपुलर एक्ट्रेस भी इस कमाई पर पूरा ध्यान दे रही हैं। बाजार में करीना कपूर की मांग बढ़ने का एक कारण यह भी है कि पिछले साल उनकी फिल्म 'जब वी मेट' जबरदस्त हिट रही। उनके कुछ प्रशंसकों को लग सकता है कि शाहिद कपूर से अलग होकर उन्होंने अच्छा नहीं किया। नैतिकता के इस प्रश्न से उनके इमेज पर कोई फर्क नहीं पड़ा। उल्टा दर्शकों के बीच उनकी चाहत बढ़ गई है। हीरोइनों के सपनों में खोए दीवाने दर्शकों के लिए करीना कपूर ऐसी आइकॉन बन गयी हैं, जो किसी एक सितारे से नहीं बंध

जोधा अकबर के १०० दिन और उसके कटे दृश्य

जोधा अकबर के १०० दिन हो गए.इन दिनों हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री में १०० दिनों और ५० दिनों की भी पार्टियाँ होती हैं.पहले फिल्में सिल्वर जुबली और गोल्डेन जुबली मनाती थीं.२१ वीं सदी में सिल्वर और गोल्डेन जुबली सपना हो गई हैं.आजकल तो पहले दिन की अच्छी शुरूआत हो जाए तो अल दिन या रविवार तक सुपर हित के पोस्टर लग जाते हैं.जन्नत के साथ ऐसा हुआ है। बहरहाल,जोधा अकबर के १०० दिन पूरे होने के अवसर पर निर्देशक और निर्माता आशुतोष गोवारिकर ने पार्टी दी.चवन्नी भी वहाँ गया था.इस पार्टी में उन्होंने फ़िल्म के कटे हुए दृश्य दिखाए.आशुतोष ने बताया की उन्होंने पहले सब कुछ स्क्रिप्ट के मुताबिक शूट कर लिया था.बाद में फ़िल्म संपादित करते समय उन्होंने दृश्य काटे. इस मौके पर उन्होंने सारे कटे दृश्य दिखाए.कुछ अत्यन्त मार्मिक और महत्वपूर्ण दृश्य थे,लेकिन फ़िल्म की लम्बाई की वजह से उन्हें रखने का मोह आशुतोष को छोड़ना पड़ा। अकबर के दरबार में बीरबल की एंट्री का दृश्य रोचक और जानदार था.कैसे महेश दास नाम का व्यक्ति अकबर को अपनी हाजिरजवाबी से खुश करता है और दरबार में जगह पाता है.कैसे मुल्ला दो प्याजा उसे दरबार में आने से रोकने

राम गोपाल वर्मा और सरकार राज

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यहाँ प्रस्तुत हैं सरकार राज की कुछ तस्वीरें.इन्हें चवन्नी ने राम गोपाल वर्मा के ब्लॉग से लिया है.जी हाँ,रामू भी ब्लॉग लिखने लगे हैं। http://rgvarma.spaces.live.com/default.aspx

१२ घंटे पीछे क्यों है ब्लॉगवाणी?

ब्लॉगवाणी में सुधार और परिष्कार हुआ है.कई नई सुविधाएं आ गई हैं.देख कर अच्छा लग रहा है.लेकिन घड़ी क्यों गड़बड़ हो गई है ब्लॉगवाणी की?आज सवेरे १० बज कर ७ मिनट पर चवन्नी ने एगो चुम्मा पोस्ट किया था.जब ब्लॉगवाणी पर जाकर चवन्नी ने देखा तो वहाँ रात का १० बज कर ७ मिनट हो रहा था.तारीख भी कल की थी.ब्लॉगर लोग तो आजकल ब्लोगयुद्ध में लगे हैं,इसलिए शायद किसी धुरंधर ब्लॉगर का ध्यान इधर नहीं गया.चवन्नी की इस हिमाकत को ग़लत न लें आप सभी.जरूरी समझा चवन्नी ने,इसलिए ध्यान दिला रहा है। अरे ये क्या हो रहा है...पसंद और टिप्पणी दोनों बरस रहे हैं...नहीं,नहीं ...बादल थे ,गरजे और गुजर गए...

सलमान खान का शुक्राना

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सलमान खान ने भी ब्लॉग लिखना शुरू कर दिया है.उन्होंने यह ब्लॉग हम सभी की तरह ब्लागस्पाट पर ही आरंभ किया है.इसका नम दस का दम रखा गया है.इसी नाम से सलमान खान सोनी टीवी पर एक शो लेकर आ रहे है.यह उसी से संबंधित है.लोगों को लग सकता है कि दस का दम के प्रचार के लिए इसे शुरू किया गया है.अगर ऐसा है भी तो क्या दिक्कत है?सलमान खान ने अभी तक पाँच पोस्ट डाली है। आप अवश्य पढ़ें.आप समझ पाएंगे कि सलमान किस मिजाज के व्यक्ति हैं.उनमें एक प्रकार का आलस्यपना है.वह उनके लेखन में झलकता है.खान त्रयी के बाकी दोनों खान आमिर और शाहरुख़ कि तरह उन्हें बतियाने नहीं आता.बहुत कम बोलते हैं और जिंदगी की साधारण चीजों में खुश रहते हैं.सलमान खान ने यहाँ अपने दर्शकों से सीधे बात की है.चवन्नी को तो उनकी बातों रोचक जानकारी मिली है.सलमान खान का कहना है कि अक्ल हर काम को ज़ुल्म बना देती है.यही कारन है कि सलमान खान अक्लमंदी की बातें करने से हिचकते हैं। सलमान खान का अपना दर्शक समूह है.उनकी फ़िल्म को पहले दिन अवश्य दर्शक मिलते हैं.गौर करें तो उन्होंने बहुत उल्लेखनीय फ़िल्म नहीं की है,फिर भी लोकप्रियता के मामले में वे आगे रहे हैं.

खप जाती है एक पीढ़ी तब मिलती है कामयाबी

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री समेत हर इंडस्ट्री और क्षेत्र में ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे। हजारों- लाखों उदाहरण हैं। एक पीढ़ी के खपने और होम होने के बाद ही अगली पीढ़ी कामयाब हो पाई। आजकल मनोवैज्ञानिक और अन्य सभी कहते हैं कि बच्चों पर अपनी इच्छाओं और सपनों का बोझ नहीं लादना चाहिए। लेकिन हम अपने आसपास ऐसे अनेक व्यक्तियों को देख सकते हैं, जिन्होंने अपने माता या पिता के सपनों को साकार किया। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे कई उदाहरण हैं। हाल ही में 'हाल-ए-दिल' के म्यूजिक रिलीज के समय फिल्म के निर्माता कुमार मंगत मंच पर आए। उन्होंने कहा कि मैं कुछ भी बोलने से घबराता हूं। लेकिन आज मैं खुद को रोक नहीं पा रहा हूं। आज मैं अवश्य बोलूंगा। उन्होंने समय और तारीख का उल्लेख करते हुए बताया कि 1973 में मैं आंखों से सपने लिए मुंबई आया था। इतने सालों के बाद मेरा वह सपना पूरा हो रहा है। मेरी बेटी अमिता पाठक फिल्मों में हीरोइन बन कर आ रही है। अमिता पाठक के पिता कुमार मंगत हैं। लंबे समय तक वे अजय देवगन के मैनेजर रहे। इन दिनों वे बिग स्क्रीन एंटरटेनमेंट के मालिक हैं और कई फिल्मों का निर्माण कर रहे हैं।

माँ से नहीं मिले खली पहलवान

खली पहलवान भारत आए हुए हैं.आप पूछेंगे चवन्नी को पहलवानी से क्या मतलब? बिल्कुल सही है आप का चौंकना. कहाँ चवन्नी चैप और कहाँ पहलवानी? चवन्नी को कोई मतलब ही नहीं रहता.मगर खली चवन्नी की दुनिया में आ गए.यहाँ आकर वे राजपाल यादव के साथ फोटो खिंचवाते रहे और फिर रविवार को धीरे से मन्नत में जा घुसे.मन्नत ??? अरे वही शाहरुख़ खान का बंगला.बताया गया की आर्यन और सुहाना खली पहलवान के जबरदस्त प्रशंसक हैं.प्रशंसक तो आप के भी बच्चे हो सकते हैं,लेकिन खली वहाँ कैसे जा सकते हैं।बेचारे खली पहलवान के पास तो इतना समय भी नहीं है कि वे माँ के पास जा सकें.चवन्नी को पता चला है कि खली की माँ ने घर का दरवाजा ८ फीट का करवा दिया है.उसे ४ फीट चौडा भी रखा है,ताकि लंबे-चौड़े हो गए बेटे को घर में घुसने में तकलीफ न हो.वहाँ नए दरवाजे के पास बैठी माँ खली का इंतज़ार कर रही है और यहाँ खली पहलवान शाहरुख़ खान के बेटे-बेटी का मनोरंजन कर रहे हैं। ऐसा कैसे हो रहा कि ढाई साल के बाद अपने देश लौटा बेटा माँ के लिए समय नहीं निकल पा रहा है.ऐसा भी तो नहीं है कि उसके पास गाड़ी-घोडा नहीं है.उसे तो बस सोचना है और सारा इन्तेजाम हो जायेगा

कैटरिना और अक्षय की नजदीकियां

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यह तस्वीर अक्षय कुमार और कैटरिना कैफ की है.अक्षय कुमार दिल्ली की टीम की हौसलाआफजाई के लिए हमेशा पहुँच जाते हैं.कैटरिना कैफ विजय माल्या की टीम के साथ हैं.पिछले दिनों दोनों एक साथ मैच देख रहे थे.जाहिर सी बात है की दोनों अपनी-अपनी टीम के लिए ही वहाँ रहे होंगे.लेकिन लोगों कि निगाह का क्या कहेंगे? उन्होंने ने कुछ और ही देखा. मैच तो सारे लोग देख रहे थे,लेकिन घरों में टीवी पर मैच देख रहे दर्शक अक्षय और कैटरिना की नजदीकियां देख रहे थे। चवन्नी की रूचि इन बातों में नहीं रहती कि कौन किस के करीब आया या कौन किस से दूर गया.लेकिन अक्षय-कैटरिना का मामला थोड़ा अलग है.चवन्नी ने शोभा डे के स्तम्भ में पढ़ा.उन्होंने साफ लिखा है कि सलमान को समझ जाना चाहिए कि कैटरिना क्या संकेत दे रही हैं.शोभा मानती हैं कि दोनों की शारीरिक मुद्राओं से ऐसा नहीं लग रहा था कि वे केवल सहयोगी कलाकार हैं.शोभा डे के इस निरीक्षण पर गौर करने की जरूरत हैं.क्योंकि शोभा डे बोलती हैं तो हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री सुनती है। सच क्या है?यह तो अक्षय या कैटरिना ही बता सकते हैं...हाँ,कुछ समय तक अब दोनों चर्चा में रहेंगे और इसी बहने उनकी फ़िल्म स

मलखंभ : मल्लिका और खम्भा

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मल्लिका और खम्भा को एक साथ मिला देन तो यही शब्द बनेगा.अगर इस शब्द में किसी को कोई और अर्थ दिख रहा हो तो आगे न पढ़ें। कमल हसन की फ़िल्म दसावतारम आ रही है.इस फ़िल्म में कमल हसन ने दस भूमिकाएं निभायीं हैं.कमल हसन को रूप बदलने का पुराना शौक है.बहरहाल एक रूप में उनका साथ दे रही हैं मल्लिका शेरावत.मल्लिका शेरावत ने अभिनेत्री के तौर पर भले ही अभी तक कोई सिक्का न जमाया हो,लेकिन उनकी चर्चा होती रहती है.इसी फ़िल्म के मुसिक रिलीज के मौके पर वह चेन्नई में मौजूद थीं और ऐसा कहते हैं की जब खास मेहमान के तौर पर आए जैकी चान से उछारण की गलतियां होने लगीं तो मल्लिका ने उनकी मदद की.आखी वह उनकी फ़िल्म में काम जो कर चुकी हैं.पिछले साल वह गुरु में मैंया मैंया गति नज़र आई थीं.और हाँ हिमेश रेशमिया की फ़िल्म आपका सुरूर में भी दिखी थीं.दोनों ही फिल्मों में उनके आइटम गीत थे.बस... मल्लिका शेरावत के बारे में आप क्या सोचते हैं और क्या इस मलखंभ के लिए दसावतारम देखने जायेंगे? और हाँ बिग बी के लिए काफी सवाल आए.कुछ सवालों के जवाब अमिताभ बच्चन ने दिए हैं.जल्दी ही आप उनके जवाब यहाँ पढेंगे.

ब्लॉग पर बेलाग बच्चन

बच्चन यानि बिग बी यानि अमिताभ बच्चन को इस अंदाज में आपने नहीं देखा होगा.आप जरा उनके ब्लॉग पर जाएं और उनकी छींटाकशी देखें। उन्होंने चौथे दिन के ब्लॉग में शत्रुघ्न सिन्हा पर सीधा आरोप लगाया है.पिछले दिनों शत्रु भइया ने अपने अंदाज में कहा कि आईफा के नामांकन की क्या बात करें?वहाँ कोई किसी का बेटा है,कोई किसी कि बहु है और कोई किसी कि बीवी है.उनकी इस टिपण्णी के आशय को समझते हुए बिग बी चुप नहीं रहे.उन्होंने रवीना टंडन को राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने के समय के विवाद का जिक्र किया और बताया कि कि कैसे तब कि जूरी में पूनम सिन्हा की सिफारिश पर मैकमोहन को शामिल किया गया था.जो लोग नहीं जानते उनकी जानकारी के लिए चवन्नी बता दे कि शत्रुघ्न सिन्हा कि पत्नी हैं पूनम सिन्हा.बहरहाल,बिग बी के ब्लॉग से लग रहा है कि वे सभी को जवाब देने के मूड में हैं। उन्होंने एक साल पहले आउटलुक पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट में शामिल टिप्पणीकारों को भी नहीं बख्शा है.उन्होंने सुनील गंगोपाध्याय,राजेंद्र यादव,प्रभाष जोशी और परितोष सेन को जो पत्र लिखे थे,उन्हें सार्वजनिक कर दिया है.उन्होंने सभी को चुनौती दी है कि वे अपनी टिप्पणियों को

आमिर खान का माफीनामा

आमिर खान पिछले दिनों टोरंटो में थे.वहाँ पहुँचने के पहले उन्होंने अपने ब्लॉग के जरिये टोरंटो के ब्लॉगर मित्रों को संदेश दिया था कि आप अपना सम्पर्क नम्बर दें.अगर मुझे मौका मिला तो आप में से कुछ मित्रों को बुलाकर मिलूंगा.इस सुंदर मंशा के बावजूद आमिर खान टोरंटो में समय नहीं निकाल सके.उन्होंने टोरंटो के अपने सभी ब्लॉगर मित्रों से माफ़ी मांगी है,लेकिन वादा किया है कि वे भविष्य में अपने ब्लॉगर मित्रों से जरूर मिलेंगे.टोरंटो के एअरपोर्ट से उन्होंने यह पोस्ट डाली है। गजनी के नए गेटउप में आमिर खान के कान काफी बड़े-बड़े दिख रहे हैं.आमिर खान ने बताया है कि उन्हें बचपन में बड़े कान वाला लड़का कहा जाता था.बचपन में उनका एक नाम बिग इअर्स (big ears) ही पड़ गया था.

गंजे हो गए आमिर खान

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अपनी नई फ़िल्म 'गजनी' के लिए आमिर खान को गंजा होना था.कल टोरंटो जाने से पहले अपने आवास पर उन्होंने हेयर स्टाइलिस्ट अवाँ कांट्रेक्टर को घर पर बुलाया।बीवी किरण राव और गीतकार प्रसून जोशी के सामने उन्होंने बाल कटवाए और गजनी के लुक में आ गए.आमिर खान ने अपनी फिल्मों के किरदार के हिसाब से लुक बदलने का रिवाज शुरू किया.गजनी में उन्हें इस लुक में इसलिए रहना है कि सिर पर लगा जख्म दिखाया जा सके.आमिर ने फ़िल्म के निर्देशक मुर्गदोस से अनुमति लेने के बाद ही अपना लुक बदला.ऐसा कहा जा रहा है कि 'गजनी'में मध्यांतर के बाद वे इसी लुक में दिखेंगे.