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फिल्‍म समीक्षा : दो लफ्जों की कहानी

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बासी और घिसी-पिटी -अजय ब्रह्मात्‍मज छल,प्रपंच,प्रेम,पश्‍चाताप,त्‍याग और समर्पण की ‘ दो लफ्जों की कहानी ’ सूरज और जेनी की प्रेमकहानी है। अनाथ सूरज मलेशिया के क्‍वालालमपुर श्‍हर में बड़ा होकर स्‍टॉर्म बॉक्‍सर के तौर पर मशहूर होता है। उसके मुकाबले में कोई दूसरा अखाड़े में खड़ा नहीं हो सकता। एक मुकाबले के समय धोखे से उसे कोई हारने के लिए राजी कर लेता है। वह हार भी जाता है,लेकिन यहां से उसके करिअर और जिंदगी में तब्‍दीली आ जाती है। सच की जानकारी मिलने पर वह आक्रामक और आहत होता है। उससे कुछ गलतियां होती हैं और वह पश्‍चाताप की अग्नि में सुलगता रहता है। संयोग से उसकी जिंदगी में जेनी आती है। वह एक दुर्घटना से दृष्टि बाधित है। सूरज को वह अच्‍छी लगती है। दोनों करीब आते हैं और अपनी गृहस्‍थी शुरू करते हैं। बाद में पता चलता है कि जिस दुर्घटना में जेनी की आंखों की रोशनी गई थी,वह सूरज की वजह से हुई थी। फिल्‍म की कहानी छह महीने पहले से शुरू होकर छह महीने बाद तक चलती है। इस एक साल की कहानी में ही इतनी घटनाएं होती हैं कि उनके बीच संबंध बिठाने-पिरोने में धागे छूटने लगते हैं। पंद्रह-बीस

फिल्‍म समीक्षा : सरबजीत

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एक कमजोर कोशिश -अजय ब्रह्मात्‍मज ओमंग कुमार की फिल्‍म ‘ सरबजीत ’ है तो सरबजीत की कहानी,लेकिन निर्देशक ने सुविधा और लालच में सरबजीत की बहन दलबीर कौर को कहानी की धुरी बना दिया है। इस वजह से नेक इरादों के बावजूद फिल्‍म कमजोर होती है। अगर दलबीर कौर पर ही फिल्‍म बनानी थी तो फिल्‍म का नाम दलबीर रख देना चाहिए था। पंजाब के एक गांव में छोटा सा परिवार है। सभी एक-दूसरे का खयाल रखते हैं और मस्‍त रहते हैं। दलबीर पति से अलग होकर मायके आ जाती है। यहां भाई-बहन के तौर पर उनकी आत्‍मीयता दिखाई गई है,जो नाच-गानों और इमोशन के बावजूद प्रभावित नहीं कर पाती। एक शाम दलबीर अपने भाई को घर में घुसने नहीं देती। उसी शाम सरबजीत अपने दोस्‍त के साथ खेतों में शराबनोशी करता है और फिर नशे की हालत में सीमा के पार चला जाता है। पाकिस्‍तानी सुरक्षा गार्ड उसे गिरफ्तार करते हैं। उस पर पाकिस्‍तान में हुए बम धमाकों का आरोप लगता है। उसे भारतीय खुफिया एजेंट ठहराया जाता है। दलबीर को जब यह पता चलता है कि उसका भाई पाकिस्‍तानी जेल में कैद है तो वह उसे निर्दोष साबित करने के साथ पाकिस्‍तानी जेल से छुड़ा कर भारत

फिल्‍म समीक्षा : लाल रंग

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माटी की खुश्‍बू और रंग -अजय ब्रह्मात्‍मज सय्यद अहमद अफजाल की ‘ लाल रंग ’ को नजरअंदाज या दरकिनार नहीं कर सकते। हिंदी की यह ठेठ फिल्‍म है,जिसमें एक अंचल अपनी भाषा,रंग और किरदारों के साथ मौजूद है। फिल्‍म का विषय नया और मौजूं है। पर्दे परदिख रहे नए चेहरे हैं। और साथ ही पर्दे के नीछे से भी नई प्रतिभाओं का योगदान है। यह फिल्‍म अनगढ़,अधपकी और थोड़ी कच्‍ची है। यही इसकी खूबी और सीमा है,जो अंतिम प्रभाव में कसर छोड़ जाती है। अफजाल ने दिल्‍ली से सटे हरियाणा के करनाल इलाके की कथाभूमि ली है। यहां शंकर मलिक है। वह लाल रंग के धंधे में है। उसके घर में एक पोस्‍टर है,जिस पर सुभाष चंद्र बोस की तस्‍वीर है। उनके प्रसिद्ध नारे में आजादी काट कर पैसे लिख दिया गया है- तुम मुझे खून दो,मैं तुम्‍हें पैसे दूंगा। शंकर मलिक अपने धंधे में इस कदर लिप्‍त है कि उसकी प्रेमिका परिवार के दबाव में उसे छोड़ जाती है। नृशंस कारोबार में होने के बावजूद वह दोस्‍तों की फिक्र करता है। इस कारोबार में वह एक नए लड़के(अक्षय ओबेराय) को शामिल करता है। धंधे के गुर सिखता है,जो आगे चल कर उसका गुरू बनने की कोशिश करता है।

दिखने लगी है मेरी मेहनत - रणदीप हुडा

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-अजय ब्रह्मात्‍मज रणदीप हुडा व्‍यस्‍त हैं। बहुत काम कर रहे हैं। तीन फिल्‍में पूरी कीं। तीनों बिल्‍कुल अलग-अलग और तीनों में काफी मेहनत करनी पड़ी। एक साल में 35 किलाग्राम वजन घटाना और बढ़ाना पड़ा। घुड़सवारी को शौक स्‍थगित रखना पड़ा। घोड़ों के साथ वे भी थोड़े अस्‍वस्‍थ चल रहे हैं। -वजन घटाना और बढ़ाना दोनों ही मुश्किल प्रक्रिया है। उधर आमिर ने वजन बढ़ाया और फिर घटाया। आप ने वजन घटाया और फिर बढ़ाया। 0 मैं तो फिर भी जवान हूं। आमिर की उम्र ज्‍यादा है। उनके लिए अधिक मुश्किल रही होगी। उम्र बढ़ने के साथ दिक्‍क्‍ते बढ़ती हैं। ‘ सरबजीत ’ के लिए वजन कम किया और ‘ दो लफ्जों की कहानी ’ के लिए 95 किलो वजन करना पड़ा। सिफग्‍ चर्बी नहीं घटानी होती। मांसपेशियों को भी घटाना होता है। उससे तनाव होता रहता है। - इन दोनों फिल्‍मों के बीच में ‘ लाल रंग ’ आया ? क्‍या फिल्‍म है ? 0 जी,यह अच्‍छा ही रहा। हिंदुस्‍तान में ज्‍यादातर फिल्‍में हवा में होती हैं। उनके शहर या ठिकानों के नाम नहीं होते। मेरी रुचि ऐसी कहानियों में रहती है,जिनका ठिकाना हो। पता हो कि किस देश के किस इलाके की कहानी कही जा

फिल्‍म समीक्षा : रंग रसिया

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- अजय ब्रह्मात्‍मज  अगर केतन केहता की 'रंग रसिया' समय से रिलीज हो गई होती तो बॉयोपिक के दौर की आरंभिक फिल्म होती। सन् 2008 में बन चुकी यह फिल्म अब दर्शकों के बीच पहुंची है। इस फिल्म को लेकर विवाद भी रहे। कहा गया कि यह उनके जीवन का प्रामाणिक चित्रण नहीं है। हिंदी फिल्मों की यह बड़ी समस्या है। रिलीज के समय आपत्ति उठाने के लिए अनेक चेहरे और समूह सामने आ जाते हैं। यही कारण है कि फिल्मकार बॉयोपिक या सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्मों को अधिक प्रश्रय नहीं देते। केतन मेहता ने रंजीत देसाई के उपन्यास पर इसे आधारित किया है। मुमकिन है इस फिल्म और उनके जीवन में पर्याप्त सामंजस्य नहीं हो,लेकिन केतन मेहता ने राजा रवि वर्मा के जीवन और कार्य को सामयिक संदर्भ दे दिया है। यह फिल्म कुछ जरूरी सवाल उठाती है। राजा रवि वर्मा केरल के चित्रकार थे। उन्होंने मुंबई आकर कला के क्षेत्र में काफी काम किया। विदेशों की कलाकृतियों से प्रेरित होकर उन्होंने भारतीय मिथक के चरित्रों को चित्रांकित करने का प्रशंसनीय कार्य किया। रामायण और महाभारत समेत पौराणिक "गाथाओं और किंवदंतियों को उन्होंने च

तस्‍वीरों में किक

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फिल्‍म समीक्षा : हाईवे

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  हिंदी और अंग्रेजी में ऐसी अनेक फिल्में आ चुकी हैं, जिनमें अपहरणकर्ता से ही बंधक का प्रेम हो जाता है। अंग्रेजी में इसे स्टॉकहोम सिंड्रम कहते हैं। इम्तियाज अली की 'हाईवे' का कथानक प्रेम के ऐसे ही संबंधों पर टिका है। नई बात यह है कि इम्तियाज ने इस संबंध को काव्यात्मक संवेदना के साथ लय और गति प्रदान की है। फिल्म के मुख्य किरदारों वीरा त्रिपाठी (आलिया भट्ट) और महावीर भाटी (रणदीप हुड्डा) की बैकस्टोरी भी है। विपरीत ध्रुवों के दोनों किरदारों को उनकी मार्मिक बैकस्टोरी सहज तरीके से जोड़ती है। इम्तियाज अली की 'हाईवे' हिंदी फिल्मों की मुख्यधारा में रहते हुए भी अपने बहाव और प्रभाव में अलग असर डालती है। फिल्म के कई दृश्यों में रोंगटे खड़े हो जाते हैं। सच का सामना न होने से न केवल किरदार बल्कि दर्शक के तौर पर हम भी स्तब्ध रह जाते हैं। इम्तियाज ने आज के दौर में बच्चों की परवरिश की एक समस्या को करीब से देखा और रेखांकित किया है,जहां बाहर की दुनिया के खतरे के प्रति तो सचेत किया जाता है लेकिन घर में मौजूद खतरे से आगाह नहीं किया जाता। वीरा की शादी

रणदीप हुडा : उलझे किरदारों का एक्‍टर

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-अजय ब्रह्मात्मज     रणदीप हुडा इम्तियाज अली की ‘हाईवे’ में रफ गूजर युवक महावीर भाटी की भूमिका निभा रहे हैं। ‘हाईवे’ रोड जर्नी फिल्म है। उनके साथ आलिया भट्ट हैं। इस फिल्म की शुटिंग 6 राज्यों में अनछुए लोकेशन पर हुई है।     दिल्ली से हमारी यात्रा शुरू हुई थी और दिल्ली में ही खत्म हुई। इस बीच हमने छह राज्यों को पार किया। अपनी जिंदगी में मैंने देश का इतना हिस्सा पहले नहीं देखा था। हम ऐसी सूनी और एकांत जगहों पर गए हैं,जहां कभी पर्यटक नहीं जाते। फिल्म में हमारा उद्देश्य लोगों से दूर रहने का है। इम्तियाज ने इसी उद्देश्य के लिए हमें इतना भ्रमण करवाया है। लोकेशन पर पहुंचने में ही काफी समय निकल जाते थे। शूटिंग कुछ ही दृश्यों की हो पाती थी।     यह पिक्चर जर्नी की है। इसमें किरदारों की बाहरी (फिजिकल) जर्नी के साथ-साथ भीतरी (इटरनल) जर्नी है। फिल्म के शुरू से अंत तक का सफर जमीन पर थोड़ा कम है। अंदरुनी यात्रा बहुत लंबी है। इस फिल्म में मैं दिल्ली के आस-पास का गूजर हूं, जो मेरे अन्य किरदारों के तरह ही परेशान हाल है। शायद निर्देशकों को लगता है कि मैं उलझे हुए किरदारों की आंतरिक कशमकश को अच्छी तरह

‘हाईवे’ के हमसफर वीरा और महावीर

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-अजय ब्रह्मात्मज     ‘हाईवे’ के हमसफर हैं वीरा त्रिपाठी और महावीर भाटी। दोनों अलग मिजाज के हैं, लेकिन इस सफर में साथ हैं। कुछ मजबूरियां हैं कि उनके रास्ते जुदा नहीं हो सकते। साथ-साथ चलते हुए उन्होंने देश के छह राज्यों के रास्ते नापे हैं। वे अनेक शहरों, कस्बों और गांवों से गुजर रहे हैं। दिल्ली की वीरा त्रिपाठी आभिजात्य परिवार की अमीर लडक़ी है। समझने की बात तो दूर रही,अभी उसने ठीक से दुनिया देखी ही नहीं है। दूसरी तरफ महावीर भाटी है। वह गूजर है। आपराधिक पृष्ठभूमि के महावीर को दुनिया के सारे गुर मालूम हैं। वह चालाक और दुष्ट भी है। दो विपरीत स्वभाव के किरदारों की रहस्यमय यात्रा की कहानी है ‘हाईवे’। इसे इम्तियाज अली डायरेक्ट कर रहे हैं और  निर्माता हैं साजिद नाडियाडवाला।     वीरा त्रिपाठी और महावीर भाटी से हमारी मुलाकात पहलगाम में हो गई। पहलगाम से 16 किलोमीटर दूर है अरू घाटी। अरू घाटी में उपर पहाडिय़ों पर दोनों के मौजूद होने की खबर मिली थी। स्थानीय गाइड और सहायकों की मदद से घोड़े पर सवार होकर ऊपर पहुंचना था। दो दिन पहले बारिश हो जाने से फिसलन बढ़ गई थी। कीचड़ तो पूरे भारत में बेहिसाब मिलती ह

फिल्‍म समीक्षा : मर्डर 3

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लव की मिस्ट्री -अजय ब्रह्मात्मज फिल्मकार इन दिनों लोभ और दबाव में हर फिल्म का ओपन एंड रख रहे हैं। अभी तक हिंदी फिल्में एक इंटरवल के साथ बनती थीं। अब पर्दे पर फिल्म समाप्त होने के बाद भी एक इंटरवल होने लगा है। यह इंटरवल महीनों और सालों का होता है, जबकि फिल्म का इंटरवल चंद मिनटों में खत्म हो जाता है। तात्पर्य यह कि सीक्वल की संभावना में लेखक-निर्देशक फिल्मों को 'द एंड' तक नहीं पहुंचा रहे हैं। विशेष भट्ट की 'मर्डर 3' भी इसी लोभ का शिकार है। पूरी हो जाने के बाद भी फिल्म अधूरी रहती है। लगता है कि क्लाइमेक्स अभी बाकी है। भट्ट परिवार के वारिस विशेष भट्ट ने फिल्म निर्माण के अनुभवों के बाद निर्देशन की जिम्मेदारी ली है। भट्ट कैंप में फिल्मों के 'असेंबल लाइन' प्रोडक्शन में डायरेक्टर के लिए अधिक गुंजाइश नहीं रहती है। महेश भट्ट की छत्रछाया और स्पर्श से हर फिल्म परिचित सांचे में ढल जाती है। दावा था कि विशेष भट्ट ने भट्ट कैंप की शैली में परिष्कार किया है। दृश्य संरचना में ऊपरी नवीनता दिखती है, लेकिन दृश्यों का आंतरिक भावात्मक तनाव पुराने सूत्रों पर ही चलता

फिल्‍म समीक्षा : जिस्‍म 2

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  प्रेम में डूबा देहगीत  -अजय ब्रह्मात्‍मज भट्ट कैंप की फिल्मों की एक खासियत सेक्स है। हालंाकि पूजा भट्ट का सीधा ताल्लुक महेश भट्ट से है,लेकिन वह विशेष फिल्म्स के बैनर तले फिल्में नहीं बनातीं। उनकी फिल्मों एक अलग किस्म का सौंदर्य रहता है,जिसे वह स्वयं रचती हैं। जिस्म 2 का सौंदर्य मनमोहक है। सेट,लोकेशन, कलाकारों के परिधान, दृश्य संरचना, चरित्रों के संबंध में सौंदर्य की छटाएं दिखती हैं। जिस्म 2 खूबसूरत फिल्म है। देह दर्शन के बावजूद यह अश्लील नहीं है। देह का संगीत पूरी फिल्म में सुनाई पड़ता है। वयस्क दर्शकों को उत्तेजित करना फिल्म का मकसद नहीं है। इस फिल्म के अंतरंग दृश्यों में सान्निध्य है। हिंदी फिल्मों के अंतरंग दृश्य मुख्य रूप से अभिनेत्रियों की झिझक और असहजता के कारण सुंदर नहीं बन पाते। सनी लियोन देह के प्रति सहज हैं। फिल्म का पहला संवाद है आई एम अ पोर्न स्टार..यह संवाद सनी लियोन की इमेज,दर्शकों की उत्कंठा और फिल्म को लेकर बनी जिज्ञासा को समाप्त कर देती है। पहले ही लंबे दृश्य में निर्देशक अपनी मंशा स्पष्ट कर देती है। शुद्धतावादियों को पूजा भट्ट की स्पष्टता और

हीरोइन की छह तस्‍वीरें

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रंग रसिया:दो तस्वीरें

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केतन मेहता की फ़िल्म 'रंग रसिया' की दो तस्वीरें देखें.यह १९ वीं सदी के मशहूर पेंटर राज रवि वर्मा के जीवन से प्रेरित है.इस फ़िल्म में रणदीप हुडा ने राज रवि वर्मा की भूमिका निभाई है तो नंदना सेन उनकी प्रेमिका सुगुना बाई बनी हैं.यह फ़िल्म विदेशों में दिखाई जा चुकी है.भारत में इसका प्रदर्शन अगले साल होगा .इसे A प्रमाण पत्र मिला है.