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अमृता राव से अजय ब्रह्मात्‍मज की बातचीत

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-अजय ब्रह्मात्मज     अमृता राव जल्दी ही सुभाष कपूर की फिल्म ‘जॉली एलएलबी’ में दिखाई पड़ेंगी। इस फिल्म में उन्होंने कस्बे की दबंग लडक़ी की भूमिका निभाई है। वह जॉली से प्रेम करती है, लेकिन उस पर धौंस जमाने से भी बाज नहीं आती। छुई मुई छवि की अमृता राव के लिए यह चैलेंजिंग भूमिका है। अमृता राव इन दिनों अनिल शर्मा की फिल्म ‘सिंह साब द ग्रेट’ की भोपाल में शूटिंग कर रही हैं। शूटिंग से फुर्सत निकाल कर उन्होंने झंकार से यह बातचीत की  ... - सुभाष कपूर की ‘जॉली एलएलबी’ कैसी फिल्म है? 0 इस देश में हम सभी को कभी न कभी कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने पड़ते हैं। सुभाष कपूर ने रियल सिचुएशन पर यह फिल्म बनाई है। यह फिल्म कोर्ट-कचहरी के हालात, देश के कानून और उसमें उलझे नागरिकों की बात कहती है। सुभाष कपूर फिल्मों में आने से पहले पत्रकार थे। उन्हें स्वयं कभी कोर्ट के चक्कर लगाने पड़े थे। वहीं से उन्होंने फिल्म का कंसेप्ट लिया है। यह फिल्म सैटेरिकल थ्रिलर है। - कोर्ट कचहरी के मामले में आप क्या कर रही हैं? 0 इस फिल्म की पृष्ठभूमि केस की है। मैं मेरठ की बड़बोली लडक़ी संध्या हूं। छोटे शहरों की दूसरी लड़कियों की त

एहसास : विवाह को नया रूप देंगे युवा-महेश भट्ट

तुमने विवाह जैसी पवित्र संस्था को नष्ट कर दिया है। क्या तुम अवैध संबंध को उचित बता कर उसे अपनी पीढी की जीवनशैली बनाना चाहते हो? तुम्हारी फिल्म विकृत है। क्या तुम यह कहना चाहते हो कि दो पुरुष और एक स्त्री किसी कारण से साथ हो जाते हैं तो दोनों पुरुष स्त्री के साथ शारीरिक संबंध रख सकते हैं? एक वरिष्ठ सदस्य ने मुझे डांटा। वे फिल्म इंडस्ट्री की सेल्फ सेंसरशिप कमेटी के अध्यक्ष थे। यह कमेटी उन फिल्मों को देख रही थी, जिन्हें सेंसर बोर्ड ने विकृत माना या सार्वजनिक प्रदर्शन के लायक नहीं समझा था। विवाह की पवित्र धारणा मैंने पर्दे पर वही दिखाया है, जो मैंने जिंदगी में देखा-सुना है। ईमानदारी से कह रहा हूं कि मैं कभी ऐसी स्थिति में फंस गया तो मुझे ऐसे संबंध से गुरेज नहीं होगा, मैंने अपना पक्ष रखा। कौन कहता है कि सत्य की जीत होती है? मेरी स्पष्टवादिता का उल्टा असर हुआ। मेरी फिल्म को प्रतिबंधित कर दिया गया। यह 35 साल पहले 1978 की बात है। मेरी उम्र 22 साल थी और मैंने पहली फीचर फिल्म मंजिलें और भी हैं पूरी की थी। मुझे समझने में थोडा वक्त लगा कि विवाह हिंदी फिल्मों का अधिकेंद्र है, क्योंकि वह भारतीय जीवन

प्रेम और विवाह दुर्लभ संबंध है: सोनू सूद -ईशा कोप्पिकर

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पंजाब के छोटे से शहर मोगा के सोनू सूद और एक विवाह ऐसा भी के भोपाल के प्रेम में समानताएं देखी जा सकती हैं। सोनू मोगा से एक्टर बनने निकले और प्रेम सिंगर बनने निकलता है। छोटे शहरों से आए युवकों को महानगरों में आने के बाद एहसास होता है कि अपने बड़े सपनों के लिए वे छोटे हैं। फिर भी छोटे शहरों में रिश्तों की जो अहमियत है, वह बड़े शहरों में नहीं है। ईशा कोप्पिकर मुंबई में पली-बढ़ी हैं। डाक्टर के परिवार से आई ईशा कोप्पिकर आज भी मध्यवर्गी मूल्यों में यकीन करती हैं। उनकी सोच और योजनाओं में उसकी झलक मिलती है। प्रेम, विवाह और समर्पण को वह बहुत जरूरी मानती हैं। उनके घर में हमेशा परस्पर प्रेम को तरजीह दी गयी है। ईशा एक विवाह ऐसा भी में चांदनी के रूप में प्रेम और वैवाहिक संबंधों को प्राथमिकता देती है। प्रेम के बारे में आपकी क्या धारणा है? सोनू सूद: प्रेम के बिना जिंदगी मुमकिन नहीं है। मां-बाप के प्रेम से हमारी जिंदगी जुड़ी होती है। आप को ऐसा लगता है कि अपने प्रियजनों के लिए कुछ करें। एक विवाह ऐसा भी में प्रेम को नए ढंग से चित्रित किया गया है। सुख में तो हम साथ रहते ही हैं। दुख में साथ रहें तो प्रेम का म