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सत्‍यमेव जयते-7 : घरेलू हिंसा की त्रासदी-आमिर खान

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अगर हमारे समाज का कोई वर्ग दूसरे वर्ग पर हमले करने लगे तो पुलिस इसे दंगा करार देती है, रैपिड एक्शन फोर्स तलब कर ली जाती है और हिंसा के शिकार लोगों की सहायता के लिए उचित कदम उठाते हुए तुरंत सरकारी मशीनरी सक्रिय हो जाती है और जरूरतमंदों को हिंसा से बचाती है। इसके बाद सरकार शरणार्थी शिविर तैयार कर प्रभावितों को पुनस्र्थापित करती है। जब हमने घरेलू हिंसा पर शोध किया तो ठीक यही स्थिति घरों में भी देखने को मिली। हमारे समाज का एक वर्ग दूसरे वर्ग की पिटाई करता है, उस पर हमले करता है। ये गृहयुद्ध सरीखे हालात हैं। अंतर महज इतना है कि घरों में उत्पीड़न का शिकार होने वाली महिलाओं को बचाने के लिए रैपिड एक्शन फोर्स तैनात नहीं की जाती। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा योजना आयोग द्वारा दो अलग-अलग अध्ययनों से खुलासा होता है कि 40 फीसदी से 80 फीसदी के बीच महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हैं। हम इसके औसत को कुछ कम करते हुए 50 फीसदी मान सकते हैं। यह भी विशाल आंकड़ा है। यानी हर दो महिलाओं में से एक महिला की पति या बेटों द्वारा पिटाई होती है। खेद की बात है कि यह आंकड़ा पुरुषों के बारे