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Showing posts from June, 2020

सिनेमालोक : अभिषेक बच्चन के 20 साल

सिनेमालोक अभिषेक बच्चन के 20 साल अजय ब्रह्मात्मज   आज 30 जून को अभिषेक बच्चन की पहली फिल्म ‘रिफ्यूजी’ को रिलीज़ हुए 20 साल हो गए. 20 साल पहले जब यह फिल्म आई थी, तब बच्चन परिवार और कपूर परिवार में संयुक्त खुशी की लहरें हिलोरे भर रही थीं. दोनों परिवारों के लिए अनुपम खुशी का दिन था, क्योंकि ‘रिफ्यूजी’ से कपूर परिवार की करीना कपूर भी लॉन्च हुई थीं. आज दोनों अपने कैरियर में बेहद व्यस्त हैं और सबसे अधिक खुशी की बात है कि 20 सालों के बाद भी दोनों काम कर रहे हैं. उनकी फिल्में आ रही हैं. अभिषेक बच्चन को ‘रिफ्यूजी’ के प्रीमियर का दिन अच्छी तरह याद है. हमें किसी भी नई शुरुआत का पहला दिन ताजिंदगी याद रहता है. उन्होंने उस दिन को याद करते हुए बताया था कि फिल्म के प्रीमियर के लिए निकलने से पहले वह दादा(हरिवंश राय बच्चन) और दादी(तेजी बच्चन) का आशीर्वाद लेने ‘प्रतिक्षा’ गए थे. दादी ने माथा चूमते हुए उनसे कहा था कि मुझे भी फिल्म दिखाना. अभिषेक ने वीएचएस से दिखाने का वादा किया और अपने चाचा व छोटे भाई सरीखे सिकंदर खेर के साथ लिबर्टी के लिए निकले. ‘रिफ्यूजी’ का प्रीमियर मुंबई के लिबर्टी सिनेमाघर

सिनेमालोक : हिंदी फिल्मों के ‘आउटसाइडर’

सिनेमालोक हिंदी  फिल्मों के ‘आउटसाइडर’ -अजय ब्रह्मात्मज कुछ सालों पहले कंगना रनोट ने स्पष्ट शब्दों में ‘नेपोटिज्म’ और ‘मूवी माफिया’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया था तो फिल्म इंडस्ट्री के ताकतवर पैरोकारों ने खुले मंच पर उनका मखौल उड़ाया. आम दर्शकों के बीच भी इसे उनकी व्यक्तिगत भड़ास माना गया. फिल्म इंडस्ट्री बदस्तूर मशगूल रही और सब कुछ रूटीन तरीके से चलता रहा. पिछले सप्ताह 14 जून को सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या से जुड़े पहलुओं के संदर्भ में ‘नेपोटिज्म’ शब्द तेजी से उभरा है. अभी बाहर का यह शोर फिल्म इंडस्ट्री के गलियारे में भी गूंज रहा है. ‘मी टू’ के आरोपों से सजग हुई फिल्म इंडस्ट्री ज्यादा सावधान हो गई है. गौर करें तो फिल्म इंडस्ट्री में ‘नेपोतिज्म’ का चलन नया नहीं है. पहले पहुंच और सिफारिश के नाम पर रिश्तेदारों को मौके मिलते रहे हैं. आठवें और नौवें दशक में तो फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हुए पहली पीढ़ी के अभिनेता-अभिनेत्रियों ने अपनी संतानों को समारोह के साथ लांच किया. उनमें से कुछ आज भी फिल्म इंडस्ट्री पर राज कर रहे हैं. इसे स्वाभाविक मान कर स्वीकार कर लिया गया था. बाहर से आए

ब्लैक कॉमेडी के लिफ़ाफ़े में पोस्ट की गयी त्रासद चिट्ठी उर्फ़ ‘गुलाबोसिताबो’ : विभावरी

ब्लैक कॉमेडी के लिफ़ाफ़े में पोस्ट की गयी त्रासद चिट्ठी उर्फ़ ‘गुलाबोसिताबो’ -विभावरी .......................................................................................................................... सामाजिक-राजनीतिक और वैचारिक महामारी के इस दौर में सिनेमा में एक नई बहार आई है पिछले कुछ बरसों में...छोटे शहरों के उदास कोनों में चमकती , धुंधली कहानियों की बहार. ‘गुलाबो सिताबो’ इसी बहार का एक काव्यात्मक पड़ाव है. फ़िल्म आपसे ख़ुद के अच्छा लगने की गुहार नहीं लगाती...ठीक अपने तमाम किरदारों की तरह जो उतने ही मानवीय हैं जितनी यह फ़िल्म अपनी संरचना में. शायद यही कारण है कि इसके कुछ हिस्सों पर आपका मन जितना रीझता है , कुछ पर उतना ही उखड़ता भी है...बावजूद इसके यह फ़िल्म आपको शुरू से आखीर तक बाँधे रखती है.      फ़िल्म अपने गढ़न में दरअसल कॉमेडी के एक विशेष रूप ‘ब्लैक कॉमेडी’ के नज़दीक है. सिनेमा/कला की भाषा में ‘ब्लैक/ डार्क कॉमेडी’ के मायने त्रासद विषयों को हास्यात्मक तरीके से पेश करने से सम्बंधित है...ज़ाहिर है ऐसे विषय आपको एक ऐसी विडंबनात्मक स्थिति में लेकर जाते हैं जहाँ यह तय करना मुश्

सिनेमालोक : बुझ गया एक सितारा

सिनेमालोक  बुझ गया एक सितारा  -अजय ब्रह्मात्मज  कॉलेज के दिनों में शौकिया तौर पर डांस का प्रैक्टिस आरंभ हुआ. डांस करने के जादुई प्रभाव से विस्मित होकर वह लीन होते गए. श्यामक डावर के इंस्टीट्यूट में दाखिला ले लिया. उनकी लगन और परफॉर्मेंस को देखकर श्यामक डावर ने उन्हें अपने ट्रूप में शामिल कर लिया. साथ में हुए कुछ परफॉर्मेंस में सुशांत सिंह राजपूत ने उन्हें इस कदर मोहित किया कि उन्होंने उनको मुंबई जाने और फिल्मों में प्रतिभा आजमाने की सलाह दे दी. सुशांत ने दिल्ली में शाह रुख खान और मनोज बाजपेयी के प्रशिक्षक रहे बैरी जॉन से एक्टिंग के गुर सीखे. फिर मुंबई आ गए. कम लोग जानते और लिखते हैं कि मुंबई आने के बाद सुशांत सिंह राजपूत ने नादिरा बब्बर के नाट्य ग्रुप ‘एकजुट’ के साथ काम किया. वहां उन्होंने कुछ नाटकों में हिस्सा लिया और खुद को मांजते रहे. उन्हीं दिनों एक नाटक के परफॉर्मेंस में एकता कपूर के एक सहयोगी ने उन्हें देखा और एकता कपूर से मिलने के लिए बुलाया.  उन्हें ‘किस देश में है मेरा दिल’ के लिए चुन लिया गया. अभिनय की  की ख्वाहिश को एक दिशा मिल गई और फिर ‘पवित्र रिश्ता’ में मानव के किरदार ने

शूजित सरकार की नायिकाएं : उर्मिला गुप्ता

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शूजित सरकार की नायिकाएं (उर्मिला गुप्ता) ओटीटी प्लेटफार्म पर “गुलाबो-सिताबो” की रिलीज ने सबको एक साथ समीक्षक बना दिया. सभी ने पहले ही दिन फिल्म देख भी ली, और चटपट इतनी सारी समीक्षाएं भी लिख डालीं. कहना न होगा कि काफी ‘समीक्षाएं’ स्पोइलर हैं, और एक ही झटके में पूरी कहानी खोलकर रख देती हैं. वैसे “गुलाबो-सिताबो” फिल्म समीक्षा के मामले में एक नया ही रिकॉर्ड बना ले, तो कोई बड़ी बात नहीं होगी. मैं यहाँ गुलाबो-सिताबो की समीक्षा नहीं करुँगी. शूजित ऐसे निर्देशक हैं, जिनका  अपना एक अलग दर्शक वर्ग है. वो उनकी फिल्म किसी समीक्षा की वजह से नहीं देखता, तो जो शूजित का काम पसंद करते हैं, वो उनकी फिल्म जरूर देखेंगे, भले ही वो किसी भी प्लेटफार्म पर रिलीज हो. इस फिल्म ने मेरा ध्यान विशेष रूप से शूजित के महिला किरदारों की तरफ आकर्षित किया. फिर “पीकू” और “पिंक” को याद करके सोचा कि शूजित की तो फिल्मों में अक्सर महिला किरदार मुखर होते ही हैं. पर फिर भी कुछ तो बात थी, उन किरदारों में जिसने मुझे उनके बारे में और जानने के लिए प्रेरित किया. शूजित सरकार का जन्म बैरकपुर, कोलकाता में हुआ था. बंगाली हिन्दू परिवार म

सिनेमालोक : परतदार और समकालीन दस्तावेज है ‘चोक्ड:पैसा बोलता है’

सिनेमालोक परतदार और समकालीन दस्तावेज है ‘चोक्ड:पैसा बोलता है’ -अजय ब्रह्मात्मज पिछले हफ्ते अनुराग कश्यप की फिल्म ‘चोक्ड:पैसा बोलता है’ ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज हुई. फिलहाल निर्माता-निर्देशकों ने फिल्मों के रिलीज के लिए ओटीटी का रास्ता चुन लिया है. इस तथ्य से मल्टीप्लेक्स मालिक नाराज हैं. उनकी नाराजगी एक तरफ... समस्या यह है कि ‘कोरोना काल’ में पूर्णबंदी और उसके बाद की बरती जा रही सावधानियों का ख्याल रखते हुए फिल्मों की आउटडोर गतिविधियां ठप हो गई हैं. ऐसी स्थिति में तैयार फिल्मों को लंबे समय तक रिलीज से रोकना मुमकिन नहीं है. विकल्प की तलाश थी. इसी वजह से चोक्ड:पैसा बोलता है’ के बाद इस हफ्ते शूजीत सरकार की ‘गुलाबो सिताबो’ रिलीज की कतार में है. परंपरा के मुताबिक ओटीटी प्लेटफार्म पर भी फिल्में शुक्रवार को ही रिलीज की जा रही है. अनुराग कश्यप की ‘चोक्ड:पैसा बोलता है’ परतदार फिल्म है. यह फिल्म एक साथ कई स्तरों पर चलती है. कुछ का विस्तार करती है तो कुछ का केवल संकेत देती है. यह दंपति की कहानी है, जिनका एक 8 साल का बेटा है. पत्नी बैंक में काम करती है और पति फिर से काम की तलाश में है.

संडे नवजीवन : ओटीटी प्लेटफार्म की स्वछंदता पर आपत्ति

संडे नवजीवन ओटीटी प्लेटफार्म की स्वछंदता पर आपत्ति -अजय ब्रह्मात्मज लॉकडाउन में मनोरंजन के प्लेटफार्म के तौर पर ओटीटी का चलन बढ़ा है. पिछले कुछ सालों से भारत में सक्रिय विदेशी ओटीटी प्लेटफार्म ओरिजिनल सीरीज लाकर भारतीय हिंदी दर्शकों के बीच बैठ बनाने की कोशिश कर रहे थे. उन्हें बड़ी कामयाबी अनुराग कश्यप विक्रमादित्य मोटवानी के निर्देशन में आई ‘सेक्रेड गेम्स’ से मिली. विक्रम चंद्रा के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित इस वेब सीरीज का लेखन वरुण ग्रोवर और उनकी टीम ने किया था. दर्शक मिले और टिके रहे. इस वेब सीरीज के प्रसारण के समय से ही यह सवाल सुगबुगाने लगा था कि ओटीटी प्लेटफॉर्म को स्वच्छंद छोड़ना ठीक है क्या? सामाजिक,नैतिक और राष्ट्रवादी पहरुए तैनात हो गए थे. इस वेब सीरीज में प्रदर्शित हिंसा, सेक्स और गाली-गलौज पर उन्हें आपत्ति थी. उनकी राय में वेब सीरीज पर अंकुश लगाना जरूरी है. प्रकारांतर से वे ओटीटी प्लेटफॉर्म को सेंसर के दायरे में लाना चाह रहे थे. इस मांग और चौकशी की पृष्ठभूमि को समझना जरूरी है. वह ओटीटी के प्रसारण ‘सेक्रेड गेम्स’ के पहले से दर्शकों के बीच पहुंच रहे थे. इनके अलाव

सिनेमालोक : इंडस्ट्री में आई ख़ुशी की लहर

सिनेमालोक इंडस्ट्री में आई ख़ुशी की लहर -अजय ब्रह्मात्मज ढाई महीने तो हो ही गए. 19 मार्च से फिल्म संबंधी सारी गतिविधियां थप हैं. लाइट कैमरा एक्शन की आवाज नहीं सुनाई पड़ी. सब कुछ पॉज पर है. पिछले एक पखवाड़े से फिल्म इंडस्ट्री की संस्थाएं मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से शूटिंग की अनुमति की अपील कर रही हैं. कुछ मुलाकातों और वीडियो चैट के बाद आखिरकार राज्य सरकार ने शूटिंग के लिए सहमति जाहिर की है. साथ ही 16 पृष्ठों का दिशानिर्देश भी जारी किया है. शूटिंग के लिए तैयार यूनिटों को इसका पालन करना पड़ेगा. सबसे पहले तो इलाके के जिलाधिकारी से शूटिंग की अनुमति लेनी होगी. उसके बाद दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करना होगा. किसी प्रकार की कोताही कलाकारों और तकनीशियनों के लिए भारी मुसीबत खड़ी कर देगी. निश्चित ही दिशानिर्देशों के पालन में हर फिल्म यूनिट का खर्च बढेगा. ऐसे में बड़े प्रोडक्शन हाउस अपनी निर्माणाधीन फिल्मों की बची-खुची शूटिंग पूरी कर लेंगे और जल्दी से जल्दी पोस्ट प्रोडक्शन पूरा कर रिलीज की तैयारी करेंगे. छोटे और मझोले निर्माताओं की आर्थिक दिक्कतें बड़ी हो गई हैं. ऐसा लग रहा है कि जल्द