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अबरार अल्वी ने बदली संवादों की भाषा

- अजय ब्रह्मात्मज पिछले 19 नवम्बर को मुंबई में अबरार अल्वी ने दुनिया से खामोश विदाई ले ली। उनकी अंत्येष्टि की जानकारी लोगों को नहीं मिली इसलिए परिवार के सदस्यों के अलावा और कोई नहीं पहुंच पाया। किसी निजी तो कभी दूसरों की खामोशी की वजह से हिंदी फिल्मों में अबरार अल्वी के योगदान को सही महत्व नहीं मिल पाया। पिछले साल गुरुदत्त के साथ बिताए दस सालों पर उनकी एक किताब जरूर आई, लेकिन घटनाओं को सहेजने में उम्र के कारण उनकी यादें धोखा देती रहीं। उनके भांजे और थिएटर के मशहूर निर्देशक सलीम आरिफ बताते है कि अबरार मामू मीडिया और खबरों से दूर ही रहे। उन्होंने गुरुदत्त से अपनी संगत को सीने से लगाए रखा। नागपुर से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद लंबे-छरहरे अबरार अल्वी एक्टर बनने के इरादे से मुंबई आए थे। गीता बाली के बहनोई जसवंत को वे जानते थे। उनके माध्यम से ही गुरुदत्त से परिचय हुआ। गुरुदत्त की फिल्म 'बाज' का प्रायवेट शो था। उसमें जसवंत ने अबरार अल्वी को बुला लिया था। फिल्म देखने के बाद गुरुदत्त ने अबरार अल्वी से उनकी राय पूछी तो उन्होंने बेलौस जवाब दिया, 'आप बहुत फोटोजेनिक है।' इस जवाब का

गुरुदत्त पर एक किताब

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-अजय ब्रह्मात्मज नौ जुलाई को गुरुदत्त का जन्मदिन था। उनकी आकस्मिक मौत हो गई थी 1964 में। हिंदी फिल्मों के इतिहास में गुरुदत्त का नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ इसलिए भी लिया जाता है, क्योंकि उनकी फिल्में प्यासा और कागज के फूल की गणना क्लासिक फिल्मों में होती है। वैसे, उनकी अन्य फिल्मों का भी अपना महत्व है। युवा फिल्मकार श्रीराम राघवन उनकी थ्रिलर फिल्मों से बहुत प्रभावित हैं, तो संजय लीला भंसाली को गुरुदत्त का अवसाद पसंद है। माना जाता है कि गानों के पिक्चराइजेशन में गुरुदत्त सिद्धहस्त थे। इतनी सारी खूबियों के धनी गुरुदत्त निजी जिंदगी में एकाकी और दुखी रहे। दरअसल, पत्नी गीता दत्त से उनकी नहीं निभी। वहीदा रहमान के प्रति अपने प्यार को वे कोई परिणति नहीं दे सके। उनके जीवन के इन पहलुओं पर कम लिखा गया है। कायदे से उनकी फिल्मों की विशेषताओं पर भी पर्याप्त चर्चा हिंदी फिल्मों के दर्शकों के बीच नहीं मिलती है। हमने मान लिया है कि वे महान फिल्मकार थे। हमने उनकी मूर्ति बना दी है और लेखों, बयानों और टिप्पणियों में उनका नामोल्लेख कर ही इस फिल्मकार को दर्शकों से जोड़ने की कोशिश की इतिश्री समझ लेते हैं।