फिल्म समीक्षा : फुकरे
-अजय ब्रह्मात्मज मृगदीप सिंह लांबा की फिल्म 'फुकरे' अपने किरदारों की वजह से याद रहती है। फिल्म के चार मुख्य किरदार हैं-हनी (पुलकित सम्राट), चूचा (वरुण), बाली (मनजीत सिंह) और जफर (अली जफर)। इनके अलावा दो और पात्र हमारे संग थिएटर से निकाल आते हैं। कॉलेज के सिक्युरिटी इंचार्ज पंडित जी (पंकज त्रिपाठी) और भोली पंजाबन (रिचा चड्ढा)..ये दोनों 'फुकरे' के स्तंभ हैं। इनकी अदाकारी फिल्म को जरूरी मजबूती प्रदान करती है। बेरोजगार युवकों की कहानी हिंदी फिल्मों के लिए नई नहीं रह गई है। पिछले कुछ सालों में अनेक फिल्मों में हम इन्हें देख चुके हैं। मृगदीप सिंह लांबा ने इस बार दिल्ली के चार युवकों को चुना है। निठल्ले, आवारा और असफल युवकों को दिल्ली में फुकरे कहते हैं। 'फुकरे' में चार फुकरे हैं। उनकी जिंदगी में कुछ हो नहीं रहा है। वे जैसे-तैसे कुछ कर लेना चाहते हैं। सफल और अमीर होने के लिए वे शॉर्टकट अपनाते हैं, लेकिन अपनी मुहिम में खुद ही फंस जाते हैं। उनकी मजबूरी और बेचारगी हंसाती है। पंडित जी की मक्कारी और भोली पंजाबन की तेजाबी चालाकी फुकरों की जिंदगी को और भी हास्