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Showing posts from June, 2013

in conversation with shahrukh khan

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-Ajay Brahmatmaj One of the most anticipated movies of the year is ‘Chennai Express’ with the perfect trio: Shah Rukh Khan, Deepika Padukone and Rohit Shetty. The trailer of the film has already been released and unsurprisingly this action-comedy with the traditional SRK effect is a visual delight. As it happens to be the first association of Rohit and Shah Rukh , Dainik Jagran Film Editor, Ajay Brahmatmaj had an exclusive chat with King Khan on his next. Q. You had initially planned to team up with Rohit Shetty for remake of Angoor. Then how ‘Chennai Express’ comes in? Ans: Yes, it’s true. Actually, Rohit first approached me with the proposal to work on ‘Angoor’ remake 4-5 years back and I too was excited to do it as the original ‘Angoor’ is close to my heart. He narrated me a couple of stories including that of ‘Angoor’ and ‘Chennai Express’.  Since, Rohit wanted more time for Angoor remake, he offered me ‘Chennai Express’. Q. We have heard that ‘Chennai Express’ has m

फिल्‍म समीक्षा : घनचक्‍कर

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  -अजय ब्रह्मात्मज                      जब भी कोई निर्देशक अपनी बनाई लीक से ही अलग चलने की कोशिश में नई विधा की राह चुनता है तो हम पहले से ही सवाल करने लगते हैं-क्या जरूरत थी? हमारी आदत है न तो हम खुद देखी हुई राह छोड़ते हैं और न अपने प्रिय फिल्मकारों की सोच, शैली और विषय में कोई परिव‌र्त्तन चाहते हैं। राजकुमार गुप्ता की 'घनचक्कर' ऐसी ही शंकाओं से घिरी है। उन्होंने साहसी कदम उठाया है और अपने दो पुराने मौलिक प्रयासों की तरह इस बार भी सफल कोशिश की है? कॉमेडी का मतलब हमने बेमतलब की हंसी या फिर स्थितियों में फंसी कहानी ही समझ रखा है। 'घनचक्कर' 21वीं सदी की न्यू एज कामेडी है। किरदार, स्थितियों, निर्वाह और निरूपण में परंपरा से अलग और समकालीन 'घनचक्कर' से राजकुमार गुप्ता ने दर्शाया है कि हिंदी सिनेमा नए विस्तार की ओर अग्रसर है।                         सामान्य सी कहानी है। मराठी संजय आत्रेय (इमरान हाशमी) और नीतू (विद्या बालन ) पति-पत्‍‌नी हैं। दोनों की असमान्य शादी है। उसकी वजह से उनमें अनबन बनी रहती है। दोनों एक-दूसरे की ज्यादतियों को बर्दाश्त करते हुए

दरअसल : फिल्म फेस्टिवल की उपयोगिता

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-अजय ब्रह्मात्मज     कान, बर्लिन, वेनिस, शांगहाए, टोरंटो, मुंबई, टोकियो, सिओल आदि शहर फिल्म फेस्टिवल की वजह से भी विख्यात हुए हैं। पिछले दशकों के निरंतर आयोजन से इन शहरों में हो रहे फिल्म फेस्टिवल को गरिमा और प्रतिष्ठा मिली है। सभी का स्वरूप इंटरनेशनल है। सभी की मंशा रहती है कि उनके फेस्टिवल में दुनिया की श्रेष्ठ फिल्में पहली बार प्रदर्शित हों। इन फेस्टिवल में शरीक होना भी मतलब और महत्व रखता है। कृपया अपने देश की मीडिया में कान फिल्म फेस्टिवल में शामिल हुई फिल्मों की सुर्खियों पर न जाएं। अनधिकृत और मार्केट प्रदर्शन को भी कान फिल्म फेस्टिवल की मोहर लगा दी जाती है।     दर्शकों का एक हिस्सा और बुद्धिजीवियों का बड़ा हिस्सा हिंदी की अधिकांश फिल्मों को उनके मनोरंजक और मसाला तत्वों की वजह से खारिज कर देता है। अगर 21वीं सदी में इंटरनेशनल सिनेमा के विस्तार और गहराई के साथ हिंदी की अधिकांश फिल्मों की तुलना करें तो शर्मिंदगी ही महसूस होगी। इसमें कोई शक नहीं कि हिंदी फिल्में अपने दर्शकों का पर्याप्त मनोरंजन करती हैं और पैसे भी बटोरती हैं, लेकिन गुणवत्ता, विषय और प्रभाव के मामले में वे समय बीतने

कृष 3 का फर्स्‍ट लुक

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पढ़ लें धनुष के बारे में

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धनुष को आप सभी ने देख लिया। अब उन्‍हें पढ़ भी लीजिए।  तमिल सिनेमा के प्रिंस धनुष हिंदी फिल्मों में रांझणा से एक नई पारी का आगाज कर रहे हैं. रघुवेन्द्र सिंह इस सुपस्टार की विनम्रता से प्रभावित हैं आजकल तमिल सिनेमा के इंटरनेशनल सुपस्टार धनुष का नाम मुंबई में सबकी जुबान पर है. आनंद एल राय की फिल्म रांझणा में इस तीस वर्षीय युवक ने स्कूल बॉय की भूमिका जीवंत करके सबको चौंका दिया है. सोनम कपूर के साथ उनकी जोड़ी को अपरंपरागत माना जा रहा है, लेकिन यही इस अभिनेता की विशेषता है. उनका चेहरा भी हिंदी फिल्मों के आदर्श हीरो जैसा नहीं है, लेकिन उनके व्यक्तित्व में ऐसा आकर्षण है, जो सबको उनका दिवाना बना देता है. अपने अतुलनीय अभिनय के लिए उन्होंने सबसे कम उम्र (29 वर्ष) में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार हासिल करने का कीर्तिमान अपने नाम किया है. अडुकलम (2011) के लिए ही सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी उन्होंने जीता था. तमिल सिनेमा में 12 वर्षों से राज कर रहे धनुष ने दो वर्ष पहले कोलावरी डी गीत से विश्वस्तरीय लोकप्रियता हासिल करके सबको अचंभित कर दिया था. वह

रघु और तारा का शुद्ध देसी रोमांस

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रघु (सुशांत सिंह राजपूत) और तारा (परिणीति चोपड़ा) का 'शुद्ध देसी रोमांस'। मनीष शर्मा निर्देशित आदित्‍य चोपड़ा की यह फिल्‍म 13 सितंबर 2013 को रिलीज होगी।  

शाहरूख खान से अजय ब्रह्मात्‍मज की बातचीत

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  ( कुछ कारणों से फिलहाल पूरा इंटरव्‍यू यहां नहीं दे रहा हूं। चवन्‍नी के पाठकों के सवालों के जवाब मेरे पास ही हैं। जल्‍दी ही सब कुछ यहां होगा।धैर्य रखें। मैंने रखा है।) शाहरुख खान के परिचित जानते हैं कि वह बेलाग बातें करते हैं। उनके जवाबों में जिंदगी का अनुभव और दर्शन रहता है। धैर्यवान तो वह पहले से थे, फिलहाल उनका एक ही मकसद है कि कैसे ज्यादा से ज्यादा खुश रहें और दूसरों को खुश रखें। इस बातचीत में कई बार उनका गला रुंधा। बच्चों की बातें करते हुए आवाज लरजी। माता-पिता को याद करते समय उनके स्वर का कंपन सुनाई पड़ा। शाहरुख निजी जीवन में भी खुद को किंग मानते हैं और किसी बादशाह की तरह सब कुछ मुट्ठी में भरना चाहते हैं। एक फर्क है, उनकी मुट्ठी जब-तब खुल भी जाती है दोस्तों और प्रशंसकों के लिए, परिवार के लिए तो वे समर्पित हैं ही... चर्चा तो यह थी कि आप रोहित शेट्टी के साथ 'अंगूर' करने वाले थे, फिर 'चेन्नई एक्सप्रेसÓ में कैसे सवार हो गए? क्या है आपकी इस अगली फिल्म की थीम? दोनों ही रोहित के आइडिया थे और अंतत: मुझे मिली चेन्नई एक्सप्रेस। मेरे लिए यह बड

फिल्‍म समीक्षा : एनिमी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  मुंबई के पुलिस विभाग के चार अधिकारियों को जिम्मेदारी मिली है कि वे अंडरव‌र्ल्ड के चल रहे गैंगवार को समाप्त कर शहर में अमन-शांति बहाल करें। वे अपनी शैली में इस उद्देश्य में एक हद तक सफल होते हैं, लेकिन दिल्ली से आए सीबीआई के आला अधिकारी की जांच-पड़ताल से कुछ और बातें पता चलती हैं। राजनीति और अंडरव‌र्ल्ड के तार जुड़ते दिखाई पड़ते हैं। राजनीति, अपराध और मुंबई की पृष्ठभूमि पर अनेक फिल्में बन चुकी हैं। आशु त्रिखा की नई पेशकश 'एनिमी' कुछ नए ट्विस्ट और टर्न के साथ आई है। उन्होंने बार-बार देखी जा चुकी कहानियों में ही नवीनता पैदा करने कोशिश की है। कुछ नए दृश्य गढ़े हैं। अनुभवी अभिनेताओ को मुख्य किरदार सौंपा है। ड्रामा और एक्शन का स्तर बढ़ाया है। फिर भी 'एनिमी' अपनी सीमाओं से निकल नहीं पाती। इस फिल्म में हालांकि अनेक किरदार हैं, लेकिन गौर करें तो मुख्तार के इर्द-गिर्द ही कहानी चलती है। मुख्तार की भूमिका में जाकिर हुसैन ने अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। वे उम्दा अभिनेता हैं। मिले हुए अच्छे, साधारण और बुरे मौके में भी वह कुछ नया कर जाते हैं। उनके

फिल्‍म समीक्षा : शॉर्टकट रोमियो

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  सुसी गणेश ने अपनी तमिल फिल्म 'थिरूट्टु पायले' को हिंदी में 'शॉर्टकट रोमिया' टायटल के साथ पेश किया है। बताया जा रहा है कि उन्होंने फिल्म में कुछ नए दृश्य जोड़े हैं और इसका स्केल बढ़ा दिया है। फिल्म की कहानी केन्या जाती है और वहां के वन्यजीवों का भी दर्शन कराती है। तमिल में यह फिल्म हिट रही थी, मगर हिंदी में इसे दर्शकों की पसंद बनने के आसार कम हैं। एक तो फिल्म के सारे किरदार निगेटिव शेड के हैं। फिल्म के नायक सूरज के मामा के अलावा किसी में भी अच्छाई नजर नहीं आती। सभी किसी न किसी प्रपंच में लगे हुए हैं। शांतचित्त दिखने वाला किरदार तक अंत मे खूंखार नजर आता है। जल्दी से अमीर बनने की ख्वाहिश के साथ सूरज ब्लैकमेलिंग की दुनिया में घुस जाता है। सूरज (नील नितिन मुकेश) और मोनिका (अमीषा पटेल) के बीच एक-दूसरे को मात देने की चालें चली जाती हैं। सूरज शातिर और बदमाश है। वह प्रेम और रिश्तों में यकीन नहीं करता। अपनी चालबाजी के दौरान ही उसकी मुलाकात शेरी उर्फ राधिका से हो जाती है। राधिका का एक चुंबन उसे सच्चे प्रेम का एहसास दिला देता है। राधिका की शर्त

फिल्‍म समीक्षा : रांझणा

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  अगर आप छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में नहीं रहे हैं तो 'रांझणा' का कुंदन बेवकूफ और बच्चा लगेगा। उसके प्रेम से आप अभिभूत नहीं होंगे। 21वीं सदी में ऐसे प्रेमी की कल्पना आनंद राय ही कर सकते थे। उसके लिए उन्होंने बनारस शहर चुना। मुंबई और दिल्ली के गली-कूचों में भी ऐसे प्रेमी मिल सकते हैं, लेकिन वे ऊिलहाल सिनेमा की नजर के बाहर हैं। बनारस को अलग-अलग रंग-ढंग में फिल्मकार दिखाते रहे हैं। 'रांझणा' का बनारस अपनी बेफिक्री, मस्ती और जोश के साथ मौजूद है। कुंदन, जोया, बिंदिया, मुरारी, कुंदन के माता-पिता, जोया के माता-पिता और बाकी बनारस भी गलियों, मंदिरों, घाट और गंगा के साथ फिल्म में प्रवहमान है। 'रांझणा' के चरित्र और प्रसंग के बनारस के मंद जीवन की गतिमान अंतर्धारा को उसकी चपलता के साथ चित्रित करते हैं। सिनेमा में शहर को किरदार के तौर पर समझने और देखने में रुचि रखने वाले दर्शकों के लिए 'रांझणा' एक पाठ है। फिल्म में आई बनारस की झलक सम्मोहक है। 'रांझणा' कुंदन और जोया की अनोखी असमाप्त प्रेम कहानी है। बचपन में ही कुंदन की द

दरअसल : कहानी और एक्शन मात्र नहीं है सिनेमा

-अजय ब्रह्मात्मज     पटना में विधु विनोद चोपड़ा की ‘एकलव्य’  देख रहा था। इस फिल्म में उन्होंने कुछ दृश्य अंधेरे और नीम रोशनी में शूट किए थे। इन दृश्यों के पर्दे पर आते ही दर्शक शोर करने लगे... ठीक से दिखाओ। प्रोजेक्शन ठीक करो। कुछ दिख ही नहीं रहा है। दृश्य की सोच के मुताबिक पर्दे पर कुछ दिखता नहीं था। संपूर्ण दृश्य संयोजन में विधु विनोद चोपड़ा फिल्म के मुख्य कलाकार अमिताभ बच्चन की खासियत दिखाना चाहते थे। इसी फिल्म के समय विधु विनोद चोपड़ा ने बयान दिया कि चवन्नी छाप दर्शकों के लिए फिल्में नहीं बनाता। मेरी फिल्मों के रसास्वादन के लिए दर्शकों को समझदार होना पड़ेगा।     विधु विनोद चोपड़ा के इस अहंकार में हमारे फिल्म देखने की परंपरा की सच्चाई छिपी है। मल्टीप्लेक्स और मॉडर्न थिएटर आने के पहले देश से ज्यादातर दर्शक चलती-फिरती तस्वीरों को किसी भी रूप में देखने से सिनेमा के आनंद से खुश हो जाते थे। ब्लैक एंड व्हाइट टीवी, सरकार के प्रचार अभियान में दिखायी गयीं 18 एमएम की फिल्में, बाद में वीडियो और पायरेटेड डीवीडी से देखी गयी फिल्में... इन सभी अनुभवों में दर्शकों का पूरा ध्यान केवल एक्शन और कहान

ऑन द सेट्स: रांझणा

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सोनम कपूर और धनुष के साथ आनंद एल राय फिल्म रांझणा के कुछ गंभीर दृश्यों की शूटिंग फिल्मसिटी में कर रहे थे. उनके सेट से कुछ खूबसूरत यादें लेकर लौटे हैं रघुवेन्द्र सिंह कहानी कुंदन (धनुष) और जोया (सोनम कपूर) की प्रेम कहानी है रांझणा. यह बनारस की गलियों में रची-बसी है. कुंदन का बचपन का प्यार है जोया, लेकिन वह उससे अपने प्यार का इजहार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. जोया पढ़ाई के लिए दिल्ली चली जाती है. जेएनयू में उसकी मुलाकात अकरम (अभय देओल) से होती है और फिर वह राजनीति में उतर जाती है. इस त्रिकोणीय प्रेम कहानी में दोस्ती और राजनीति का हल्का रंग भी है.  फिल्मसिटी में बसी दिल्ली रांझणा यूं तो बनारस के शुद्ध वातावरण में बसी एक प्रेम कहानी है, लेकिन इस प्रेम कहानी का एक बहुत गंभीर पहलू भी है. जिसके तार दिल्ली की राजनीति से जुड़ते हैं. इस राजनीति में उतरकर जोया कुछ खोती है, तो कुछ पाती है. उसने क्या खोया है और क्या पाया है, यह तो आपको यह फिल्म देखने के बाद पता चलेगा, लेकिन मुंबई की फिल्मसिटी में आनंद एल राय कुछ ऐसे दृश्यों की शूटिंग कर रहे हैं, जिनमें सोनम कपूर और

छोटे शहरों में ही मेरे किरदारों को सांस मिलती है-आनंद राय

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छोटे शहरों में ही मेरे किरदारों को सांस मिलती है-आनंद राय -अजय ब्रह्मात्मज     आनंद राय की अगली फिल्म ‘रांझणा’ में ए आर रहमान का संगीत है। गीत इरशाद कामिल ने लिखे हैं। अभी तक जारी हुए तीन गानों में श्रोताओं को बनारस की लय,्र मधुरता और गेयता दिख रही है। आनंद राय ने इस फिल्म की प्लानिंग के समय ही गीत और संगीत के बारे में सोच लिया था। फिल्म की जरूरत को ध्यान में रखते हुए उन्होंने ‘तनु वेडस मनु’ की म्यूजिकल टीम को नहीं दोहराया। आनंद राय एआर रहमान के साथ काम का हतप्रभ और खुश हैं। आरंभ में फिल्म में छह गानों की बात सोची गई थी, लेकिन आनंद राय कहते हैं, ‘रहमान सर के साथ काम करते हुए मैंने पाया कि आप गिन कर गाने नहीं रख सकते। मैं उनके साथ थीम की बात करता हूं तो वह भी गाने का रूप ले लेता है। फिल्म में वैसे छह गाने दिखाई पड़ेंगे, लेकिन अलबम में आठ गाने और दो थीम हैं। रहमान सर के आने के साथ हर फिल्म म्यूजिकल हो जाती है।’      ‘रांझणा’ के प्रोमो के आने के साथ ‘मोहल्ला अस्सी’ के निर्देशक डॉ . चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने कहा था, ‘अब मेरी फिल्म की नवीनता खत्म हो गई। बनारस के रंग और ढंग को ‘रांझणा’ ने

फिल्‍म समीक्षा : फुकरे

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-अजय ब्रह्मात्मज मृगदीप सिंह लांबा की फिल्म 'फुकरे' अपने किरदारों की वजह से याद रहती है। फिल्म के चार मुख्य किरदार हैं-हनी (पुलकित सम्राट), चूचा (वरुण), बाली (मनजीत सिंह) और जफर (अली जफर)। इनके अलावा दो और पात्र हमारे संग थिएटर से निकाल आते हैं। कॉलेज के सिक्युरिटी इंचार्ज पंडित जी (पंकज त्रिपाठी) और भोली पंजाबन (रिचा चड्ढा)..ये दोनों 'फुकरे' के स्तंभ हैं। इनकी अदाकारी फिल्म को जरूरी मजबूती प्रदान करती है। बेरोजगार युवकों की कहानी हिंदी फिल्मों के लिए नई नहीं रह गई है। पिछले कुछ सालों में अनेक फिल्मों में हम इन्हें देख चुके हैं। मृगदीप सिंह लांबा ने इस बार दिल्ली के चार युवकों को चुना है। निठल्ले, आवारा और असफल युवकों को दिल्ली में फुकरे कहते हैं। 'फुकरे' में चार फुकरे हैं। उनकी जिंदगी में कुछ हो नहीं रहा है। वे जैसे-तैसे कुछ कर लेना चाहते हैं। सफल और अमीर होने के लिए वे शॉर्टकट अपनाते हैं, लेकिन अपनी मुहिम में खुद ही फंस जाते हैं। उनकी मजबूरी और बेचारगी हंसाती है। पंडित जी की मक्कारी और भोली पंजाबन की तेजाबी चालाकी फुकरों की जिंदगी को और भी हास्

फिल्‍म समीक्षा : अंकुर अरोड़ा मर्डर केस

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-अजय ब्रह्मात्मज फिल्म के टायटल से स्पष्ट है कि निर्माता-निर्देशक एक घटना को बगैर लाग-लपेट के पेश करना चाहते हैं। सुहैल तातारी ने सच्ची घटनाओं पर आधारित अनेक रियलिस्टिक टीवी शो का निर्देशन किया है। उनके लिए यह काम बहुत मुश्किल नहीं रहा होगा। इस बार उन्हें लगभग दो घंटे में एक प्रभावपूर्ण कहानी दिखानी थी। अपने उद्देश्य में वे सफल रहे हैं। इस फिल्म में कथित मनोरंजन नहीं है, क्योंकि रोमांस और कॉमेडी नहीं है। यह फिल्म उदास करती है। अवसाद बढ़ा देती है। मेडिकल क्षेत्र में डाक्टर की लापरवाही और पैसों के खेल से हम सभी परिचित हैं। स्वास्थ्य सेवा लाभप्रद व्यवसाय बन चुका है। डॉ ़ अस्थाना (के के मेनन) अपने पेशे में दक्ष हैं, लेकिन व्यावसायिक मानसिकता के कारण वे अनेक जरूरतों को नजरअंदाज करते हैं। उनकी प्रतिभा का कायल रोमेश (अर्जुन माथुर) अपनी गर्लफ्रेंड रिया (विशाखा सिंह) के साथ सीखने के उद्देश्य से उनके अस्पताल में इंटर्नशिप लेता है। आरंभिक दृश्यों की भिडं़त में ही स्पष्ट हो जाता है कि डॉ ़ अस्थाना की पोल रोमेश ही खोलेगा। अस्पताल में दाखिल अंकुर अरोड़ा का एक सामान्य ऑपरेशन डॉ ़