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DDLJ लाइन मारना तो शाहरुख ने ही समझाया था....

-सुशांत झा घर से नजदीकी शहर मधुबनी 35 किलोमीटर दूर था, अकेले जाने की इजाजत अक्सर नहीं मिलती थी जब डीडीएलजे का वक्त आया था। बिहार बोर्ड की दसवीं की परीक्षा में जब फर्स्ट क्लास में पास हुआ तो अचानक इज्जत बढ गई, मधुबनी अकेले जाने का पासपोर्ट मिल गया-जो हमारे लिए उस वक्त कैलिफोर्नियां से कम नहीं था। उससे पहले सिनेमा का मतलब गांव का वीसीआर और दूरदर्शन पर आनेवाला सिनेमा था जो दरभंगा के कमजोर टावर की वजह से अक्सर डिस्टर्व आता था। हम कड़ियों को जोड़-जोड़ कर सिनेमा का अनुमान लगाते थे। गांव में छिटपुट घरो में टीवी आई था जो बिजली न होने की वजह से बैटरी से देखी जाती था और बैटरी चार्ज कराकर लानेवाले और टीवी चलाने वाले की इज्जत आईआईटी इंजिनियर से कम नहीं थी। हमें टीवी पर रंगोली, चित्रहार और सप्ताह में एक फिल्म देखने की इजाजत थी, इससे ज्यादा देखने पर आवारा का तमगा निश्चित था। रामायण के वक्त शायद 89 या 90 में जब मेरे बड़े चाचा जो स्कूल में मास्टर थे ने टीवी लाया था तो उनका दावा था कि उनका टीवी दुनिया का बेहतरीन ब्रांड है और मुजफ्फरपुर दुनिया का सबसे अच्छा शहर। वजह? उन्होने मुजफ्फरपुर से टीवी लाया था ज