फिल्म समीक्षा : सरबजीत
एक कमजोर कोशिश -अजय ब्रह्मात्मज ओमंग कुमार की फिल्म ‘ सरबजीत ’ है तो सरबजीत की कहानी,लेकिन निर्देशक ने सुविधा और लालच में सरबजीत की बहन दलबीर कौर को कहानी की धुरी बना दिया है। इस वजह से नेक इरादों के बावजूद फिल्म कमजोर होती है। अगर दलबीर कौर पर ही फिल्म बनानी थी तो फिल्म का नाम दलबीर रख देना चाहिए था। पंजाब के एक गांव में छोटा सा परिवार है। सभी एक-दूसरे का खयाल रखते हैं और मस्त रहते हैं। दलबीर पति से अलग होकर मायके आ जाती है। यहां भाई-बहन के तौर पर उनकी आत्मीयता दिखाई गई है,जो नाच-गानों और इमोशन के बावजूद प्रभावित नहीं कर पाती। एक शाम दलबीर अपने भाई को घर में घुसने नहीं देती। उसी शाम सरबजीत अपने दोस्त के साथ खेतों में शराबनोशी करता है और फिर नशे की हालत में सीमा के पार चला जाता है। पाकिस्तानी सुरक्षा गार्ड उसे गिरफ्तार करते हैं। उस पर पाकिस्तान में हुए बम धमाकों का आरोप लगता है। उसे भारतीय खुफिया एजेंट ठहराया जाता है। दलबीर को जब यह पता चलता है कि उसका भाई पाकिस्तानी जेल में कैद है तो वह उसे निर्दोष साबित करने के साथ पाकिस्तानी जेल से छुड़ा कर भारत