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फिल्‍म समीक्षा : स्टेनली का डब्बा

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टिफिन में भरी संवदेना -अजय ब्रह्मात्मज सबसे पहले इसे बच्चों की फिल्म (चिल्ड्रेन फिल्म) समझने की भूल न करें। इस फिल्म में बच्चे हैं और वे शीर्षक एवं महत्वपूर्ण भूमिकाओं में हैं, लेकिन यह फिल्म बड़ों के लिए बनी है। इस फिल्म की यह खूबी है तो यही उसकी कमी भी है। स्टेनली का डब्बा में बाल मनोविज्ञान से अधिक फोकस बड़ों का उनके प्रति दोषपूर्ण रवैए पर है। स्टेनली का डब्बा के लेखक-निर्देशक अमोल गुप्ते हैं। अमोल गुप्ते की पिछली फिल्म तारे जमीन पर थी। वे उसके क्रिएटिव डायरेक्टर थे। स्कूल के बच्चों के टिफिन का फिल्म में प्रतीकात्मक इस्तेमाल है। निर्देशक स्टेनली नामक लड़के के बहाने स्कूल के माहौल, टीचर के व्यवहार, बच्चों की दोस्ती और उनकी मासूमियत एवं प्रतिभा का चित्रण करते हैं। स्टेनली अकेला लड़का है, जो टिफिन लेकर स्कूल नहीं आता। वह पेटू हिंदी टीचर बाबूभाई वर्मा की नजरों में अटक जाता है। वर्मा की रुचि बच्चों को पढ़ाने से अधिक उनके टिफिन साफ करने में रहती है। वह स्टेनली को अपना दुश्मन और प्रतिद्वंद्वी मान बैठता है और आदेश देता है कि टिफिन नहीं तो स्कूल नहीं। इस फिल्म की सबसे बड़ी खूबी बच्च