Posts

Showing posts with the label दीपराज राणा

फिल्‍म समीक्षा : क्रीचर

Image
-अजय ब्रह्माात्‍मज    एक जंगल है। आहना अपने अतीत से पीछा छुड़ा कर उस जंगल में आती है और एक नया बिजनेस आरंभ करती है। उसने एक बुटीक होटल खोला है। उसे उम्मीद है कि प्रकृति के बीच फुर्सत के समय गुजारने के लिए मेहमान आएंगे और उसका होटल गुलजार हो जाएगा। निजी देख-रेख में वह अपने होटल को सुंदर और व्यवस्थित रूप देती है। उसे नहीं मालूम कि सकी योजनाओं को कोई ग्रस भी सकता है। होटल के उद्घाटन के पहले से ही इसके लक्षण नजर आने लगते हैं। शुरु से ही खौफ मंडराने लगता है। विक्रम भट्ट आनी सीमाओं में डर और खौफ से संबंधित फिल्में बनाते रहे हैं। उनमें से कुछ दर्शकों को पसंद आई हैं। इन दिनों विक्रम भट्ट इस जोनर में कुछ नया करने की कोशिश में लगे हैं। इसी कोशिश का नतीजा है क्रीचर। विक्रम भट्ट ने देश में उपलब्ध तकनीक और प्रतिभा के उपयोग से 3डी और वीएफएक्स के जरिए ब्रह्मराक्षस तैयार किया है। उन्होंने इसके पहले भी अपनी फिल्मों में भारतीय मिथकों का इस्तेमाल किया है। इस बार उन्होंने ब्रह्मराक्षस की अवधारणा से प्रेरणा ली है। ब्रह्मराक्षस का उल्लेख गीता और अन्य ग्रंथों में मिलता है। हिंदी के विख

फिल्‍म समीक्षा : मछली जल की रानी है

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज फिल्म मछली जल की रानी है के पोस्टर पर लिखा है 'यह बच्चों की नहीं, बड़ों की फिल्म है'। यह हिदायत जरूरी है, क्योंकि टाइटल में बच्चों की फिल्म का आकर्षण है। निर्देशक देवालय डे ने कहानी, किरदार व परिवेश के स्तर पर हॉरर फिल्मों की परंपरा में कुछ नया करने का प्रयास किया है। हॉरर फिल्मों की चुनौती है दर्शकों को चौंकाना और उन्हें अप्रत्याशित हादसों के लिए तैयार रखना। देवालय इस चुनौती को समझते हैं। आयशा और उदय नवदंपति हैं। उनकी एक बेटी भी है। एक बार हंसी-मजाक में आयशा की तेज ड्राइविंग से दुर्घटना में एक लड़की मारी जाती है। आयशा उस हादसे को दिमाग से नहीं निकाल पाती। इस बीच, उदय का ट्रांसफर जबलपुर हो जाता है। दोनों को लगता है कि नई जगह पर वे खुशहाल रहेंगे। वहां पहुंचने पर नई अज्ञात हरकतें आरंभ होती हैं। आयशा को संदेह होता है कि घर में कुछ गड़बड़ है। आयशा की संदेह को उदय उसका वहम मानता है, लेकिन एक समय के बाद स्थितियां बेकाबू हो जाती है। फिर तांत्रिक उग्र प्रताप की मदद लेनी पड़ती है। देवायल डे डर को बुनने में ज्यादा वक्त लेते हैं। आरंभिक प्रसंग पूरी तरह से