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Showing posts from October, 2020

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को

  सिनेमालोक साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को -अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों जमशेदपुर की फिल्म अध्येता और लेखिका विजय शर्मा के साथ उनकी पुस्तक ‘ऋतुपर्ण घोष पोर्ट्रेट ऑफ अ डायरेक्टर’ के संदर्भ में बात हो रही थी. उनकी यह पुस्तक नॉट नल पर उपलब्ध है. विजय शर्मा ने बांग्ला के मशहूर और चर्चित निर्देशक ऋतुपर्ण घोष के हवाले से उनकी फिल्मों का विवरण और विश्लेषण किया है. इस पुस्तक को पढ़ते हुए मैंने गौर किया कि उनके अधिकांश फिल्में किसी ने किसी साहित्यिक कृति पर आधारित हैं. उनकी ज्यादातर फिल्में बांग्ला साहित्य पर केंद्रित हैं. दो-तीन ही विदेशी भाषाओं के लेखकों की कृति पर आधारित होंगी. विजय शर्मा से ही बातचीत के दरमियान याद आया कि भारतीय और विदेशी भाषाओं की फिल्मों में साहित्यिक कृतियों पर आधारित फिल्मों की प्रबल धारा दिखती है. एक बार कन्नड़ के प्रसिद्ध निर्देशक गिरीश कसरावल्ली से बात हो रही थी. उन्होंने 25 से अधिक फिल्में साहित्य से प्रेरित होकर बनाई हैहैं. मलयालम, तमिल, तेलुगू में भी साहित्यिक कृतियों पर आधारित फ़िल्में मिल जाती हैं. सभी भाषाओं के फिल्मकारों ने अपनी संस्कृति और भाषा के

सिनेमाहौल : निर्माताओं का अतिरिक्त खर्च

  सिनेमाहौल   निर्माताओं का अतिरिक्त खर्च   - अजय ब्रह्मात्मज   धीरे-धीरे शुरुआत हो गई. फिल्में फ्लोर पर जाने लगी है. छोटे-बड़े निर्माता सरकारी निर्देश के मुताबिक मानक संचालन प्रक्रिया का पालन करते हुए सुरक्षित माहौल में फिल्मों की शूटिंग कर रहे हैं. इस प्रक्रिया   में निर्माताओं का रोजमर्रा खर्चा बढ़ गया है. फिल्मों के प्रोडक्शन का यह घोषित रिवाज है कि निर्माण का छोटा-बड़ा सभी खर्च निर्माता को ही उठाना पड़ता है. अभी निर्माता को कोविड-19 से बचाव के सारे इंतजाम करने पड़ रहे हैं. उन्हें यह भी सावधानी बरतनी पड़ रही है कि किसी भी फिल्म यूनिट में मूलभूत जरूरत से अधिक कलाकार और तकनीशियन सेट पर एक साथ मौजूद न हों. शूटिंग में एक्टिव सदस्यों को पर्याप्त सुविधा और सहयोग मिले. इससे काम की रफ़्तार थोड़ी धीमी हो गयी है. पहले आशंका थी कि लोकप्रिय फिल्म स्टार शूटिंग के लिए शायद तैयार ना हों. प्रोडक्शन यूनिट भी किसी प्रकार की जोखिम के लिए तैयार नहीं थी. भला कौन चाहेगा कि किसी भी फिल्म का चेहरा बना कलाकार बीमार और संक्रमित हो जाये. पर्दे की पीछे काम कर रहे व्यक्तियों को तो बदला जा सकता है. छोटे-मो

सिनेमालोक : 78 के हुए अमिताभ बच्चन

  सिनेमालोक 78 के हुए अमिताभ बच्चन -अजय ब्रह्मात्मज हाल ही में अमिताभ बच्चन ने सोशल मीडिया पर एक तस्वीर लगाई. वह एक खास कंपनी का मास्क लगाये बैठे हैं. उन्होंने कंपनी का नाम भी लिखा. बहुत मुमकिन है कि वह अप्रत्यक्ष इंडोर्समेंट हो, लेकिन उसके आगे की पंक्ति हम सभी के लिए प्रेरक है. उन्होंने लिखा ‘ 15 घंटे काम है करना’. अब जरा हम अपने डेली रूटीन पर गौर करें. हम-आप कितने घंटे काम करते हैं? मैं युवा दोस्तों की बातें नहीं कर रहा हूं, जो किसी मल्टीनेशनल या नेशनल कंपनी के लिए ‘वर्क फ्रॉम होम’ की वजह से 24 घंटे के मुलाजिम हो गए हैं. देश के वरिष्ठ नागरिक बमुश्किल चार-पांच घंटे काम करते हैं. हां उनका उनके दस-बारह घंटे सभी की आलोचना करने में जरूर खर्च होते हैं. अमिताभ बच्चन की सक्रियता पर नीम और मजाक चलते रहते हैं. कुछ लोग कहते हैं ‘बुड्ढा मानता ही नहीं’. अमिताभ बच्चन ने फिल्म बना कर जवाब दिया ‘बुड्ढा होगा तेरा बाप’. कुछ लोग यह भी कहते हैं कि उन्हें अपने बेटे अभिषेक बच्चन के लिए काम करना पड़ता है. अमिताभ बच्चन बगैर काम किए नहीं रह सकते. मुझे उनके ट्विटर और ब्लॉग से प्रतीत होता है कि उनके ह