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फ़िल्म समीक्षा:फूँक

डर लगा राम गोपाल वर्मा के लिए फूंक डराती है। यह डर फिल्म देखने के बाद और बढ़ जाता है। डर लगता है कि राम गोपाल वर्मा और क्या करेंगे? प्रयोगशील और साहसी निर्देशक राम गोपाल वर्मा हर विधा में बेहतर फिल्म बनाने के बाद खुद के स्थापित मानदंडों से नीचे आ रहे हैं। डर लग रहा है कि एक मेधावी निर्देशक सृजन की वैयक्तिक शून्यता में लगातार कमजोर और साधारण फिल्में बना रहा है। फूंक रामू के सृजनात्मक क्षरण का ताजा उदाहरण है। पूरी फिल्म इस उम्मीद में गुजर जाती है कि अब डर लगेगा। काला जादू के अंधविश्वास को लेकर रामू ने लचर कहानी बुनी है। फिल्म की घटनाओं, दृश्य और प्रसंग का अनुमान दर्शक पहले ही लगा लेते हैं। फिल्म खतरनाक तरीके से काला जादू में यकीन करने की हिमायत करती है और उसके लिए बाप-बेटी के कोमल भावनात्मक संबंध का उपयोग करती है। रामू से ऐसी पिछड़ी और प्रतिगामी सोच की अपेक्षा नहीं की जाती। फिल्में सिर्फ मनोरंजन ही नहीं करती, भारतीय समाज में वे दर्शकों की मानसिकता भी गढ़ती हैं। एक जिम्मेदार निर्देशक से अपेक्षा रहती है कि वह मनोरंजन के साथ कोई विचार भी देगा। मुख्य कलाकार : सुदीप, अमृता खनविलकर, अहसास चान