सिनेमालोक : कम हो गयी है फिल्मों की शेल्फ लाइफ
सिनेमालोक कम हो गयी है फिल्मों की शेल्फ लाइफ - अजय ब्रह्मात्मज फिल्म बुरी हो तो तीन दिन , फिल्म अच्छी हो तो भी तीन ही दिन , फिल्म बहुत अच्छी हो तो कुछ और दिन। इन दिनों सिनेमाघरों में फिल्मों के टिकने की यही मियाद हो गई है। हफ्ते-दो हफ्ते तो शायद ही कोई फिल्म चल पाती है। कुछ सालों पहले तक फिल्मों के 50 दिन 100 दिन पूरे होने पर नए पोस्टर छपते और चिपकाए जाते थे।उन्हें सेलिब्रेट किया जाता था। उसके भी कुछ साल पहले फिल्में 25-50 हफ्ते पूरा करती थीं। फिल्मों की सिल्वर और गोल्डन जुबली मनाया जाती थी। फ़िल्म यूनिट से जुड़े कलाकारों को जुबली की याद में ट्रॉफी दी जाती थी। पुराने कलाकारों और फिल्मी हस्तियों के घरों में ट्रॉफी रखने के तझे मिल जाएंगे। अब तो यह सब कहने-सुनने की बातें हो गई हैं। पिछले दिनों एक युवा मित्र ने पूछा कि आजकल फिल्मों की शेल्फ लाइफ कितनी राह गयी है ? विचार करें तो आश्चर्य होगा कि हमें जनवरी और फरवरी की सफल फिमों के भी नाम याद करने पड़ते हैं। पिछले साल और उसके भी पहले के सालों की फिल्मों के बारे में कोई पूछ दे तो गूगल खंगालना पड़ता है। ठीक है कि डि