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फिल्‍म समीक्षा : इनफर्नो

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जैसी किताब,वैसी फिल्‍म -अजय ब्रह्मात्‍मज डैन ब्राउन के उपन्‍यास पर आधारित रॉन होवार्ड की फिल्‍म ‘ इनफर्नो ’ का भारत में सबसे बड़ा आकर्षण इरफान खान हैं। इनकी वजह से फिल्‍म का एक भारतीय ट्रेलर भारत में जारी किया गया। यह भ्रम बनाया गया कि इस फिल्‍म में इरफान खान की भूमिका टॉम हैंक्‍स को टक्‍कर देगी। ऐसे प्रशंसक दर्शकों को ‘ इनफर्नो ’ निराश करेगी। प्रचार के मुताबिक इसमें इरफान खान हैं। उन्‍हें महत्‍वपूर्ण किरदार भी मिला है,लेकिन स्‍क्रीन प्रेजेंस के लिहाज से यह अपेक्षाकृत छोटा है। डेविड कोएप ने मूल उपन्‍यास को स्क्रिप्‍ट में बदला है। उन्‍होंने पहले भी डैन ब्राउन के उपन्‍यास की फिल्‍म स्क्रिप्‍ट तैयार की है। पिछले अनुभवों से उन्‍हें लाभ हुआ है। उपन्‍यास की आत्‍मा के साथ उसके शरीर को भी उन्‍होंने फिल्‍म में जस का तस रखा है। यही वजह है कि निर्देशक रॉन होवार्ड की कोशिशों के बावजूद फिल्‍म साधारण ही रह जाती है। भारत में डैन ब्राउन लोकप्रिय लेखक हैं। विदेश में उन्‍हें एयरपोर्ट रायटर का दर्जा हासिल है। भारत समेत अनेक देशों में साधारण उपन्‍यासों पर बेहतरीन फिल्‍में बनती रही

मिसाल है मंटो की जिंदगी - नंदिता दास

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अभिनेत्री नंदिता दास ने 2008 में फिराक का निर्देशन किया था। इस साल वह सआदत हसन मंटो के जीवन पर आधारित एक बॉयोपिक फिल्म की तैयारी में हैं। उनकी यह फिल्म मंटो के जीवन के उथल-पुथल से भरे उन सात सालों पर केंद्रित है,जब वे भारत से पाकिस्तान गए थे। नंदिता फिलहाल रिसर्च कर रही हैं। वह इस सिलसिले में पाकिस्तान गई थीं और आगे भी जाएंगी।  - मंटो के सात साल का समय कब से कब तक का है? 0 यह 1945 से लेकर तकरीबन 1952 का समय है। इस समय पर मैैंने ज्यादा काम किया। उनके जीवन का यह समय दिलचस्प है। हमें पता चलता है कि वे कैसी मुश्किलों और अंतर्विरोधों से गुजर रहे थे। - यही समय क्यों दिलचस्प लगा आप को? 0 वे बॉम्बे फिल्म इंडस्ट्री के साथ थे। प्रोग्रेसिव रायटर मूवमेंट का हिस्सा थे। इस बीच हिंदू-मुस्लिम दंगे हो गए थे। उस माहौल का उन पर क्या असर पड़ा? उन्होंने कैसे उस माहौल के अपनी कहानी में ढाला। वे क्यों बॉम्बे छोड़ कर चले गए,जब कि वे बॉम्बे से बहुत ज्यादा प्यार करते थे। उन्होंने एक बार कहा था कि मुझे कोई घर मिला तो वह बम्बई था। यह अलग बात है कि उनका जन्म अमृतसर में हुआ था। वे दिन उनके लिए मुश्किल थे। ब

मानवीय संवेदनाओं की कहानी 'तलवार'

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-अजय ब्रह्मात्‍म्‍ज     मुंबई के पाली हिल में गुलजार का बोस्कियाना है। बेटी बोस्‍की के नाम पर उन्‍होंने अपने आशियाने का नाम बोस्कियाना रखा है। गुलजार और राखी की बेटी बोस्‍की ने कभी पर्दे पर आने की बात नहीं सोची। बोस्‍की बड़ी होकर मेघना कहलायीं। उन्‍होंने पर्दे के पीछे रहने और कहानी कहने में रुचि ली। पहली फिल्‍म ‘ फिलहाल ’ आई। कुछ समय घरेलू जिम्‍मेदारियोंं में गुजरा। घर-परिवार की आवश्‍यक जिम्‍मेदारी से अपेक्षाकृत मुक्‍त होने पर उन्‍होंने फिर से फिल्‍म निर्देशन के बारे में सोचा। इस बार उन्‍हें अपने पिता गलजार के प्रिय विशाल भारद्वाज का साथ मिला। ‘ तलवार ’ बनी और अब रिलीज हो रही है।              मेघना टोरंटो फिल्‍म फस्टिवल से लौटी हैं। वहां इस फिल्‍म को अपेक्षित सराहना मिली है। मेघना अपने अनुभव बताती हैं, ’ जिंदगी के कुछ लमहे ऐसे होते हैं,जिन्‍हें आप हमेशा याद रखते हैं। वे यादगार हो जाते हैं। पहले ही सीन में इरफान एक लतीफा सुनाते हैं। इस लतीफे पर यहां की स्‍क्रीनिंग में किसी ने रिएक्‍ट नहीं किया था। मैंने पाया कि वहां 1300 सीट के हॉल में सभी ठठा कर हंसे। इनमें 65 प्रतिशत व