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समाज के सड़ांध का आईना है – ugly : मृत्युंजय प्रभाकर

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-मृत्युंजय प्रभाकर ‘ ugly ’ क्या है? यह सवाल पूछने से बेहतर है कि यह पूछा जाए कि क्या ‘ ugly ’ नहीं है? जिस समाज में हम रहते हैं उस समाज में हमारे आस-पास नजर दौडाएं तो ऐसा क्या है जो अपने ‘ ugly ’ रूप में हमारे सामने नहीं है? बात चाहे मानवीय संबंधो कि हो, सामाजिक संबंधों कि या आर्थिक संबंधों की, ऐसा कुछ भी नहीं है जो अपने विभीत्स रूप को पार नहीं कर गया हो. समाज और मनुष्य को बनाने और जोड़े रखने वाले सारे तंतु बुरी तरह सड चुके हैं और यही हमारे समय और दौर कि सबसे बड़ी हकीक़त है. ‘ प्यार ’ , ‘ दोस्ती ’ , ‘ माँ ’ , ‘ बाप ’ , ‘ संतान ’ जैसे भरी-भरकम शब्द अब खोखले सिद्ध हो गए हैं. जाहिर है समाज बदल रहा है, उसके मूल्य बदल रहे हैं इसलिए शब्दों के मायने भी बदल रहे हैं. शब्द पहले जिन मूल्यों के कारण भारी रूप धरे हुए थे वे मूल्य ही जब सिकुड़ गए हों तो उन शब्दों कि क्या बिसात बची है. अनुराग कश्यप निर्देशित फिल्म ‘ ugly ’ समाज के इसी सड़ांध को अपने सबसे विकृत रूप में सामने लाने का काम करती है.              अकादमिक दुनिया से लेकर बहुत सारी विचारधारात्मक बहसों के दौरान यह बात बार-बार सुनी और

हमने भी ‘हैदर’ देखी है - मृत्युंजय प्रभाकर

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-मृत्युंजय प्रभाकर  बचपन से मुझे एक स्वप्न परेशान करता रहा है. मैं कहीं जा रहा हूँ और अचानक से मेरे पीछे कोई भूत पड़ जाता है. मैं जान बचाने के लिए बदहवास होकर भागता हूँ. जाने कितने पहाड़-नदियाँ-जंगल लांघता दौड़ता-भागता एक दलदल में गिर जाता हूँ. उससे निकलने के लिए बेतरह हाथ-पाँव मारता हूँ. उससे निकलने की जितनी कोशिश करता हूँ उतना ही उस दलदल में धंसता जाता हूँ. भूत मेरे पीछे दौड़ता हुआ आ रहा है. मैं बचने की आखिर कोशिश करता हूँ पर वह मुझ पर झपट्टा मारता है और तभी मेरी आँखें खुल जाती हैं.   आँखें खुलने पर एक बंद कमरा है. घुटती हुई सांसें हैं. पसीने से भीगा बदन है. अपनी बेकसी है. भाग न पाने की पीड़ा है. पकड़ लिए जाने का डर है. उससे निकल जाने की तड़प है. एक अजब सी बेचारगी है. फिर भी बच निकलने का संतोष है. जिंदा बच जाने का सुखद एहसास है जबकि जानता हूँ यह मात्र एक स्वप्न है. ‘हैदर’ फिल्म में वह बच्चा जब लाशों से भरे ट्रक में आँखें खोलता है और ट्रक से कूदकर अपने जिंदा होने का जश्न मनाता है तब मैं अपने बचपन के उस डरावने सपने को एक बार फिर जीता हूँ. उसके जिंदा निकल आने पर वैसे