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यूजी मेरे गुरुदेव: महेश भट्ट

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मैं यूजी से अपने रिश्ते को परिभाषित नहीं कर सकता। क्या हमारे बीच गुरु-शिष्य का रिश्ता था? हाँ था, लेकिन यूजी खुद को गुरु नहीं मानते थे और न मुझे शिष्य समझते थे। कुछ था उनके अंदर, जो उनके सत्संग और संस्पर्श से मेरे अंदर जागृत हो उठता था। उनके स्पर्श ने मुझे झंकृत कर दिया था, मानो मेरे तन-मन के सारे तार बज उठे हों। उन पर लिखी अपनी पुस्तक ए टेस्ट ऑफ लाइफ की पिछले दिनों मुंबई में रिलीज के मौके पर मैं इतना द्रवित हो उठा था कि खुद को रोकने के लिए मुझे अपनी उंगली दांतों से काटनी पड़ी। अनुपम खेर को मेरा उंगली काटना हास्यास्पद लगा, लेकिन मुझे कोई और उपाय नहीं सूझा। मैंने इंगमार बर्गमैन की फिल्मों में देखा था कि उनके किरदार गहरे दर्द से निकलने के लिए खुद को जिस्मानी तकलीफ पहुंचाते थे, ताकि दर्द कहीं शिफ्ट हो जाए। मैं वही कर रहा था। मेरे अंदर उनकी यादों का ऐसा समंदर है, जो बहना शुरू हो जाए तो रूकेगा ही नहीं। उस दिन जो सभी ने देखा, वह तो एक कतरा था। यूजी से अपने रिश्ते पर मैं घंटों बात कर सकता हूं। मेरी बातचीत में शिद्दत ऊंची होगी और समुद्री ज्वार की तरह मेरे शब्द उछाल मारेंगे। उनकी बातें करते हुए