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Showing posts from June, 2018

फिल्म समीक्षा : संजू

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फिल्म समीक्षा संजय दत्त की निगेटिव छवि और खलनायक मीडिया संजू अजय ब्रह्मात्मज अवधि- 161 मिनट             कुछ दिनों पहले राजकुमार हिरानी से ‘ संजू ‘ फिल्म के बारे में बातचीत हुई थी. इस बातचीत के क्रम में उनसे मेरा एक सवाल था कि संजय दत्त की पिछली दो फिल्मों ‘ मुन्ना भाई एमबीबीएस ‘ और ‘ लगे रहो मुन्नाभाई ‘ में क्रमशः ‘ जादू की झप्पी ‘ और ‘ गांधीगिरी ‘ का संदेश था. इस बार ‘ संजू ‘ में क्या होगा ? उनका जवाब था , ‘ इस बार कोई शब्द नहीं है. यह है ‘ ? ‘( प्रश्न चिह्न)। संजय दत्त के जीवन के कुछ हिस्सों को लेकर बनीं इस फिल्म में यह प्रश्न चिह्न मीडिया की सुखिर्यों और खबरों पर हैं. फिल्म की शुरुआत में और आखिर में इस ‘ प्रश्न चिह्न ‘ और मीडिया कवरेज पर सवाल किए गए हैं. कुछ सुर्खियों और खबरों के हवाले से मीडिया की भूमिका को कठघरे में डालने के साथ निगेटिव कर दिया गया है. इस फिल्म के लिए श्रेष्ठ खलनायक का पुरस्कार मीडिया को दिया जा सकता है. संजय दत्त के संदर्भ में मीडिया की निगेटिव छवि स्थापित करने के साथ उसे ‘ समय का सत्य ‘ बना दिया गया है. ‘ संजू ‘ फिल्म का यह कमजोर पक्ष है.    

दरअसल : ‘संजू’ है बाप-बेटे और दोस्ती की फिल्म

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दरअसल ‘ संजू ’ है बाप-बेटे और दोस्ती की फिल्म -अजय ब्रह्मात्मज      राजकुमार हिरानी निर्देशित ‘ संजू ’ अगले हफ्ते रिलीज होगी.संजय दत्त की ज़िन्दगी पर आधारित इस फिल्म के बारे में दर्शकों की जिज्ञासा रिलीज की तारीख नज़दीक आने के साथ बढती जा रही है.फिल्म के ट्रेलर में संजय दत्त खुद के बारे में बताते हैं कि वे बेवडा हैं , ठरकी हैं , ड्रग एडिक्ट हैं....सब कुछ हैं , लेकिन टेररिस्ट नहीं हैं. इस ट्रेलर में यह बात दोहराई जाती है.याद होगा जब संजय दत्त सजा पूरी कर आये थे तो उन्होंने मीडिया से गुजारिश की थी कि उन्हें टेररिस्ट न कहा जाए.हो सकता है कि फिल्म में संजय दत्त पर लगे इस दाग को मिटाने की भी कोशिश हो.यूँ राजकुमार हिरानी अपने इंटरव्यू में लगातार कह रहे हैं कि यह फिल्म संजय दत्त की ‘ इमेज ’ ठीक करने के लिए नहीं बनायीं गयी है. हम भी मानते हैं कि राजकुमार हिरानी सरीखा डायरेक्टर इस उद्देश्य से फिल्म नहीं बना सकता.इसी ट्रेलर में हमने संजय दत्त के कुछ सीन पिता सुनील दत्त और दोस्त परेश के साथ के भी देखें हैं.दोस्त के किरदार में तो अनेक दोस्तों की छवियाँ समेटी गयी हैं , लेकिन बाप-

छोटी फिल्मों में कैरेक्टर मिलते हैं,बड़ी फिल्मों से पैसे - संजय मिश्रा

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छोटी फिल्मों में कैरेक्टर मिलते हैं - संजय मिश्रा  - अजय ब्रह्मात्मज संजय मिश्रा की ‘ अंग्रेजी में कहते हैं ' हाल ही में दर्शकों को पसंद आई.सीमित बजट की   यह फिल्म सफल रही है.ऐसी फिल्मों में लीड भूमिका निभाने के साथ ही संजय मिश्रा मुख्यधारा की फिल्मों के भी चहेते कलाकार हैं. - आप जैसे कलाकारों पर फिल्म इंडस्ट्री की निर्भरता बढ़ी है.आप इसे कैसे लेते हैं ? 0 मैं इसे फिल्म इंडस्ट्री की निर्भरता नहीं कहूंगा. हां , स्वतंत्र निर्माता हमें चुन रहे हैं. हालाँकि वे भी फिल्मों में आ जाते हैं तो फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा हो जाते हैं. इनके पास फिल्म बनाने की तमन्ना रहती है. इनके पास 40-50 करोड़ नहीं होत , इसलिए ये छोटी फिल्मों में निवेश करते हैं.ये लोग दो से चार करोड़ रुपए में फिल्में बनाना चाहते हैं. ‘ मसान ’ और ‘ आखिन देख फिल्मों से इन्हें प्रेरणा मिलती है. मुझे यह अच्छा लगता है कि स्वतंत्र निर्माता आ रहे हैं. कॉर्पोरेट तो एक ही विचार को लेकर चलते हैं कि उन्हें फायदा चाहिए. स्वंतंत्र निर्माता अलग-अलग विषयों और विचारों को लेकर आते हैं. - मुख्य धारा की फिल्मों में भी आ