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ब्लॉग पर चल रही भौं-भौं

चवन्नी तो सोच रहा था की यह हिन्दी ब्लॉगर आपस में भौं-भौं करते रहते है.टिप्पणियों के माध्यम से एक-दूसरे को काटते और चाटते रहते हैं.चवन्नी को कोफ्त होती रही है ऐसी भौं-भौं से.उसे लगता था की हिंदीवाले बीमारू प्रदेश के हैं.हमेशा खौफ में जीते हैं और किसी की तरक्की उन्हें रास नहीं आती.पिछले दिनों हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में जो शब्दों के बाण चले उनसे आप सभी वाकिफ हैं। इधर आप ने गौर किया होगा की कुछ फिल्मी हस्तियाँ ब्लॉग लिख रही है.अमिताभ बच्चन तो इतने नियमित हैं कि आलोक पुराणिक के प्रतियोगी हो गए हैं.आप रोजाना कुच्छ न कुछ उनके ब्लॉग पर पा सकते हैं.उन्होंने शत्रुघ्न सिन्हा से लेकर शाहरुख़ खान तक से भौं-भौं की.चलते-चलते कुछ पत्रकारों पर भी छींटाकशी करने से वे बाज नहीं आते.अगर १०-१२ साल पहले भी आप ने कुछ उनके ख़िलाफ़ लिख दिया हो या बोल दिया हो तो हो सकता है कि वे अपने ब्लॉग में पलटवार करें.ब्लॉग का maadhyam उन्हें मिल गया है और इसे वे हथियार की तरह इअतेमाल कर रहे हैं। दूसरे हैं आमिर खान.उनहोंने लगान का डीवीडी रिलीज करने के बाद अपने प्रशंसकों से बात करने के लिए यह ब्लॉग आरंभ किया था.कुछ अच्छी जान

मिर्जा ग़ालिब:१९५४ में बनी एक फ़िल्म

मिर्जा ग़ालिब सन् १९५४ में बनी थी.इसे सोहराब मोदी ने डायरेक्ट किया था.सोहराब मोदी पिरीयड फिल्मों के निर्माण और निर्देशन में माहिर थे.इस फ़िल्म में भारत भूषण ने मिर्जा ग़ालिब का किरदार निभाया था और उनकी बीवी के रोल में निगार थीं. ग़ालिब की प्रेमिका चौदवीं का किरदार सुरैया ने बहुत खूबसूरती से निभाया था.इस फ़िल्म को १९५५ में स्वर्ण कमल पुरस्कार मिला था.अगले साल फिल्मफेअर ने इसे कला निर्देशन का पुरस्कार दिया। इस फ़िल्म को देखने के बाद तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सुरैया से कहा था की तुम ने मिर्जा ग़ालिब की रूह को जिंदा कर दिया.फ़िल्म देखने के पहले चवन्नी पंडित नेहरू की इस तारीफ का आशय नहीं समझ पा रहा था.आप फ़िल्म देखें और महसूस करें कि यह कैसे मुमकिन हुआ होगा.सुरैया की आवाज ने ग़ालिब की गजलों को गहराई दी है। galib को बाद में लगभग हर गायक ने gaya है,लेकिन गुलाम मोहम्मद के संगीत निर्देशन में सुरैया की गायकी ने जैसे मानदंड स्थापित कर दिया था.चवन्नी चाहेगा कि इरफान भाई,यूनुस भाई या विमल भाई सुरैया की gaayi ग़ज़लों को हम सभी के लिए पेश करें। इस फ़िल्म में पहले मधुबाला को लेने की बात

शुक्रवार,21 दिसम्बर,२००७

आज दो फिल्में रिलीज हो रही हैं.चवन्नी को लगता है कि एक मज्दार फिल्म है और दूसरी समझदार फिल्म है.अब आप तय करो कि पहले कौन सी देखने जा रहे हो.दो मिजाज की हैं फिमें,लेकिन अनुमान है कि दोनों मनोरंजक होंगी। पिछली बार चवन्नी के एक नियमित पाठक ने आदेश दिया था कि चवन्नी को फिल्म की सिफारिश करनी चाहिए और साफ-साफ बताना चाहिए कि फिल्म देखने जाएँ या न जाएँ?चवन्नी इस भरोसे का कायल हो गया है.दिक्कत यह होती है कि आप के मनोरंजन की १००% गारंटी वाली फिल्में ही तो नही आतीं। इस बार चवन्नी गारंटी के साथ कह सकता है कि आप आमिर खान की तारे ज़मीन पर देखने जाएँ.आप निराश नहीं होंगे.फिल्म आपको पहले से समझदार बना देगी और मनोरंजन होगा सो अलग.जी हाँ ,यकीन करें तारे ज़मीन पर पैसा वसूल फिल्म है.रोचक तथ्य यह है कि फिल्म का हीरो नया लड़का दर्शील सफारी है और आमिर खान ने फिल्म में उसे पूरी महत्ता दी है.आम तौर पर पॉपुलर हीरो दूसरों के रोल काटने में लगे रहते हैं.यहाँ आप देखेंगे कि कैसे आमिर ने स्क्रिप्ट की ज़रूरत के मुताबिक अपना रोल छोटा रखा है.चवन्नी इतनी बातें इस वजह से बता पा रहा है कि उसने फिल्म देख ली है। दूसरी फिल्म व

हिट और फ्लॉप का समीकरण-२

कल के पोस्ट को काफी लोगों ने padhaa .कुछ ने चवन्नी को फ़ोन भी किया.लेकिन चवन्नी का अनुभव है कि कुछ भावुक या अतीत के बखान में कुछ लिखो तो लोग टिप्पण्णियाँ करते हैं.आज की बात करो तो लोग पढ़ कर किनारा कर जाते हैं.उन्हें शायद लगता हो कि यह तो हम भी जानते हैं.चवन्नी कोई शिक़ायत नही कर रहा.ब्लॉग की दुनिया में भी रहीम का कथन उपयुक्त है...रहिमन निज मन की व्यथा मन ही रखो गोय ,सुनी इठलैंहै लोग सब बांटि न लैंहै कोय । बहरहाल,बात आगे शुरू करें .चवन्नी के मित्र ने ब्रिटेन से सूचित किया कि लंदन और न्यूयॉर्क के टिकेट राते सही नही हैं.सही देना मकसद नही था.चवन्नी का सारा ध्यान इस तथ्य को सामने लाने में था कि इन दिनों फिल्मों के व्यापारी (निर्माता,निर्देशक और एक्टर) यह नही देखते कि उनकी फिल्म को कितने दर्शकों ने देखा.उनके लिए वह रकम खास होती है जो दर्शक देते हैं.महानगरों,विदेशी शहरों और मल्टीप्लेक्स से प्रति दर्शक ज्यादा पैसे आते हैं,इसलिए फिल्म के विषय और परिवेश पर उन दर्शकों की रूचि का प्रभाव दिखता है। यह अचानक नही हुआ है कि हिन्दी फिल्मों में सिर्फ संवाद हिन्दी में होते हैं,बाकी सब में सावधानी बरती ज

चांद और हिन्दी सिनेमा

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चवन्नी ने हाल में ही सबसे बड़ा चांद देखा.हिन्दी फिल्मों में शुरू से चांद दिखता रहा है.फिल्मी गीतों चांद का प्रयोग बहुतायत से होता रहा है।गुलजार की हर फिल्म चांद के गीत से ही पूरी होती है.चवन्नी को कुछ गीत याद आ रहे हैं.कुछ आप याद दिलाएं. -चंदा ओ चंदा... -चंदा है तू मेरा सूरज है तू -चांद आहें भरेगा... -चांद को क्या मालूम... माफ करें आज कीबोर्ड नाराज दिख रहा है।मैं अपनी सूची नहीं दे पा रहा हूं. क्या आप सभी एक -एक गीत टिप्पणियों में देंगे?

शुक्रवार ,२६ अक्टूबर ,२००७

अक्टूबर महीने का आखिरी शुक्रवार है.तीन फिल्में रिलीज हो रही हैं.सबसे पहले उन फिल्मों की बाट कर लें। विक्रम भट्ट अब फिल्में पेश करने लगे हैं.लगातार १० फ्लॉप फिल्में बनाने के बाद उनका यह फैसला दर्शकों के लिए कितना खुशगवार होगा...यह टू वक्त ही बताएगा.इस हफ्ते उनकी पहली पेशगी 'मुम्बई सालसा' आ रही है.इसे मनोज त्यागी ने दिरेक्ट किया है.अगर आप मेट्रो शहरों में नही रहते तो अपने जोखिम पर ही इस फिल्म को देखने जाएं.सेक्स,रोमांस और रिश्तों की ऐसी उलझन समझना छोटे शहरों के दर्शकों की कल्पने से परे है। इम्तियाज़ अली की 'जब वी मेट 'रोमांटिक कॉमेडी है.चवन्नी गारंटी लेता है की इस फिल्म पर खर्च किया आप का एक भी पैसा फिजूल नही जायेगा.हंसने,खुश होने और राहत महसूस करेंगे आप यह फिल्म देख कर.दीवाली के पहले की छुट्टी या रविवार को पूरे परिवार के साथ भी आप यह फिल्म देख सकते हैं.इस फिल्म की खूबियों के बारे में आप बताएं.चवन्नी की राय में शहीद कपूर और करीना कपूर की जोड़ी को इतने रोमांटिक अंदाज़ में पहले नही देखा.इम्तियाज़ अली की पीठ थपथपाप्यें और छोटे शहरों से आये निर्देशकों को बढावा दें तो और भी ऐसी

नया हिंदी सिनेमा -अनुराग कश्यप

(अनुराग कश्यप ने अपने ब्लोग पर नये पोस्ट में नया हिन्दी सिनेमा को लेकर अपना पक्ष रखा है.चवन्नी आज उसका एक अंश प्रस्तुत कर रहा है.पूरा आलेख एक-दो दिनों में आपके सामने होगा) कोई वास्तव में होवार्ड रोअर्क नहीं हो सकता .. बाकी सब 'उसकी तरह होना' चाहते हैं … आयन रैंड की सफलता इसी तथ्य में है कि उनहोंने एक ऐसे हीरो का सृजन किया, जिसकी तरह हर कोई होना चाहेगा, लेकिन हो नहीं सकेगा … वह खुद जीवन से पलायन कर अपने किसी चरित्र में नहीं ढल सकीं। दुनिया को बदलने की ख्वाहिश अच्छी है, कई बार इसे बदलने की कोशिश भी पर्याप्त है, वास्तव में बदल देना तो चमत्कार है … हमलोग अपने इंटरव्यू में ढेर सारी बातें करते हैं, उससे ज्यादा हम महसूस करते हैं, लेकिन बता नहीं पाते हैं। अनाइस नीन के शब्‌दों में, हम सभी जो कह सकते हैं, वही कहना लेखक का काम नहीं है, हम जो नहीं कह सकते, लेखक वह कहे …' इस लेख को लिखने की वजह मुझ पर लगातार लग रहे आरोप हैं, जिनमें मैं जूझता रहा हूं … मैं ईमानदारी से सारे सवालों के जवाब देता हूं, उन जवाबों को संपादित कर संदर्भ से अलग कर सनसनी फैलाने के लिए छाप दिया जाता है … ' नो स्

रिलीज के पहले का टूटना-जुड़ना

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चवन्नी की तरह आप भी ख़बरें पढ़ राहे होंगे कि इन दिनों शाहिद और करीना में नही निभ रही है.कहा जा रहा है कि करीना को सैफ की संगत पसंद आ रही है.दोनों गलबहियां दिए कभी किसी होटल में तो कभी मोटर बैक पर नज़र आ राहे हैं.इधर शाहिद और करीना ने अपनी ताज़ा फिल्म जब वी मेट के प्रचार के लिए साथ में शूटिंग की.उनहोंने इस मौक़े पर आपस में कोई बात नही की और मुँह फेर कर सैट पर बैठे मिले.चवन्नी को इस किस्से पर कतई यकीं नहीं है। शाहिद और करीना kee बेवफाई की इस कहानी पर यकीं इसलिये भी नही होता कि दोनों की दोस्ती चार साल पुरानी है और इस दोस्ती के लिए उनहोंने इतने ताने भी सुने हैं.शुरू में दोनों परिवारों को उनका मिलना-जुलना पसंद नही था.फिर एम् एम् एस के मामले में कैसे दोनों ने मीडिया का मिल कर मुक़ाबला किया था.निशित ही यह फिल्म क प्रचार के लिए अपनाया गया पुराना हथकंडा है। इसकी शुरुआत राज कपूर ने की थी.आपको याद होगा कि संगम की रिलीज के समय उनहोंने खुद के साथ वैजयंती माला के प्रेम के किस्से छपवाए थे.यहाँ तक कि उनके बीवी कृष्ण कपूर भी प्रचार का झूठ नही समझ सकी थीं और घर छोड कर चली गयी थीं.बाद में धर्मेंद्र,राजेश ख